श्रीमद्भगवद्गीता || अध्याय3 श्लोक27 || प्रकृति के गुण और अहंकार का भ्रम || आचर्य प्रशांत ||

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  • Опубликовано: 12 сен 2024
  • प्रकृतेः क्रियमाणानि गुणैः कर्माणि सर्वशः।
    अह‌ङ्कारविमूढात्मा कर्ताहमिति मन्यते ।27।
    यथार्थ में प्रकृति के तीन गुणों से उत्पन्न शरीर और इन्द्रियों के द्वारा ही संसार के सब काम होते हैं लेकिन अहंकार से अंधा मनुष्य सोचता है- मैंने किया ।
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    जिस कर्मकांड और धारणों को सनातन धर्म मान बैठे हैं वो है ही नही, वास्तविक सनातन धर्म तो गीता उपनिषद..है
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Комментарии • 4

  • @TatvamAsi_800BCE
    @TatvamAsi_800BCE Месяц назад +1

    ॐ सचिदानंद रूपाय विश्वतपत्याधीहेतवे
    तापत्रय विनाशाय श्रीकृष्णाय वयं नमः 🪔

  • @MdKuddus-u7y
    @MdKuddus-u7y Месяц назад

    ❤❤❤❤

  • @Nishhab
    @Nishhab Месяц назад

    Om namah shivay!

  • @anandraj6489
    @anandraj6489 5 дней назад

    ये जानना ही की तुम सो रहे हो तुम्हारे जागने का प्रमाण है