भगवन शिव का जन्म कैसे हुआ ? How was Lord Shiva born?
HTML-код
- Опубликовано: 8 фев 2025
- भगवन शिव का जन्म कैसे हुआ ? How was Lord Shiva born?
भगवान शिव के जन्म, उनके स्वरूप और उनके महत्व को लेकर हिन्दू धर्म में अनेक पौराणिक कथाएँ और ग्रंथों में विस्तृत विवरण मिलता है। शिव पुराण, विष्णु पुराण और श्रीमद् देवी भागवत महापुराण जैसे ग्रंथों में भगवान शिव की उत्पत्ति और उनसे जुड़ी गाथाओं का वर्णन किया गया है। आइए भगवान शिव से जुड़ी इन पौराणिक कहानियों को विस्तार से समझते हैं।
शिव पुराण के अनुसार भगवान शिव को “स्वयंभू” माना जाता है, जिसका अर्थ है कि उनका जन्म स्वयं ही हुआ है। इसका सीधा मतलब यह है कि शिव किसी माता-पिता से उत्पन्न नहीं हुए, बल्कि वे आदि और अनंत हैं। वे पंचतत्व (आकाश, वायु, अग्नि, जल और पृथ्वी) से भी परे हैं। चूंकि भगवान शिव का न तो कोई प्रारंभ है और न ही कोई अंत, उन्हें अमर और सर्वशक्तिमान माना जाता है। उनकी यही विशिष्टता उन्हें त्रिलोक का स्वामी बनाती है। शिव पुराण में इस तथ्य का उल्लेख है कि मृत्यु का भी भगवान शिव पर कोई प्रभाव नहीं पड़ता।
विष्णु पुराण में भगवान शिव की उत्पत्ति का वर्णन कुछ अलग ढंग से किया गया है। इस ग्रंथ के अनुसार, भगवान विष्णु के माथे से निकलने वाली ऊर्जा के तेज से भगवान शिव की उत्पत्ति हुई। इसके अलावा, विष्णु पुराण यह भी बताता है कि भगवान विष्णु की नाभि से निकलने वाले तेज से कमल पर विराजमान ब्रह्मा जी का जन्म हुआ।
जहाँ विष्णु पुराण में भगवान विष्णु को शिव के जन्म का कारण बताया गया है, वहीं शिव पुराण का एक अन्य दृष्टिकोण है। इसके अनुसार, भगवान शिव के घुटनों से उत्पन्न मल से भगवान विष्णु का जन्म हुआ था। इन दोनों कथाओं के बीच भिन्नता यह दर्शाती है कि विभिन्न ग्रंथों में भगवान शिव के स्वरूप और उत्पत्ति के अलग-अलग दृष्टिकोण हैं।
शिव पुराण में भगवान शिव के स्वरूप को लेकर एक और अद्भुत कथा मिलती है। यह कथा उस समय की है जब भगवान विष्णु और भगवान ब्रह्मा के बीच इस बात पर विवाद हो गया कि कौन सबसे महान है। इस विवाद को सुलझाने के लिए भगवान शिव एक जलते हुए खंभे के रूप में प्रकट हुए। उस खंभे के प्रारंभ और अंत का पता लगाने का प्रयास भगवान विष्णु और ब्रह्मा ने किया, लेकिन दोनों असफल रहे। अंततः भगवान शिव ने अपने असली रूप में प्रकट होकर यह सिद्ध किया कि वे ही सबसे महान हैं। इस कथा से यह प्रतीत होता है कि भगवान शिव अनंत हैं और उनका कोई आदि-अंत नहीं है।
विष्णु पुराण में एक अन्य कथा है, जिसके अनुसार भगवान शिव ने ब्रह्मा के पुत्र के रूप में जन्म लिया। इस कथा में बताया गया है कि जब सृष्टि का निर्माण हो रहा था, तब भगवान ब्रह्मा को एक बालक की आवश्यकता पड़ी। उन्होंने भगवान शिव से पुत्र रूप में जन्म लेने का आशीर्वाद मांगा। भगवान शिव ने उनकी प्रार्थना स्वीकार की और एक बालक के रूप में प्रकट हुए। इस बालक को रुद्र नाम दिया गया, जिसका अर्थ है “रोने वाला”। कहा जाता है कि भगवान ब्रह्मा ने उन्हें 108 नाम दिए, जिनमें रुद्र, पशुपति, महादेव आदि शामिल हैं।
श्रीमद् देवी भागवत महापुराण में एक अन्य कथा मिलती है, जिसमें कहा गया है कि देवी दुर्गा और सदाशिव के योग से ब्रह्मा, विष्णु और महेश का जन्म हुआ। इस ग्रंथ के अनुसार, देवी दुर्गा समस्त सृष्टि की माता हैं और सदाशिव उनके पिता हैं। यह कथा यह दर्शाती है कि भगवान शिव को केवल शक्ति के स्वरूप के साथ ही पूर्णता प्राप्त होती है।
भगवान शिव को इस संसार का पहला गुरु माना जाता है। उन्होंने ही गुरु-शिष्य परंपरा की शुरुआत की। वे सप्तऋषियों के गुरु थे और उन्होंने इन्हें अपनी शिक्षा प्रदान की। ये सप्तऋषि आगे चलकर इस संसार में ज्ञान और धर्म का प्रचार-प्रसार करने वाले बने। कहा जाता है कि भगवान शिव ने केवल 60 शिष्यों को ही अपना ज्ञान दिया था।
भगवान शिव को उनके 108 नामों से जाना जाता है, जिनमें से प्रमुख हैं महादेव, पशुपति, शंकर, नीलकंठ, त्रिपुरारी, भोलेनाथ आदि। इन नामों का उल्लेख शिव पुराण और अन्य ग्रंथों में मिलता है। इन नामों के माध्यम से भगवान शिव की महिमा और उनके विभिन्न स्वरूपों का वर्णन किया गया है।
भगवान शिव को “ओम” का स्रोत माना गया है। कहा जाता है कि ओम का उच्चारण भगवान शिव के पंचमुखों से हुआ। यह पवित्र ध्वनि सृष्टि की उत्पत्ति और उसकी शक्ति का प्रतीक है। “ओम” को शिव का मूल मंत्र कहा जाता है और यह उनके अनंत स्वरूप को व्यक्त करता है।
भगवान शिव का स्वरूप उन्हें अन्य देवताओं से अलग बनाता है। वे जटाओं में गंगा को धारण करते हैं, उनके गले में सर्प लिपटा होता है और उनका तीसरा नेत्र ज्ञान, ऊर्जा और विनाश का प्रतीक है। भगवान शिव का नीला कंठ यह दर्शाता है कि उन्होंने सृष्टि की भलाई के लिए विष को अपने गले में धारण कर लिया था।
भगवान शिव केवल सृष्टि के संहारक ही नहीं, बल्कि एक शिक्षक और मार्गदर्शक भी हैं। उन्होंने अपने शिष्यों को जीवन के महत्वपूर्ण सिद्धांत सिखाए और धर्म की स्थापना की। वे योग के जनक भी माने जाते हैं।
भगवान शिव हिंदू धर्म के प्रमुख देवताओं में से एक हैं, जिन्हें अनंत और अपरिवर्तनीय माना जाता है। उनकी कहानियाँ न केवल उनकी महिमा का बखान करती हैं, बल्कि यह भी सिखाती हैं कि कैसे जीवन को संतुलित और धर्म के पथ पर अग्रसर किया जा सकता है। भगवान शिव की कथाएँ यह भी बताती हैं कि वे केवल सृष्टि के संहारक ही नहीं, बल्कि उसकी रक्षा और उत्थान करने वाले भी हैं।
Copyright Disclaimer Under Section 107 of the Copyright Act 1976, allowance is made for "fair use" for purposes such as criticism, comment, news reporting, teaching, scholarship, and research. Fair use is a use permitted by copyright statute that might otherwise be infringing. Non-profit, educational or personal use tips the balance in favor of fair use..