गुरु जी दुबना तो चीनी की तरह चाहते हम नवयुवक पर मध्यम वर्ग परिवार में होने के कारण जिम्मेदरिया समोसे की तरह कठौर बना रही है परन्तु आपके ज्ञान दर्शन से भविष्य में सब कुशल मंगल हो जाएगा आप सदा ज्ञान देना
मन जब शरीर या संसार रूपी वृक्ष में बहुत रम जाता है तो उसे आत्मा दिखाई देनी बन्द हो जाती है। हाँ, आत्मा को शरीर और मन दोनों दिखाई देंगे। वो संसार को भी देखेगा और स्वयं को भी। -आचार्य प्रशांत
आचार्य जी 🙏 श्वेताश्वतर उपनिषद् का यह श्लोक मैंने स्वामी चिन्मयानंद जी की " मुंडकोपनिषद् " ग्रंथ में तृतीय मुंडक - प्रथम खण्ड में पढ़ा हैं। खैर इस श्लोक का श्वेताश्वतर उपनिषद् में " उद्धरण " सुन कर फिर से स्वामीजी के ग्रंथ की याद आयी ! ☺️🙏
“ The Upanishads are the great mine of strength. Therein lies strength enough to invigorate the whole world; the whole world can be vilified, made strong, energised through them. ” ~Vivekananda
प्रेम प्रणामजी, इस संसारमे जीव सृष्टि और ब्रम्ह सृष्टिके अलग रहेनीको बताया गया है जैसै जादुगरके कबुतर और दुसरा original वाला कबुतर! आपकी ज्ञान से मुझे मार्फत तक जाने के लिए सोपान है आचार्यजी! उल्झी हुए पहेलिको बारीक तरह से साथ देती है, धन्य है आप और मेरे धनी श्री राज!
संस्था से संपर्क हेतु इस फॉर्म को भरें: acharyaprashant.org/enquiry?formid=209 आचार्य प्रशांत से वेदांत पढ़ना चाहते हैं? शुरुआत करें इस कोर्स से: solutions.acharyaprashant.org/course/sarvasar-upanishad?cm=12mc-ex-7.12
किंतु आचार्य जी हम यह आरोपित या कैसे कह सकते हैं कि,, जो देख रहा है वह आत्मा या साक्षी ही है क्योंकि वो जो देख रहा है वो मन का भी तो कोई हिस्सा हो सकता है जो देखने में रूचि रख रहा हो?
😊😄 kyonki yaha bate hi hm jaise logo ki (ahankari) aur aatma (jo sakshi h) ki ho rahi h.. Upnishad hamare lie hi to h n.. Taki hamari taklif ya ahankar khtm ho.. Fr hm b shakchhi bane...
प्रिय मित्र, ये देखकर अच्छा लगा कि जैसे ही आपने ‘दो पक्षी’ वाला उदाहरण देखा आपको सीधा मुण्डक उपनिषद याद आया। यहाँ तक ये बात ठीक है। लेकिन यही उदाहरण श्वेताश्वतर उपनिषद के चौथे अध्याय में भी मिलता है। ऐसा आपको उपनिषद वांगमय में अन्य जगहों पर भी देखने को मिलेगा: रज्जु यानी रस्सी में साँप दिखना, घड़े के टूटने से भीतर और बाहर के आकाश का मिल जाना, लकड़ी के भीतर आग छिपी होना, ये सभी उदाहरण अलग-अलग उपनिषदों में अलग-अलग जगहों पर पाए जाते हैं। ऐसा कह सकते हैं कि वैदिक ऋषियों के सबसे पसंदीदा उदाहरण हैं अपनी बात को सरलता से आप तक पहुँचाने के लिए। ------ मुण्डक उपनिषद (3.1.1 - 3.1.2) श्वेताश्वतर उपनिषद (4.6 - 4.7) ये श्लोक दोनों स्थानों पर मौजूद हैं: 🔸 द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते। तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति॥ दो सुन्दर पंखों वाले पक्षी, घनिष्ठ सखा, समान वृक्ष पर ही रहते हैं; उनमें से एक वृक्ष के स्वादिष्ट फलों को खाता है, अन्य खाता नहीं अपितु अपने सखा को देखता है। 🔸 समाने वृक्षे पुरुषो निमग्नोऽनिशया शोचति मुह्यमानः। जुष्टं यदा पश्यत्यन्यमीशमस्य महिमानमिति वीतशोकः ॥ ‘पुरुष' (आत्मा) ही वह पक्षी है जो समान वृक्ष पर बैठकर (आस्वाद लेने में) निमग्न है; क्योंकि वह 'अनीश' है (स्वयं का ईश नहीं है) वह मोह के वशीभूत होकर शोक करता है। किन्तु जब वह उस अन्य को देखता है जो 'ईश' है, प्रेमी है, तब वह जान जाता है कि जो कुछ भी है, वह 'उसकी' महिमा है, और वह शोकमुक्त हो जाता है।
Acharya ji , agar khane ko na mile aur iss baat Ka bodh ho Jaye? to jo Mila Nahi uska tyag ? sirf viphalta Ka asantosh chhodta hai?......to kya sansarik saflta hasil kerna aavasyak Nahi hai...bhogna/nabhogna bad ki bat hui???...kripya Prakash dale🙏
आपको जितना सुनो,,,
उतना ही अधिक प्रेम होते जाता है...
जब आसक्त जीव आसक्तियों का त्याग कर देता है तो शोक से मुक्त हो जाता है।
-आचार्य प्रशांत
Ab samjh me aaya Upnishad me kitna ras hai
डूबने के लिए वो विषय चुनो, जो तुम्हें मिटाए।
डूबने के लिए वो विषय मत चुनो, जो तुम्हें और पक्का कर दे।
-आचार्य प्रशांत
True
उपनिषदों को इतना सरल बनाने के लिए नमन🙏🙏
गुरु जी
दुबना तो चीनी की तरह चाहते हम नवयुवक पर मध्यम वर्ग परिवार में होने के कारण जिम्मेदरिया समोसे की तरह कठौर बना रही है परन्तु आपके ज्ञान दर्शन से भविष्य में सब कुशल मंगल हो जाएगा आप सदा ज्ञान देना
नियत जैसी होगी, नतीजा वैसा होगा।
आरंभ जैसा होगा, अंत वैसा होगा।
-आचार्य प्रशांत
Yeh kis discourse ka quote hai?
Upnishad se parichay karane ke liye dhanyawad sir...🙏🙏
Acharyaji is doing great service to the mankind by connecting common men with the Upnishads.
शक्कर शिंकजी बन गई ,पर बनने से पहले बड़ी मिठास छोड़ गई ! अचार्य प्रशान्त ~
धन्यवाद आचार्य जी
आनंद तो आपको सुनने में ही आता है।
जब तुम भोग में आसक्ति छोड़ देते हो
तो शोक भी छोड़ देते हो।
-आचार्य प्रशांत
मन जब शरीर या संसार रूपी वृक्ष में बहुत रम जाता है तो उसे आत्मा दिखाई देनी बन्द हो जाती है।
हाँ, आत्मा को शरीर और मन दोनों दिखाई देंगे।
वो संसार को भी देखेगा और स्वयं को भी।
-आचार्य प्रशांत
nice
नियत शुरुआत होती है, नतीजा उसका अंत होता है। 🙏🙏
आचार्य जी 🙏
श्वेताश्वतर उपनिषद् का यह श्लोक मैंने स्वामी चिन्मयानंद जी की " मुंडकोपनिषद् " ग्रंथ में तृतीय मुंडक - प्रथम खण्ड में पढ़ा हैं। खैर इस श्लोक का श्वेताश्वतर उपनिषद् में " उद्धरण " सुन कर फिर से स्वामीजी के ग्रंथ की याद आयी ! ☺️🙏
“ The Upanishads are the great mine of strength. Therein lies strength enough to invigorate the whole world; the whole world can be vilified, made strong, energised through them. ” ~Vivekananda
Is your immersion leading to dissolution or consolidation?
-Acharya Prashant
🙏🙏🙏 शक्कर शिकंजी बन गई... जय हो..सादर सतत नमन 🙏🙏🙏
प्रेम प्रणामजी, इस संसारमे जीव सृष्टि और ब्रम्ह सृष्टिके अलग रहेनीको बताया गया है जैसै जादुगरके कबुतर और दुसरा original वाला कबुतर! आपकी ज्ञान से मुझे मार्फत तक जाने के लिए सोपान है आचार्यजी! उल्झी हुए पहेलिको बारीक तरह से साथ देती है, धन्य है आप और मेरे धनी श्री राज!
निशब्द। जय श्री कृष्ण आचार्य जी
Hare krishna
To understand what he says is Machurity.
If commen people hear this they will say bolna kya cahta ho acharya ji
बहुत सरल तरीके से समझाते है गुरु जी। सोचा नहीं था उपनिषद समझेंगे। शत् शत् नमन गुरु जी
Kaash sunti hi jaanu sunti hi jaanu ATI Sundar ATI Sundar Aacharya Ji ko Mera sat sat pranam
Naman Acharya ji
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आचार्य प्रशांत से वेदांत पढ़ना चाहते हैं?
शुरुआत करें इस कोर्स से: solutions.acharyaprashant.org/course/sarvasar-upanishad?cm=12mc-ex-7.12
🙏🙏🙏 jai shree krishna... Aacharya ji
Dekhnay main Maaza nice
Naman Acharyajii 👏🌷👏
Aacharya ji pranam
Sabase jyada aacha laga is video se
नमस्ते गुरु जी... आपका बहुत बहुत धन्यवाद 🙏
अपनी रुचियों के प्रति भी सावधान रहें। 🙏🙏
मस्त सुंदर आचार्यजी
Naman Acharya ji koti koti pranam. ......
Dhanyavad Acharya ji. ...
आचार्यजी एकदम सही हैं प्रणाम
Naman Acharya ji. ..
नमन आचार्य जी 🌺🙏
I am grateful to you dear sir 🌼🌈🤲🎤=🔋+💡.
महात्मा की जय हो!
Acharyaji Pranaam .apka dhanyawad.
Bahut sundar
आचार्य जी को प्रणाम.
Aapka dhanyavaad!!!
आचार्यजी प्रणाम
धन्यवाद आचार्य जी
प्रणाम आचार्य जी 🙏
Ati Sundaram
Thank u🙏
Adbhut Acharya ji dhanyawad
Naman
Guruji pranam thanks
इस विडियो के लिए धन्यवाद आचार्य जी,प्रणाम!
🌹🙏🌹🙏🌹
Beautiful sir 🌹
बढ़िया विडियो है!🌹👌👏👍🌹
🙏🙏
🙏🏻🙏🏻🐦🐦
धन्यवाद
Thank you Sir
❣️❣️❣️उपनिषद🥰🥰🥰
🙏
Awesome.
sahi bata rahe hain woh bhi saral bhasa main
🙏🙏🙏🙏🙏
किंतु आचार्य जी हम यह आरोपित या कैसे कह सकते हैं कि,, जो देख रहा है वह आत्मा या साक्षी ही है क्योंकि वो जो देख रहा है वो मन का भी तो कोई हिस्सा हो सकता है जो देखने में रूचि रख रहा हो?
😊😄 kyonki yaha bate hi hm jaise logo ki (ahankari) aur aatma (jo sakshi h) ki ho rahi h.. Upnishad hamare lie hi to h n.. Taki hamari taklif ya ahankar khtm ho.. Fr hm b shakchhi bane...
🙇🙇
सुपर आचार्यजी बहुत सुंदर वचन
Sahi
📖😇🙂🙏
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
प्रणाम आचार्य. यह श्लोक 'मुण्डकोपनिषद'का है/शायद मैं गलत हो सकता हूं/ पादस्पर्शं क्षमस्वमे/
प्रिय मित्र,
ये देखकर अच्छा लगा कि जैसे ही आपने ‘दो पक्षी’ वाला उदाहरण देखा आपको सीधा मुण्डक उपनिषद याद आया। यहाँ तक ये बात ठीक है। लेकिन यही उदाहरण श्वेताश्वतर उपनिषद के चौथे अध्याय में भी मिलता है।
ऐसा आपको उपनिषद वांगमय में अन्य जगहों पर भी देखने को मिलेगा: रज्जु यानी रस्सी में साँप दिखना, घड़े के टूटने से भीतर और बाहर के आकाश का मिल जाना, लकड़ी के भीतर आग छिपी होना, ये सभी उदाहरण अलग-अलग उपनिषदों में अलग-अलग जगहों पर पाए जाते हैं।
ऐसा कह सकते हैं कि वैदिक ऋषियों के सबसे पसंदीदा उदाहरण हैं अपनी बात को सरलता से आप तक पहुँचाने के लिए।
------
मुण्डक उपनिषद (3.1.1 - 3.1.2)
श्वेताश्वतर उपनिषद (4.6 - 4.7)
ये श्लोक दोनों स्थानों पर मौजूद हैं:
🔸 द्वा सुपर्णा सयुजा सखाया समानं वृक्षं परिषस्वजाते।
तयोरन्यः पिप्पलं स्वाद्वत्त्यनश्नन्नन्यो अभिचाकशीति॥
दो सुन्दर पंखों वाले पक्षी, घनिष्ठ सखा, समान वृक्ष पर ही रहते हैं; उनमें से एक वृक्ष के स्वादिष्ट फलों को खाता है, अन्य खाता नहीं अपितु अपने सखा को देखता है।
🔸 समाने वृक्षे पुरुषो निमग्नोऽनिशया शोचति मुह्यमानः।
जुष्टं यदा पश्यत्यन्यमीशमस्य महिमानमिति वीतशोकः ॥
‘पुरुष' (आत्मा) ही वह पक्षी है जो समान वृक्ष पर बैठकर (आस्वाद लेने में) निमग्न है; क्योंकि वह 'अनीश' है (स्वयं का ईश नहीं है) वह मोह के वशीभूत होकर शोक करता है। किन्तु जब वह उस अन्य को देखता है जो 'ईश' है, प्रेमी है, तब वह जान जाता है कि जो कुछ भी है, वह 'उसकी' महिमा है, और वह शोकमुक्त हो जाता है।
आचार्यजी मेरा एक प्रश्न हे
समझ अहंकार से अलग होती हे या अहंकार ही समझता हे
Samajh Mane intensity Bodh Atma ko hota hai Man Ko Nahin
Acharya ji , agar khane ko na mile aur iss baat Ka bodh ho Jaye? to jo Mila Nahi uska tyag ? sirf viphalta Ka asantosh chhodta hai?......to kya sansarik saflta hasil kerna aavasyak Nahi hai...bhogna/nabhogna bad ki bat hui???...kripya Prakash dale🙏
🙏👌💯🌞
🙏🌷
This story is from mundkan upnishad, I think
🌹💐🙏
❤❤❤❤❤
भीतर भगवान को
💛
👍👍
Bhogta vs sakshi
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
😌
👍🙏🙏
Maitrey aur katyani bhi esa hi hai na
Questions is why second one is watching the first one. Is second one bound to see the first one or he is free from everything.
He is seeing everything, that why he is free from everything.
2 pakshi nhi hai pakshi 1 he ha ik sarir ha ik pakshi ha..chetna ka..bs
Aap mujhe shi samaye pe milgaye
Hey Ptabhu tu hi tu hai bash
...
Naman aacharya ji
🙏🙏
🙏🏻🙏🏻🙏🏻🙏🏻
🙇🙇
प्रणाम आचार्य जी 🙏🙏🙏🙏
🙏🏼🙏🏼🙏🏼🙏🏼
♥️
🙏🙏🙏🌸🌷🌹
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Naman Acharya g
🙏🙏