उत्तराखंड में क्यों सबसे अहम है ढोल? Nand Kishore Hatwal | Baramasa Podcast
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- Опубликовано: 7 окт 2024
- उत्तराखंड के समाज में ढोल की अहमियत सभी वाद्य यंत्रों में सर्वोच्च है. जन्म के मृत्यु तक होने वाले सभी संस्कारों में ढोल की यहां भूमिका होती है. कितने ही संस्कार और सामाजिक-धार्मिक आयोजन ऐसे हैं जिनकी ढोल के बिना कल्पना भी नहीं हो सकती. जानिए ढोल का इतिहास और इसकी अहमियत से जुड़े तमाम पहलुओं को लेखक नन्द किशोर हटवाल के साथ.
State Musical Instrument of Uttarakhand Dhol
Pahadi Music
Folk Garhwali - Kumauni
लोक संगीत
उत्तराखंड का राज्य वाद्य यंत्र ढोल
पहाड़ी लोक गीत
गढ़वाली - कुमाऊँनी
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हमारे समाज का, हमारे संस्कृति का,उत्तराखंड के धार्मिक व्यस्था का एक महान हिस्सा ढोल और ढोल वादक है पर हमने कभी इनकी अर्थिक रूप से और सामाजिक रूप से साथ नही दिया और उत्तराखंड के कई हिस्सों में अब विलुप्त हो रहा है।
सर जी ढोल बादन या ढोल के बारे मे जानकारी तभी सम्भव है जब तक ढोल सागर का अध्ययन न किया हो ढोल सागर पहले अलिखित था कारण शिक्षा न थी जब से शिक्षित हुये तभी से ढोल सागर के रागो शब्दो को लिखा गया ढोल सागर की शिक्षा के लिए प्रयास हो तभी जातिगत भेदभाव मिटेगा अब तो नयी पीढी पुरानी सोच से बाहर है
ढोल सागर किसी व्यक्ति या समाज को मनोरंजन करने के लिए नहीं बनाया गया था तब अंग्रेजों के राज एवं गोरखों के राज में उत्तराखंड के ढोल सागर की विद्या रखने वाले समाज पर अत्याचार हुए और देवी देवताओ को उजागर करने की सिद्धि को मनोरंजन में बदल गया | लेकिन आज कुछ महान लोग इस ग्रंथ को इस सिद्धि को जीवित रख रहे हैं जिनका एक नाम डॉक्टर श्री प्रीतम भरतवाण जी हैं | पांडवाज़ एक लोक बैंड है जिस कल| को ब्राह्मण युवक प्रदर्शित कर रहे हैं वह उच्च जाति के होकर नीचा काम कर रहे हैं मेरा कहने का तात्पर्य बस यहीं है शास्त्र की विद्या रखने वाले समाज इज्जत मिलनी चाहिए|
Dhol wadako ko patti wise apne same tall wise group banana chaiye sir unko bade sangathan banane me madad milegi tabhi har mulk ki taal v jinda rhegi or jan jeewan ke Puja anushthano ka apne riti riwaj v jinda rhega🎉
डा नंदकिशोर हटवाल जी के द्वारा बहुत अछा ढोल सागर के लिए कह गये शब्द अति सुन्दर कथन है 🙏🏻 ढोल और ढोली को दोनों बचना जरूरी है हमारे हर मठ मंदिरों मे एक ढोली को नियुक्त किया जाय ढोली समुदाय से तब जा के नयीं पिढी इसमे रुचि रखेगी जरुर संज्ञान ले 🙏🙏🙏
भुला कोटियाल , आप उत्तराखंड की संस्कृति के प्रति जो प्रेम और जागरूकता का कार्य कर रहे हैं , वह एक अत्यंत सराहनीय है। ऐसे पोडकास्ट से ज्यादा से ज्यादा लोगों तक ऐसे विषयों की जानकारियां उपलब्ध होती हैं। एक बार पुनः आपको इस जन जागरण के लिए साधुवाद। मैं लुप्त होती स्थानीय सामुहिक लोकगीत जो सर्दियों के समय जब उत्तराखंड में खेती का कार्य कम होता था तो गांव की महिलाएं, गांव के प्लान के आंगन (थाड) में पैरों की थाप के साथ गातीं थी , उस पर भी एक विस्तृत पोडकास्ट प्रसारित करें। धन्यवाद
🙏🙏🙏🙏❤
जय देवभूमि उत्तराखंड ❤🙏
जय हो भूमियाल देवताओ की, जय हो ३३ कोटि देवताओ की
जय रावल देवता
जय माँ हरियाली
जय हो पांडव देवता
जय हो बगद्वाल देवता
जय हो नो बेनी अचेरी बारा बेनी भ्रानी
जय बद्री जय केदार जय गंगोत्री जय यमुनोत्री
जोशीमठ मा नर्शिंग बाबा को ध्यान जाग
पंच पांडवो को ध्यान जाग
पंच प्रयागो को ध्यान जाग
पंच केदार को ध्यान जाग
पंच बद्री सप्त बद्री को ध्यान जाग
ढोल दमो हमारी संस्कृति का एक मूल स्वरूप है🙏
जय हो केदारखंड
जय हो मानस खण्ड 🙏
प्रसिद्ध लेखक विद्या सागर नौटियाल जी ने भी उत्तराखण्ड संस्कृति-कला बहुत शोध किया है। उत्तराखंडी संस्कृति और ढोल सागर पर विस्तृत जानकारी देने हेतु बारामासा टीम का और श्री हटवाल जी का बहुत आभार।
फौजी सीमा की रक्षा करते है/
और औजी उतराखंड के देवताओं कि सेवा करते है.
श्रीमान जी हर कोई टीवी पर वीडियो पर तो ढोल वादक "औजी" के सम्मान की बात करता है
परंतु वर्तमान में भी उन देवदूतों की साथ पशुओं जैसा ही व्यवहार होता है यही कारण है की एक औजी कभी नहीं चाहता की वही पशु व्यवहार उसकी अगली पीढ़ी के भी साथ हो
जात पात का भेद खत्म करने पर ही इस समस्या का समाधान हो सकता है
जय बद्री विशाल जय उत्तराखंड
जय हिन्द 🚩🚩🚩🚩
बहुत सुंदर सर जी, हटवाल जी के द्वारा संक्षिप्त में जानकारी के लिए आपका आभार 🙏🙏
बहुत ही अच्छा लगा ये विडियो देख कर। आज जब अपने परिवार के ग्रुप में ये विडियो साझा किया तो मालूम पड़ा कि आपके आज के ब्लॉग में जो अतिथि हैं,मेरे पिताजी के कॉलेज मेट रहे हैं गोपेश्वर में, फिर बाद में ताऊजी के साथ छिनका में भी कार्यरत रहे है।
इससे बेहतर कुछ हो नहीं सकता.. आदरणीय गुरु नन्द किशोर हटवाल जी जैसे विद्वान का साक्षात्कार आपने लिया..इसके लिए बारामासा का धन्यवाद ❤🎉
Dr. Nand Kishor Hatwal ji ki baton ko to ghanta suna ja sakta hai. Thanku inke sath podcast banane k liye.
Hatwal ji teacher, writer, play writer, poet, painter hain.
बहुत अच्छा वार्तालाप,
कृपया इस प्रकार के वीडियो और लाइए!
बारहमासा का सह धन्यवाद!!⭐⭐⭐⭐⭐
ढोल जैसे वाद्ययंत्र के विस्तृत जानकारी के लिए आदरणीय हटवाल जी के समकक्ष कोई ढोली ही बता पायेगा यह बड़ा मुश्किल है, बड़ं क्षेत्र के मनीषियों में अग्रणीय व्यक्तिव सादर नमन....
शैक्षिक विकास, यातायात की सुगमता और कृषि से विमुखता ने हमारी आंचलिक संस्कृति को कमजोर करके विलुप्ति की कगार पर पहुंचाने में प्रमुख भूमिका निभाई है। जैसे जैसे हम कृषिकर्म से विमुख हुए या कृषि पर हमारी निर्भरता कम हुई वैसे वैसे हमारी संस्कृति क्षीण होती चली गई।
"Waow Baramasa.."
विलक्षण प्रतिभा के धनी श्री हटवाल जी को बुलाने के लिए आपका धन्यवाद...
इनकी एक वीडियो नंदा देवी राज़ जात पर भी आनी चाइये जिसपे जबकि रिसर्च है और चारधाम के आर्थिक महत्व पर भी..
इनकी कविता "बोये जाते हैं बेटे और उग आती हैं बेटियां" अपने आप में एक क्रांति के समान है..
धन्यवाद Baramasa.. ❤🙏🙏
बहुत बहुत धन्यवाद कोटियाल जी ढोल सागर से जरूर करें हटवाल जी के साथ
Beautiful
Next videos mai sare culture uttarakhand k.. Unn par baatchit
हमारा औजी अपने ढोल के माध्यम से देवता को किसी व्यक्ति के शरीर में अवतरित कर देता है, अब इससे बड़ा कार्य भला कोई और क्या हो सकता है। जातिवाद को एक तरफ रख दिया जाय तो हमारी संस्कृति में ढोल भी पूजनीय है और औजी भी पूजनीय है।
बहुत ही सुंदर ब्याख्या, श्री हटवाल जी द्वारा, बरामासा को भी बहुत बधाई जो आपने इस इस विषय को चर्चा के लिए चुना
Baramasa is doing well keep it up wishing you a very very Happy future 🎉🎉🎉🎉🎉 Jai Badri Vishal
हमारा कल्चर और सांस्कृतिक विरासत है ढोल❤ कुमाऊं और गढ़वाल की शान है ढोल ❤ पहाड़ी एकता की पहचान है ढोल❤ उत्तराखंड का सम्मान है ढोल❤ आपका बहुत आभार कि आपने हमारी संस्कृति और धरोहर को एक मंच पर संजोने का काम किया हैं
सर फिर ढोल बजाने वाले को क्यों सम्मान नहीं मिलता है
😂😂 chup reh bhai aishi achut baatein mat kr @@Jakhoniofficialyt
@@Devesh-z6cthoda aukat m bol le neele kabootar
@@Devesh-z6cbhai galat baat hai ye
@@AbhinavSingh-vl6ok sahi baat bata fir
हमारी संस्कृति हमारी पहचान❤❤
जय देवभूमि उत्तराखंड ❤
जिस उत्तराखंड की संस्कृति को ढोल वादकों ने जिंदा रखा है।।उन लोगों के साथ आज भी जातिगत भेदभाव होता है।।।शासन को इस पर सोचना चाहिए।।
वे हमारी संस्कृति के वाहक हैं लेकिन सबसे अधिक उपेक्षित हैं। यही कारण है कि उत्तराखंड अपनी संस्कृति खो रहा है, इस प्रकार पैदा हुए शून्य को मैदानी इलाकों और दक्षिणी भारत के काल्पनिक देवताओं द्वारा भरा जा रहा है
Sir nand kishore hatwal ji huge respect to you the way you explained and the respect you gave to the people dhol vadhak of uttarakhand i hope everyone have this kind of thinking in uttarakhand soon 🙏
बारामासा के द्वारा बहुत अच्छा प्रयास किया जा रहा है। उत्तराखंड के हर छोटी-छोटी बातों को , मान्यताओं को परम्पराओं के बारे मे बहुत सुंदर तरीके से प्रस्तुत किया जा रहा है। उम्मीद है कि आगे भी इसी तरह नये - नये चीज़ों से हमें अवगत कराया जाएगा।
दर्शको और युवाओं का प्यार टीम बारामासा के साथ यूँही बना रहो तो ❤
Guruji ko koti koti pranam
बहुत सुंदर एपिसोड की शुरुआत 👏👏
बधाई बारामासा टीम💐💐👏👏
अच्छी जानकारी मिली । आगे भी जारी रहे
Jai devbhumi uttarakhand ❤❤❤❤❤
Bhaut accha laga ji hamari dev bhomi
धन्यवाद बारहमासा का नंदकिशोर हटवाल जी के साथ अगला कार्यक्रम में आप चमोली में पूजे जाने वाले दो भाईयों सिधवा और विधवा के बारे में पूछ सकते हैं इस पर एक पूरा एपिसोड हो सकता है
Sidhua and bidhua are not only worshipped in Chamoli but in other regions of Garhwal as well
@@roms7626 जी सही कहा आपने मैं इस बारे में अपने इंस्टाग्राम चैनल पर और फेसबुक चैनल पर लिखा भी है
उत्तराखंड संस्कृतिक रूप से एक विशिष्ट क्षेत्र है यह पर कई लोक कथाएं हैं जिनमें से एक कहानी है दो भाइयों सिदुध्वा और बिदुध्वा की जो गढ़वाल कुमाऊं को जोड़ने का काम करती है गंगू रमोला और भगवान श्रीकृष्ण की कहानी तो हम सब ने सुनी है गंगू रमोला जो नागवंशी राजा थे जिन्होंने उत्तराखंड के प्रसिद्ध सेममुखेम मंदिर का निर्माण करवाया यह उन्हीं के पुत्र थे दोनों भाईयों को गढ़वाल, कुमाऊं और पैनखण्डा क्षेत्र तक में पूजा जाता है
यही नहीं इनकी कहानियां हमें नेपाल तक में दिखाने को मिलतीं है जहां इनका पूजन नाग सिद्धो या सिद्धनाथ के रूप में किया जाता है
लगभग हर जगह इनकी कहानियां एक जैसी है जागरो में कहीं कहीं इनको गुरु गोरखनाथ का शिष्य भी बताया जाता है इनके वन देवियों अछारियो द्वारा हरण की कुछ कहानियां भी है
उत्तराखंड में सिध्वा और बिध्वा रमोला 2 भाइयों को किसानों पशुपालकों और भेड़पालको क देवताओं के रूप में पूजा जाता है। उत्तराखंड में सिधवा विधवा की गाथा प्रचलित है इनके पिता का नाम गंगू रमोला था और मां का नाम मैणा था इनका संबंध नागवंशी राजाओं से बताया जाता है इसलिए प्रचलित गाथा को नाग सिध्वा की गाथा के नाम से भी जाना जाता है प्रचलित गाथाओं में सिध्वा बिध्वा भाइयों को भेड़ पालक बताया जाता है अपनी असीम देवी शक्तियों के कारण कृषक और पशु चारक समाज में इन्हें देवता के रूप में पूजा जाता है उत्तराखंड में नाग सिध्वा की गाथा गायन एवं गाथा नृत्य की परंपरा है इस गाथा नृत्य को परंपरागत पूजा पद्धति एवं पूजा प्रक्रिया भी माना जाता है।
@@roms7626also in Pithoragarh
बहुत सुंदर जानकारी दी है Hatwalji ne🎉🎉🎉🎉🎉 बहुत सुन्दर कोशिश..your all volgs are superb 🎉🎉🎉
Appreciate work dadaji
🙏🙏🙏🙏🙏🙏❤
Bahut hi sundar, aap dono ka dhaniyavad
As always salute to you sir for your journalism. You are doing a great work for your community. Jai Uttarakhand.
"डडवार" लेना या देना, "नेग" लेना या देना कोई गलत शब्द नहीं है, पंडित जी भी और औजी भाईयों को दिया जाने वाला अनाज को डडवार ही बोला जाता है,
अगर मैं बोलू की मुझे पंजाबी ढोल सीखना है। तो कोई ना कोई मुझे सिखा देगा। लेकिन अगर मैं बोलूँ की मुझे ढोल दमाऊ सीखना है। तो मुझ पर हँसेंगे और मुझ को और मेरी सोच को छोटा समझा जाएगा।
कला किसी जाति या बिरादारी की मोहताज नहीं होती।
Ek dhol academy ki shuruwat ki thi Pritam bhartwan ji ne dehradun me 1-2 saal pehle, usme sikh sakte ho
@@yogeshpandey3443 hem look kala kendra ke naam s
Pr vo bhi jada improve wali nahi hai
🙏🙏🙏❤❤ ढोल दमोह जो है हमारे देवी देवताओं नाचते हमारे दिल देखते इनके बिना हमारा दिल देखते नाचते नहीं है
पहाड़ की पहचान ढोल दामों ❤
Sabhi pahad ki nahi hai, dhol damau nene sirf gadwal aur nepal ke achham me dekhaa hai, kumaon ki aur Mahakali zone areme hukdo aur daayin damau bajaya jaataa hai.
Baramasa doing god's work ❤️ keep growing 💗
Very amazing presentation.
ढोल,दमाउ,और नगाड़ा, भंकोर, रणसिंगा और भी बहुत कुछ, Indian Idol और Voice India के विजेता, पहाड़ की तीजनबाई लोकगायिका स्व कबूतरी के नाती पवनदीप राजन के पिता लोक गायक सुरेश राजन ने कहा था,("मूल का पानी मूल का होता है,"बस्गयाल" का पानी बरसा,बहा और चला गया,) उन्होंने लोक गीतों को गाने वाले समाज की बात की है, तमाम संस्कारों में भी लोक गायकी का उपयोग था, वे लोग सवर्णों के नेग,भेंट,"डडवार" पर ही आश्रित थे, छुआछूत आज भी समस्या है लेकिन कई लोक देवता ऐसे ही हैं कि जो बिना ढोली के नाचते ही नहीं हैं, फिर हजारों रुपये देकर औजी ससम्मान के साथ बुलाए जा रहे हैं, चढ़ावे में भी उनकी हिस्सेदारी "ब्राह्मण-खस समाज" को निश्चित करनी चाहिए,
Dhol bhi Hamari Sanskriti jaise Bali Pratha thi, aur Dhol ka Durupyog dekhna ho to kisi Shaadi mein jaakar dekho, kis tarah se DJ ke band hone ke time ke baad ek gareeb dhol wale ko Shaadi mein aaye guests kaise pareshaan karke usko der raat Dhol bajane ko majboor karte hai, jaante hai Police aayegi to Dhol wale ko hi suanyegi, Sanskriti ke naam par kisi ka soshan karna apraadh hona chahiye
Hatwal ji is a Visenary person having knowledge of Dhol Sagar we hope this group will get proper money and Maan when they form an association thanks someone is thinking of their uplifting
बहुत ही सुन्दर विषय पर आपका ये प्रोग्राम ,किंतु धोलवाडको के परिश्रमिक का जहा तक सवाल है,ये सत्य नही है, वे लोग खुद ही तय करते है जितना कहते है उतना दिया जाता है,हमारे यह तो एक शादी में10 से 15 हजार लेते है
🙏🙏🙏🙏
Hamari Sanskriti Hamari Pehchan❤
❤❤❤
Shandar podcast
बहुत बहुत धन्यवाद सर इसमें संकृतिविभाग को भी ध्यान देना पड़ेगा
दुःखद आज भी जाति विषेस के लोगों के द्वारा ही ढोल बाजने का कार्य किया जाता है।।और ढोल बाजाने वालों को आज भी समाज का अछूत वर्ग कहा जाता हैं।।।और उन्हें वह सम्मान नही मिलता जिस की वो हक़दार हैं ।।
Aap bhi dhol bjate h bhai???
@@mr.nickey8517 नही भाई में तो नही बजाता पर।।जो लोग बाजाते हैं ।।उनके साथ बहुत बड़ा भेदभाव है आज भी समाज मे मैने अपनी आंखों से देखा है ।।और वो लोग आर्थिक रूप से मजबूत न होने के कारण भेदभाव सहते है।।।।।।
आजकल मंदिरों में भी यांत्रिक ढोल रख दिए है जिससे पहाड़ के मंदिरों मे भी ढोल वादक नही दिखते ये बड़ा दुखद है की पहाड़ की संस्कृति धीरे धीरे विलुप्त हो गई है इसका कारण जातिगत उपेक्षा भी है
👍
🎉🎉🎉🎉❤
❤❤🙏🙏
ढोल गंवार शूद्र पशु नारी तुलसी दास जी ने भी लिखा है रामायण में 🙌🏻
उत्तराखंड देवभूमि है और देवी देवताओं की यहां पर पूजा अनादि काल से होती आ रही है जिसका अभिन अंग उत्तराखंड में बजगी की समुदाय रहा है परंतु जातिवाद और सामाजिक भेदभाव इस ओजी जाति के साथ चरम सीमा पर हमेशा रहा है इन लोगों को उत्तराखंड पर हास्य पर रखा गया है और यह लोग दलित में से भी महा दलित बन चुके हैं जिस कारण से इनका संवर्धन और संरक्षण राज्य की सरकार द्वारा करवाई जाना चाहिए और इनका आर्थिक एवं सामाजिक रूप से विकास के मुख्य धारा में लाया जाना चाहिए और इनको उत्तराखंड क्रांतिकारी घोषित कर दिया जाना चाहिए।
प्रदेश में बड़े दुख की बात है जो लोग सभी कार्यों में आगे रहते हैं आज सबसे ज्यादा पिछडा चुके हैं।
🚩🚩🚩🙏🙏🙏🇮🇳🇮🇳🇮🇳
Uttrakhand ki पहचान ढोल,,,✅✅✅✅✅✅✅✅
himachal mai dol devi devtaon ke sath bohot important hai
ईरान कभी पर्शियन (पारसियों) का देश था, और अब मुस्लिम देश है,उत्तराखंड भी कभी खसों का देश है/था,लेकिन अब वह क्या बनेगा? बताना जरा............
Lekin jaat k hisab se bol bol k logo ne apne cultural chod diya kyuki unko choti jat ka bola jata tha
bjp congress bhgao 60 lac desi or 20 lac muslim basa dye yha sare mafi ko job jameen pani jungle bech dya
Badi badi baate ! Shilpakar ko uk main kaya kahte hai unko gharo kain andar or mandiron mahin aaney dete hain kaya? Kewal maansikta badlo😊😊😊
Dhol walo ke sath Uttarakhand
Me jaati bhed bhaw Hota hai
Are sir ye sb chodiye thoda chakbandi pe video banaiye yaha khet ke khet banjar ho gaye hai.kheti nahi kar pa rahe hai ek khet kolkata mai to ek srinagar mai insaan kare to kya kare .😢
Uttarakhand maghe bhoo kanoon or bhari logo bhar nikalo🙏🏻
haridwar udham singh nagar hatao 2026 me parseeman me dikat ayegi seat badhegi yha sab 39 lac desi or 14 lac muslim nahar honge
Uttarakhand ki gdp me sbse jyada contribution ha in district ka wese bhi nhi hta sakte
Esko pujne walo ko bi hamare yaha ooojjiii ... Ji hi kaha jata hai
ajeeb hai na instrument important hai but play karne wale nhi. Unke sath to bhedbhav hota hai
i believe your ( majority) of audience is tolerant to supposedly controversial discussion, so trust your audience (majority of them, some of them will still will have knives out) and do not edit so deep when the guest is saying something nwhich could be unpalatable read controversial
Dhol ki thap or dhol ki taal .. hamare uttrakahand ka kan kan hai ... Eska matlab bahoot uncha hai esko yaha aise batana ek chooti si bat ho jayegi gir bhi apka prayas ..theek hai ...lekin eska kisi bhi sanskriti se milna jhulna dhol ka apman jaisa hai ..
Pandito me ar oji samaj me kitni bhinnata h kaam ek hi h bus jaati ka farak hone se oji samaaj ko ijjat na mili .. jarurat hai par respect nhi h.. yeh ek achaa pakhand hua h pahadiion k sath
Haridwar us magar bjp vongres ko hatao😡
श्रीमान बैक ग्राउंड में बहुत शोरगुल है, समझने में दिक्कत होती हैं। कृपया ठीक करे।
श्री मान मुझे तो नहीं सुनाई देरा है शोरगुल 😅
Unhone starting k shor sunke video bnd krdi Syd 😂@@SheetalNautiyal-dc8ws
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आजकल मंदिरों में भी यांत्रिक ढोल रख दिए है जिससे पहाड़ के मंदिरों मे भी ढोल वादक नही दिखते ये बड़ा दुखद है की पहाड़ की संस्कृति धीरे धीरे विलुप्त हो गई है इसका कारण जातिगत उपेक्षा भी है