गोपेश्वर की अदभुत प्रस्तुति ||
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- Опубликовано: 5 фев 2025
- चमोली गोपेश्वर भारत के उत्तराखण्ड राज्य के अन्तर्गत गढ़वाल मण्डल का एक प्रमुख नगर है। यह चमोली जनपद का मुख्यालय है।
समय मंडल: आईएसटी (यूटीसी+५:३०)देश भारतराज्यउत्तराखण्डजनसंख्या
• घनत्व21,447 (2011 के अनुसार )
• 1,523/किमी2 (3,945/मील2)क्षेत्रफल
• ऊँचाई (AMSL)14.08 km² (5 sq mi)
• 1,550 मीटर (5,085 फी॰)
विभिन्न कोड
• पिनकोड• 246401• गाड़ियां• यूके 11
चमोली और गोपेश्वर इतिहास के अधिकांश भाग में पृथक कस्बे रहे हैं। चमोली अलकनंदा नदी के किनारे अपनी स्थिति के कारण बद्रीनाथ यात्रा का एक मुख्य पड़ाव था, जबकि गोपेश्वर नौवीं शताब्दी में निर्मित गोपीनाथ मंदिर के इर्द-गिर्द बसा एक प्रसिद्ध धार्मिक स्थल था। शेष गढ़वाल की तरह ही यहाँ भी प्राचीनकाल में कत्यूरी राजवंश का शासन था, जिनकी राजधानी पहले जोशीमठ, और फिर कार्तिकेयपुर (बैजनाथ) में थी।[1] ग्यारहवीं शताब्दी में कत्यूरी साम्राज्य का विघटन हो गया, जिसके बाद सारा गढ़वाल 52 छोटे-छोटे ‘गढ़ों’ में विभाजित हो गया था। इन सभी गढ़ों में अलग-अलग राजा राज्य करते थे, और उन्हें ‘राणा’, ‘राय’ या ‘ठाकुर’ के नाम से जाना जाता था। 823 ई. में बद्रीनाथ मंदिर की यात्रा पर आये मालवा के राजकुमार कनकपाल ने चाँदपुर गढ़ी के मुखिया, राजा भानु प्रताप, की पुत्री से विवाह कर दहेज में गढ़ी का नेतृत्व प्राप्त किया।[2] इसके बाद उन्होंने दूसरे गढ़ों पर आक्रमण कर अपने राज्य का विस्तार प्रारम्भ किया, और गढ़वाल राज्य की नींव रखी। धीरे-धीरे कनकपाल और उनकी आने वाली पीढ़ियाँ, जो परमार या पंवार वंश के नाम से विख्यात हुई, एक-एक कर सारे गढ़ जीत कर अपना राज्य बढ़ाती गयीं। इस तरह से सन् 1358 तक सारा गढ़वाल क्षेत्र इनके कब्जे में आ गया।[3]
अगले 918 सालों तक पंवारों ने गढ़वाल पर निर्विघ्न राज्य किया। अट्ठारवीं शताब्दी के अंत तक नेपाल के गोरखा राजाओं ने डोटी (1760) और कुमाऊँ(1790) पर अधिपत्य कर लिया था।[4] सन् 1803 में देहरादून में गढ़वाल और गोरखाओं की एक लड़ाई हुई, जिसमें गोरखाओं की विजय हुई और राजा प्रद्वमुन शाह मारे गये। धीरे-धीरे गोरखाओं का प्रभुत्व बढ़ता गया और उन्होनें इस क्षेत्र पर करीब 12 साल राज्य किया।[4] एक समय में गोरखा राज्य कांगड़ातक फैला गया था, लेकिन फिर महाराजा रणजीत सिंह ने कांगड़ा से गोरखाओं को निकाल बाहर किया। दूसरी तरफ ईस्ट इंडिया कम्पनी ने 1814 में गोरखाओं पर आक्रमण कर दिया।[5] एक वर्ष तक चले आंग्ल-गोरखा युद्ध में कम्पनी विजयी हुई, और 1816 की सुगौली संधि के अनुसार गढ़वाल के साथ साथ हिमाचल और कुमाऊँ पर भी कम्पनी शासन स्थापित हो गया।[6] कंपनी ने फिर मन्दाकिनी नदीको सीमा बनाकर गढ़वाल का विभाजन कर दिया, और कुमाऊँ, देहरादून और पूर्वी गढ़वाल को अपने शासनाधीन रख लिया, जबकि पश्चिमी गढ़वाल राजा सुदर्शन शाह को दे दिया, जो बाद में टिहरी-गढ़वाल रियासत के नाम से जाना गया।[7] इस विभाजन में यह क्षेत्र पूर्वी गढ़वाल के अंतर्गत आया था, और फलस्वरूप कुमाऊँ मण्डल के अंतर्गत गढ़वाल जिलेका भाग बना, जिसकी स्थापना सन् 1839 में हुई थी।
1960 में जब चमोली जिले की स्थापना की घोषणा हुई, तो इसका मुख्यालय चमोली को बनाया गया। गोपेश्वर तब चमोली से 12 किलोमीटर की दूरी पर स्थित एक छोटा सा गाँव था। 1963 में चमोली और गोपेश्वर को जोड़ती एक सड़क का निर्माण कार्य पूर्ण हुआ।[8] अलकनन्दा घाटी में बसा चमोली अक्सर बाढ़ की चपेट में रहता था। घाटी में स्थित होने के कारण नगर का भौगोलिक विस्तार भी मुश्किल था। इन्हीं सब कमियों पर गौर करते हुए जिले के मुख्यालय को अन्यत्र स्थानांतरित करने के प्रयास शुरू हुए। 1966 में गोपेश्वर ग्राम में राजकीय डिग्री कॉलेज खोला गया, और फिर 1967 में इसे नगर का दर्जा दे दिया गया।[8] 20 जुलाई 1970 को अलकनंदा नदी में आयी एक बाढ़ में चमोली नगर का अल्कापुरी क्षेत्र पूरी तरह बह गया।[8] इस घटना के बाद जनपद के मुख्यालय तथा अन्य सभी महत्वपूर्ण कार्यालय गोपेश्वर में स्थापित कर दिए गए। 1974 का चिपको आंदोलन भी इस क्षेत्र की अति महत्वपूर्ण घटना मानी जाती है।[9] अगले कुछ वर्षों में चमोली और गोपेश्वर नगरों को जोड़कर एकीकृत चमोली-गोपेश्वर नगर पालिका परिषद् का गठन किया गया, 1981 की जनगणना के अनुसार जिसकी जनसंख्या 9,734 थी।
WOW hamara gopeshwar bohut hi Jada achaa lag raha haa
Hm bhai
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बहुत सुंदर
सुंदर
Awesome
Tnq bhula
धन्यवाद जी
Nice
Bdiya
Tnq
🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Amazing
Uk 11
Bahut sundar apna gopeshwar
Tnq so much
Nice