भारत में इस्लामी शासन काल से पहले कोई भी मैला उठाने का काम नही करता था सभी लोग अपने-अपने घरों की सफाई खुद ही करते थे लेकिन मुस्लिम शासकों ने जिन हिन्दुओं ने इस्लामी गुलामी कबुल नही की उनको भंगी बना दिया था ये राजपूत थे
सुप्रसिद्ध साहित्यकार और इतिहासकार, अंगिरा पुत्र पत्रिका के सम्पादक श्री राम शरण युयुत्सु जी के निधन पर अखिल भारतीय पांचाल ब्राह्मण मंच अपनी शोक संवेदना व्यक्त करता है तथा दिवंगत आत्मा को शांति हेतु हम प्रभु विश्वकर्मा जी से प्रार्थना करते हैं ।आपके निधन से समाज को बहुत क्षति पहुंची है। शोकाकुल पं.रविदत्त शास्त्री पांचाल राष्ट्रीय संयोजक अ भा पांचाल ब्राह्मण मंच
@@R_Solanki97ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
Hum Uttarakhand ke Shilpakar Samaj se hain.. Humein "Arya Shilpakar Samaj" bhi kaha jaata hai uttrakhand main.. Bada Proud hua..humare bhai dusre States main itna acha kar rahe hain..❤❤
विश्व एवम् संपूर्ण सृष्टि के रचयिता विश्वकर्मा जी ने ब्रह्मा,विष्णू ओर महेश ये तीन महादेवो और मां गायत्री, मां लक्ष्मी ओर मां ऊमा गौरी को उत्पन किया। ओर पृथ्वी लोक पर त्रिलोक वासी पंचमुखी त्रिभुवन विश्वकर्मा के पांच स्वरुप,पांच दिशा से पांच पुत्रो को उत्पन किया प्रथम पुत्र मनु महाराज प्रथम सवरूप, १,विराट विश्वकर्मा :- पूर्वादिशा से सागन संकल्प जटाधारि ऋषि मनु(सागन ,घन पदार्थ) २. धर्मावंशी विश्वकर्मा:- दक्षिण दिशा से सनातन(धर्म)) संकल्प जटाधारी ऋषि मय ३.अंगिरा वंशी विश्वकर्मा:- पश्चिमदिशा से अहंभुन संकल्प जटाधारी ऋषि त्वष्टा ४. सुंधावा वंशी विश्वकर्मा:-उत्तरमुख से प्रयत्न (कार्य) संकल्प जटाधारी ऋषि शिल्पी ५. भृगुवंशी विश्वकर्मा :-ईशान दिशा के मध्यमुख से सुपर्ण(आकार) संकल्प जटाधारी ऋषि देवज्ञ है। मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी ओर देवज्ञ पांच सृष्टि के प्रथम सूत्रधार है। और ब्रह्मा जी ने २५,२५ गोत्र की ओर प्राणी मात्र की पृथ्वी लोक पर उत्पत्ति की। एवम् वेद,संस्कृत भाषा भी सिखाई।
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
@@satyanarayantilawat3327ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
आप पांचाल ब्राह्मणों की साहित्य को समाचारपत्रो पत्रिकाओं में प्रकाशित करवा दिया करो जिससे जन मानस तक पहुंच सके। पं०सुशील कुमार शर्मा ( वैदिक ब्राह्मण)।
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
@@propertieskanpurब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
@@abhaytiwari9316 No, all the Hindus are not the same clan. Because some of them are the outsiders and other tribes whose forefathers adopted Sanatana Dharma or Vaidik Dharma, and they became the Hindus, but they are not pure Hindus by their birth.
@@sureshvishwakarma7051 yes, do you know why? Because of many outsiders attacked in India (Bharata) like Turks, Mughals, Afghans, Britishers, etc. in years ago or more than 1000 years. Thanks!
@@semikvishwakarma1589 but y others Brahmins didn't left their Brahmin practice apart from our ancestors arseya Brahmin who were rigid on their Dharm they still have their Brahmin status with them
Jai vishwakarma samaaj....hmara vishwakarma samaaj sarvsrestha brahman h tha or rhega......chaahe koi kitni hi koshish krle hme dbane ki.....hm ooche h sbse ooche h....Jai_baba_vishwakarma
@@vikasharma0007 kabhi apne. Vishwa krma ki. Samaj hi. Halat dekhlo Jake. Upanayan. Sanskar chod rehehe. Boltehen. Eska koi fayada nehi bolke. Sudra ko bina. Jane unko vi apneme Mila dete hen 😑😑😑 srvasherst. Ya. Sraap he ea. 😐😐😐
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
Aap log apne samaj ko ikjut karo jab kahi problem ho to waha support sare brahman sanghatan ik ho Jaye chahe vo bhumihar brahamn chitpawan brahman mohiyal brahman,karmkand brahmin ho,giri brahmin goswami brahmin panchal brahman,jangid brahmin vishwakarma ye sab sub sanghatan ik ho jaye turant sab bhagdari kare waha yahi rule politics me bhi kare brahman koi bhi ho but but usko support mare tum log sare obc ki taraf se support karawao obc ko lead karo tum log
Sabhi vishwakrma bhaiyoo se nibedan ......🙏🙏🙏 Hamari samaj or sastro ke mitne ki sabse mitne ki sabse badi wajah hain logo ke vichar aaj ke vishwakrma kuch jo serf khud ko brahmin bolna chahte h kuch vo bhi nhi bolna chahte Pr koe bhi na toh sikha rakhna chahta h na sastra padna jo hame padne bola h na asthang yug krna na sathkarm krna na yagyopabit dharn krna Toh kis cheej ke brahmin ? Pahle jo sastra main vidhan hamare liye likha vo toh suru kro Brahmin kahne se koe brahmin nhi hota pura rule follow kro or samaj badao ...🙏
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
Naman hai app jaise vidhvaan ko. Mera nani Nana ka Ghar bhi patiala road par hai. Late partap Jangra(SHO) mere Nana Thai. Jai vishwakarma ji, jai shreeraam
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
Jay shree Vishwakarma ji Maharaj 🪓🪓⚒️🤗🤗 🟡🟡💛🟡💛🟡💛🟡🟡💛💛🟡💛🟡💛💛🟡🟡💛💛🟡🟡🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛💛💛🟡💛🟡💛🟡🟡💛💛🟡💛🟡💛🟡💛💛🟡💛🟡🟡💛🟡💛🟡💛💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛💛💛🟡🟡💛🟡💛🟡🟡💛🟡🟡💛🟡🟡💛🟡💛💛🟡🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡🟡💛🟡🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡🟡🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛
Baba g ki bat bilkul satya h jab se karamkand chalu hua vishawbrahma vishawkarma ban ge aur ak jati barahman ban gi ,,aur jatia kam sikhne lagi to yh kam neech hogya ,,lekin kool se ham aaj v saresht h ,,,jai vishawbrahman samaj
SHRI PANCHAL SAMAJ KE BARE ME JO BHI BOOKS HAI KOI UNKE NAAM JANTA HAI TOH KRIPAYA MUJHE ISS COMMENT PR BOOK KE NAAM MENTION KARE. I NEED TO DO SOME REEARCH ON THE THE PANCHAL COMMUNITY OF MAHARASHTRA.THANK YOU. JAI SHREE VISHWAKARMA
Aap bhut bde gyani ho Esme koi sak nhi 🙏......pr Mera manna h ki Bachho ko bdeya siksha do Mera to Etna manna h jb bachha ek achha IAS ,IPS, doctor etc bnega tb dunia apne aap salam thokegi..,.Jai hind jai bharat 🇮🇳🇮🇳🇮🇳
सिर पै चोटी गले जनेऊ ब्राह्मण धारण करते हैं गुरु मंत्र गायत्री जपते पंच यज्ञ नित्य करते हैं विश्व कर्मा भगवान् हमारे मन मन्दिर में वसते है शिल्प कला विख्यात जगत में आर्य पुत्र कहलाते हैं।।
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
Hmare samaj me shiksha ki bhot kami h.....jis din sbhi vishwakarma bhaiyo ko purn gyan ho jaega n....to kisi ke baap me dm nahi ki koi inhe rok le....Jai_Baba_Vishwakarma jai dada Parashuram
Shiksa ki akalki Kami he. Joki apne kr. Sudroki. Farak. Nehi samj parehen 😑😑😑😡😡😡. Etana hi. Nehi. Upanayan sans kar chod rehe hen kuch. Chalak. Admi 😑.
@@VaiShNav51tumko itna patah nhi hai ki lohar ki vishwakarma mah aata hai panchal mah panchal matlab kya hota hai five usma lohar bhi aata hai bhai Thora Gyan rakho 😂😂
Sir Panchal is a group of five casts. These all believed to be in the lineage of Shri Vishavakarma. You may consider Vishvakarma ji as the chief architect and engineering of the gods. These five casts are : Lohar ( blacksmiths ), carpenters ( Badhi) goldsmiths ( sunar) stonemasons and coppersmith.
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है। ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है। ‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है। ‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है। ‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है। ‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
भगवान ब्रम्हा जी ही विश्कर्मा जी है या यूं कहें कि ब्रम्हा जी ही विश्कर्मा जी हैं विश्कर्मा जी ब्राह्मण है इसी में जांगिड़ ब्राह्मण भी आते है महराज आप की बूक हमे लेना है कहा मिलेगी कैसे मंगाए बताइये हम तो अपने आप को रावण वँशी ही कहते है रावण महान ब्राह्मण थे 🙏🙏
Barhmma or vishwkarma.vagwan ak hokar vhayi k sorup hai dono vhayi ke bansaj se lagan huya hai bahrma.ne risi muni ko janam doya.vishwkarma.vagwan.ne apne pacho putro ke sath devi.debta ko janam doya
Or dono ke bache se sadi.bibah huya hai sanar chalane ke liye hai.vagwan vishwkarma.ke.pacho putr.pirthibi par.sakar.rup.me.sadharan hai or devi devta adirist.hai bas.itne antar hai
But time aagya ab ik ik dushre brahman bhai ka support kerne ka chahe vo politics ho ya upsc uppcs tum log obc me but giri brahmin obc goswami brahmin obc bhi aate hai but tum log obc se maximum ias ips judge professor udogpati ye sab bano obc ka sara profit yadav le rha isko takker do obc se
अमेरिका की मय सभ्यता के अवशेष प्राचीनतम सभ्यता के सबूत है। किंतु भारत का दुर्भाग्य ये है कि सभी इतिहासकार व इतिहासविदों को हड़प्पा सभ्यता को वैदिक बताने की होड़ लगी है।
Qkuki vagwan jante the ane bale kalyug me jitne vi sakti sakchat rahega in panta sab apne ko mahan bane ke liye mere santan ke sath isi tarahduts bevhar hoga
Dust vhevhar hoga vishwkarma kabansaj barmrisi santan hai vedo me lekin koyi mane ko teyar nhi is lite kalyug me siraf vedo me namrah gya hai bakisabmilabat hai
Valmiki samaj ki traf se Panchal samaj ko parnaam🙏🙏
🌹🌹🙏
प्रणाम भाई जी
भारत में इस्लामी शासन काल से पहले कोई भी मैला उठाने का काम नही करता था सभी लोग अपने-अपने घरों की सफाई खुद ही करते थे लेकिन मुस्लिम शासकों ने जिन हिन्दुओं ने इस्लामी गुलामी कबुल नही की उनको भंगी बना दिया था
ये राजपूत थे
वाल्मिकी समाज को शत शत प्रणाम
Thanks sir apne panchal samaj ( vishvakarma brahman ) ko jagrukta milegi 🙏🙏🙏Jay shree vishvakarma
Kya asli Brahmin apko Brahmin mante hain?
श्री रामशरण युयुत्सु जी का देहवासन आज 16/5/2021 को हो गया है। इतिहासजगत कि अपूर्णीय क्षति। ॐ शांति।
Om Shanti 🙏
Om santi santi santi
om shanti
Om shanti
😭😭😭🙏
मला गर्व आहे मी पांचाळ सुतार (हिंदू ब्राह्मण सुतार) आहे..... धन्यवाद ❤️🥀 विश्वकर्मा समाजाचा इतिहास समोर आणल्याबद्दल 🥀☺️🙏
सही कथन है ------यद्यपि मैं वंश परम्परा से सनाढ्य ब्राह्मण हूं लेकिन आप के कथन में मुझे कोई त्रुटि नहीं लगती है 🌹🇮🇳🕉️
सुप्रसिद्ध साहित्यकार और इतिहासकार, अंगिरा पुत्र पत्रिका के सम्पादक श्री राम शरण युयुत्सु जी के निधन पर अखिल भारतीय पांचाल ब्राह्मण मंच अपनी शोक संवेदना व्यक्त करता है तथा दिवंगत आत्मा को शांति हेतु हम प्रभु विश्वकर्मा जी से प्रार्थना करते हैं ।आपके निधन से समाज को बहुत क्षति पहुंची है।
शोकाकुल
पं.रविदत्त शास्त्री पांचाल
राष्ट्रीय संयोजक
अ भा पांचाल ब्राह्मण मंच
Namste ji
Apni kuldevi kon h ji
Vill Raichandwala Jind
Namaste sir inki yh dono book kaha se mil sakti hai?
@@R_Solanki97ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
@@the_invincible-yh3uf dhanyawad sir main in Book ko jarur padunga!
सर्व श्रेष्ठ उच्च समाज पांचाल विश्वकर्मा सुतार लोहार ताम्रकार शिल्पकार दैवज्ञ ब्राह्मण समाज
Bhai lohar hu...Dhiman surname likhte hai...or schedule caste me hu...
Caste discrimination hota hai aaj bhi....aaj bhi Himachal me
@@amitraghuwanshi4895 mp me Lohar general me h
Asa kyu brahmins hai to hmlg ko haq kyu ni mila
@@amitraghuwanshi4895aap Galat Bol rahe hai, adiwasi Lohara Janjati ya Pahadi lohara hi SC/ST me ate hai vishwakarma vanshi Dhiman bramhin obc me hai
पांचाल साहिब जी इतनी गहराई तक बताने के लिए आपका धन्यवाद ओम दत्त पांचाल घरौंदा
Thankyou
Shri Ramsharan Yuyutsu is a pure soul. He is an inspiration to many.
❤️❤️❤️❤️
And also carpenter
I am a Vishwakarma. We are one of Panchal Brahmin.
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
Ellora caves have a Devine and glorious Vishwakarma temple, which is the inspiration of many world famous buildings.
❤️❤️❤️❤️❤️
Hum Uttarakhand ke Shilpakar Samaj se hain..
Humein "Arya Shilpakar Samaj" bhi kaha jaata hai uttrakhand main..
Bada Proud hua..humare bhai dusre States main itna acha kar rahe hain..❤❤
विश्व एवम् संपूर्ण सृष्टि के रचयिता विश्वकर्मा जी ने ब्रह्मा,विष्णू ओर महेश ये तीन महादेवो और मां गायत्री, मां लक्ष्मी ओर मां ऊमा गौरी को उत्पन किया।
ओर पृथ्वी लोक पर त्रिलोक वासी पंचमुखी त्रिभुवन विश्वकर्मा के पांच स्वरुप,पांच दिशा से पांच पुत्रो को उत्पन किया
प्रथम पुत्र मनु महाराज
प्रथम सवरूप,
१,विराट विश्वकर्मा :- पूर्वादिशा से सागन संकल्प जटाधारि ऋषि मनु(सागन ,घन पदार्थ)
२. धर्मावंशी विश्वकर्मा:- दक्षिण दिशा से सनातन(धर्म)) संकल्प जटाधारी ऋषि मय
३.अंगिरा वंशी विश्वकर्मा:- पश्चिमदिशा से अहंभुन संकल्प जटाधारी ऋषि त्वष्टा
४. सुंधावा वंशी विश्वकर्मा:-उत्तरमुख से प्रयत्न (कार्य) संकल्प जटाधारी ऋषि शिल्पी
५. भृगुवंशी विश्वकर्मा :-ईशान दिशा के मध्यमुख से सुपर्ण(आकार) संकल्प जटाधारी ऋषि देवज्ञ है।
मनु, मय, त्वष्टा, शिल्पी ओर देवज्ञ पांच सृष्टि के प्रथम सूत्रधार है।
और ब्रह्मा जी ने २५,२५ गोत्र की ओर प्राणी मात्र की पृथ्वी लोक पर उत्पत्ति की। एवम् वेद,संस्कृत भाषा भी सिखाई।
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
@@the_invincible-yh3uf खूब सुंदर ✅ जानकारी के लिए धन्यवाद
@@nalinpanchal7918 welcome brother 🙏
Panchal Samaj Ko Itni Gahraai tak Samjaane ke liye Guruvar apke Charno mein Saadar Parnam
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
#ॐ_नमो_विश्वकर्मणे 🙏🙏🙏🙏 जय विश्वब्राह्मण समाज
❤️❤️❤️❤️❤️
Right bro vishwakarma brahman he real brahman hai
Panchal janm jat se bramhan hai viswakarma samaj brahman hai 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏 yahi saty hai
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
DADDU Sahib ji PARNAM
Thanks FOR SHARING.
विश्वकर्मा प्रभु रामशरण यूयूत्सु जी की आत्मा को शान्ति दे.. जय विश्वकर्मा भगवान
❤️❤️❤️❤️❤️
@@B9Blogger om shanti
@@satyanarayantilawat3327ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
अति उत्तम जी आपके द्वारा दी गई जानकारी अमूल्य है
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
आप पांचाल ब्राह्मणों की साहित्य को समाचारपत्रो पत्रिकाओं में प्रकाशित करवा दिया करो जिससे जन मानस तक पहुंच सके।
पं०सुशील कुमार शर्मा ( वैदिक ब्राह्मण)।
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
श्री रामशरण युयुत्सु जी ने बहुत ही बारिकी से पांचाल समाज के बारे में बताया है आपके चरणों में मेरा सादर परनाम
अनमोल धरोहर ये हमारी आप सभी के पास आने वाली पीढ़ियां समझ नहीं पाएगी आप सभी के बिना ॐ
पहले तुम तो समझो शर्मा लगाए घूम रहे हो |
@@propertieskanpurब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
Vishwakarma clans are the real Brahmans by their birth and action according to the Vedas of Sanatana Dharma.
सारे हिन्दू एक ही कुल के हैं,
@@abhaytiwari9316 No, all the Hindus are not the same clan. Because some of them are the outsiders and other tribes whose forefathers adopted Sanatana Dharma or Vaidik Dharma, and they became the Hindus, but they are not pure Hindus by their birth.
But brother our community people has left Brahmin work
@@sureshvishwakarma7051 yes, do you know why? Because of many outsiders attacked in India (Bharata) like Turks, Mughals, Afghans, Britishers, etc. in years ago or more than 1000 years.
Thanks!
@@semikvishwakarma1589 but y others Brahmins didn't left their Brahmin practice apart from our ancestors arseya Brahmin who were rigid on their Dharm they still have their Brahmin status with them
Jai vishwakarma samaaj....hmara vishwakarma samaaj sarvsrestha brahman h tha or rhega......chaahe koi kitni hi koshish krle hme dbane ki.....hm ooche h sbse ooche h....Jai_baba_vishwakarma
@@vikasharma0007 kabhi apne. Vishwa krma ki. Samaj hi. Halat dekhlo Jake. Upanayan. Sanskar chod rehehe. Boltehen. Eska koi fayada nehi bolke. Sudra ko bina. Jane unko vi apneme Mila dete hen 😑😑😑 srvasherst. Ya. Sraap he ea. 😐😐😐
Vishwakarma brahman samaj -- panchal samaj zindabad
Right ji bilkul sahi kaha aapne koti koti naman
Shri Ramsharan Yuyutsu is an inspiration.🙏
Om namo vishvakarmany. Jay Angira. Jay Maa Tripura🙏.
❤️❤️❤️❤️❤️❤️
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
Prnamsirji..chodiyaikasganjup
विश्वकर्मा के पाचों भाईयों से निवेदन है कि आप सभी एक दुसरे से वैवाहिक संबंध स्थापित करें
1. शिक्षित बने
2. एकजुट रहें
3. ऊँच नीच के भावना से दुर रहें
bramn se dur rhe
Aap log apne samaj ko ikjut karo jab kahi problem ho to waha support sare brahman sanghatan ik ho Jaye chahe vo bhumihar brahamn chitpawan brahman mohiyal brahman,karmkand brahmin ho,giri brahmin goswami brahmin panchal brahman,jangid brahmin vishwakarma ye sab sub sanghatan ik ho jaye turant sab bhagdari kare waha yahi rule politics me bhi kare brahman koi bhi ho but but usko support mare tum log sare obc ki taraf se support karawao obc ko lead karo tum log
Yes bro ❤🎉
Jai vishwakarma , jai parshuram@@vikastiwari1866
जब तक पांचाल जागिड़ धीमान अपने आप को सर्वश्रेष्ठ मानते रहेंगे, तब तक आपस में संबंध बनाना मुश्किल है
Sabhi vishwakrma bhaiyoo se nibedan ......🙏🙏🙏
Hamari samaj or sastro ke mitne ki sabse mitne ki sabse badi wajah hain logo ke vichar aaj ke vishwakrma kuch jo serf khud ko brahmin bolna chahte h kuch vo bhi nhi bolna chahte
Pr koe bhi na toh sikha rakhna chahta h na sastra padna jo hame padne bola h na asthang yug krna na sathkarm krna na yagyopabit dharn krna
Toh kis cheej ke brahmin ?
Pahle jo sastra main vidhan hamare liye likha vo toh suru kro
Brahmin kahne se koe brahmin nhi hota pura rule follow kro or samaj badao ...🙏
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
Naman hai app jaise vidhvaan ko. Mera nani Nana ka Ghar bhi patiala road par hai. Late partap Jangra(SHO) mere Nana Thai. Jai vishwakarma ji, jai shreeraam
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
Jay shree Vishwakarma ji Maharaj 🪓🪓⚒️🤗🤗 🟡🟡💛🟡💛🟡💛🟡🟡💛💛🟡💛🟡💛💛🟡🟡💛💛🟡🟡🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛💛💛🟡💛🟡💛🟡🟡💛💛🟡💛🟡💛🟡💛💛🟡💛🟡🟡💛🟡💛🟡💛💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛💛💛🟡🟡💛🟡💛🟡🟡💛🟡🟡💛🟡🟡💛🟡💛💛🟡🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡🟡💛🟡🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡🟡🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛🟡💛
Baba g ki bat bilkul satya h jab se karamkand chalu hua vishawbrahma vishawkarma ban ge aur ak jati barahman ban gi ,,aur jatia kam sikhne lagi to yh kam neech hogya ,,lekin kool se ham aaj v saresht h ,,,jai vishawbrahman samaj
Right you are
Jai dada parsuram 🚩🙏
Jai baba vishwakarma 🚩🙏
इस समाज को शिल्पी ब्राह्मण के नाम से भी जाना जाता है
SHRI PANCHAL SAMAJ KE BARE ME JO BHI BOOKS HAI KOI UNKE NAAM JANTA HAI TOH KRIPAYA MUJHE ISS COMMENT PR BOOK KE NAAM MENTION KARE. I NEED TO DO SOME REEARCH ON THE THE PANCHAL COMMUNITY OF MAHARASHTRA.THANK YOU. JAI SHREE VISHWAKARMA
Aap bhut bde gyani ho Esme koi sak nhi 🙏......pr Mera manna h ki Bachho ko bdeya siksha do Mera to Etna manna h jb bachha ek achha IAS ,IPS, doctor etc bnega tb dunia apne aap salam thokegi..,.Jai hind jai bharat 🇮🇳🇮🇳🇮🇳
सिर पै चोटी गले जनेऊ ब्राह्मण धारण करते हैं गुरु मंत्र गायत्री जपते पंच यज्ञ नित्य करते हैं विश्व कर्मा भगवान् हमारे मन मन्दिर में वसते है शिल्प कला विख्यात जगत में आर्य पुत्र कहलाते हैं।।
Vishwakarma vanshaj are real brahman.
JAY VISHWAKARMA, JAY VIGYAN
सम्माननीय इनकी पुस्तकें कैसे प्राप्त होसकेगी।पूरा पता बताएं।
आप के चरणों में कोटि कोटि प्रणाम हमें पांचाल समाज के बारे में बताया 🙏🙏🙏 राजेश पांचाल अचलपुरा
where can i buy ' Panchal samaj ki vibutiyan' book?
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
Jai vishwakarma maharaj ki 🙏🏻🙏🏻
From where we can buy these books?
Hi! Sir, your detailed study on vishwakarma is amazing. 👏👏. How to contact you sir?
सन्मानीय जी के सारे पुस्तकं कहा पे मिलेंगे?? 🙏
Great baba ji - jai vishwakarma ji ki
WAH GURU JI PRANAM SHAB
VISHWKARMA DADA KI JAY PARAM PITA PARMATMAKI JAY
Jai shri dada vishwakarma baba ji
Aap ko namashkar 😊😊
Hmare samaj me shiksha ki bhot kami h.....jis din sbhi vishwakarma bhaiyo ko purn gyan ho jaega n....to kisi ke baap me dm nahi ki koi inhe rok le....Jai_Baba_Vishwakarma jai dada Parashuram
Shiksa ki akalki Kami he. Joki apne kr. Sudroki. Farak. Nehi samj parehen 😑😑😑😡😡😡. Etana hi. Nehi. Upanayan sans kar chod rehe hen kuch. Chalak. Admi 😑.
How we can buy the book?
आदरणीय जी की पुस्तकें कहां मिलेगी
Panchal,dhiman,jahind, suthar,luhar aur badhai sabhi sastra aur bayd Mai Brahmin hai aur iskay pouranik kitabo Mai bahut saray parman miltay hai
Gotra kya hai inn logon kya ?
Angira bhardawag sandilaya aatri etc
@@Chairman_LmaoZedonggotra sandhilya joh ki Brahmin ka hota hai aur bhi bahut sara gotra hai jaisa bharadwaj aur bhi bahut sara
@@KapildeosharmaSharma mera bhi Shandilya hi hai 😊
@@KapildeosharmaSharma mera bhi shandilya hi hai 😊
Time to consolidate all the Brahmin community.Total population will be around 20 crore in India.
Yes sab ik ho tab bhumihar brahamn chitpawan brahman mohiyal brahman Tyagi brahman vaidic brahman Tiwari Mishra Shukla aur hussaini brahman panchal brahman
@@vikastiwari1866 ❤❤
@@vikastiwari1866 Bilkul sahi kaha Bhai
PANCHAL SAMAJ ALWAYS BRAMHIN BUT WE NEVER DID EGO THAT WE ARE BRAMHIN🤙🤙🤙
@@VaiShNav51 you are panchal?
@@VaiShNav51 bta skte ho panchal community k bare main ?
@@VaiShNav51 han bhai ye to hai
@@VaiShNav51dharu gotra k bare main bta skte ho panchal ki?
@@VaiShNav51tumko itna patah nhi hai ki lohar ki vishwakarma mah aata hai panchal mah panchal matlab kya hota hai five usma lohar bhi aata hai bhai Thora Gyan rakho 😂😂
Om Shanti🙏
ये सभी पुस्तक कहा से प्राप्त होगी।
Jankari ke liye dhanyawaad Jai vishvakarma samaj
Panchhal Haryana me kon si jati hai. Yahan jati se pahchan hoti hai.
Sir
Panchal is a group of five casts. These all believed to be in the lineage of Shri Vishavakarma. You may consider Vishvakarma ji as the chief architect and engineering of the gods.
These five casts are : Lohar ( blacksmiths ), carpenters ( Badhi) goldsmiths ( sunar) stonemasons and coppersmith.
Om Namo vishwakarmane 🙏🌷
यह पुस्तक कहां मिलेगी ????
Om shanti shanti shanti 🙏🙏🙏
Vishawkarma Brahman jindabaad
ज्ञानवर्दक बात है बहुत बहुत धन्यवाद जी
ब्राह्मणोत्पत्तीमार्तण्ड ‘ ग्रंथ जो ब्राह्मणों की जगत प्रसिद्ध पुस्तक है उसके लेखक पं.हरिकृष्ण शास्त्री जी थे। यह पुस्तक लगभग 100 वर्ष पुरानी है। जिसमें समस्त विश्व के मुख्य ब्राह्मणों का उल्लेख है उसमें पृष्ठ ५६२ - ५६८ तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों का उल्लेख ‘ अथ पांचालब्राह्मणोंत्पत्ती प्रकरण ‘ बताकर दिया गया है। जिसमें शिल्प कर्म करने वाली पांचों शिल्पी उपजातियों जिसमें लौहकार(लोहार) , काष्टकार(बढ़ई), ताम्रकार, शिल्पकार औऱ स्वर्णकार को ब्राह्मण मानकर उन्हें ब्राह्मणों के प्रमुख कर्म षटकर्म एवं अन्य ब्राह्मण कर्मो के करने का अधिकारी कहा गया है।
ब्राह्मण विद्वान पं.ज्वालाप्रसाद मिश्र ने अपनी पुस्तक ‘ जाति भास्कर ‘ के पृष्ठ २०३-२०७ में शिल्पकर्म को ब्राह्मणों कर्म मानते हुये एवं विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों को ब्राह्मण जाति कुल का स्वीकार करते हुये उन्हें षटकर्म अर्थात यज्ञ करना , यज्ञ कराना , वेद पढ़ना , वेद पढ़ाना , दान देना औऱ दान लेने के अधिकार के साथ अन्य ब्राह्मणों के कर्म करने का अधिकारी माना है।
‘ब्राह्मणवंशेतिवृत्तम’ नामक प्रसिद्ध पुस्तक जिसके लेखक वेदरत्न पं.परशुराम शास्त्री विद्यासागर थे। जिसमें मुख्य ब्राह्मणों का प्राचीन एवं अर्वाचीन इतिहास का उल्लेख है। इसमें भी विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को मूलरूप से ब्राह्मण माना गया है। आप लोग इसमें जांगिड़ ब्राह्मण (विश्वकर्मा ब्राह्मण) का विस्तृत परीचय पृष्ठ 116 से 130 में हैं इसे पढ़ सकते हैं। इसी प्रसिद्ध पुस्तक में पृष्ठ 182 से 186 के बीच शिल्प कर्म करने वाले मत्स्य पुराण के अनुसार 18 शिल्पकर्म के उपदेशक ऋषि ब्राह्मणों का भी उल्लेख है। त्वष्टा विश्वकर्मा अर्थात देवों के आचार्य देवशिल्पी विश्वकर्मा का भी विस्तृत परिचय है। साथ ही इसमें वैदिक शिल्पी ब्राह्मण अर्थात रथकार ब्राह्मण ,पांचाल ब्राह्मण तक्षा ब्राह्मण आदि शिल्पियों को ब्राह्मण मानते हुए उनका प्रमाण है।
‘ब्राह्मणोंत्पत्ति दर्पण ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक डॉ पंडित मक्खनलाल मिश्र ‘मैथिल ‘ जी है। जिनकी पुस्तक में विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण उत्पत्ति में पृष्ठ क्रमांक 358 से 361 तक विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति बताई गई है जिसमें स्पष्ट रूप से यह उल्लेख आया है कि विश्वकर्मा पांचाल ब्राह्मण समाज मूल रूप से ब्राह्मण समाज है और इन्हें षटकर्म के साथ-साथ ब्रह्म यज्ञ, देव यज्ञ, पितृ यज्ञ ,भूत यज्ञ और जप यज्ञ का पूर्ण रूप से अधिकार है।
‘ ब्राह्मण गोत्रावली ‘ नामक पुस्तक जिसके लेखक ज्योतिषाचार्य पंडित राजेंद्र देवलाल जो उत्तराखंड से छपी थी। इस पुस्तक के पृष्ठ 114 से 117 के बीच विश्वकर्मा शिल्पी ब्राह्मणों में जांगिड़ ब्राह्मणों की उत्पत्ति एवं पांचाल ब्राह्मणों की उत्पत्ति का वर्णन है।
‘ वंश मल्लिका ‘ नामक ग्रंथ जिसके रचयिता प्रसिद्ध विद्वान पंडित मन्नूलाल शर्मा थे। यह पुस्तक भी लगभग 80 से 100 वर्ष पुरानी है। इसमें विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों के अनेक वर्गों का उल्लेख है। जैसे विश्वकर्मा ब्राह्मण , रथकार ब्राह्मण, पांचाल ब्राह्मण, जांगिड़ ब्राह्मण, धीमान ब्राह्मण , आचार्य ब्राह्मण, ओझा या झा मैथिल ब्राह्मण आदि। इस पुस्तक में इनकी शास्त्रो के अनुसार उत्पत्ति ,वंशावली एवं गोत्रावली का विस्तृत वर्णन है। इस पुस्तक में विश्वकर्मा वैदिक ब्राह्मणों को वेदों के अनुसार एवं अन्य शास्त्रों के अनुसार सभी प्रकार के ब्राह्मणों के मूल कर्म का पूर्ण अधिकारी शास्त्रीय प्रधानों के आधार पर बताया गया है।
Sir ....please provide PDF of panchal smaj ki vibutiya.....
Ye book kaha se mngaye
Om shanti🌺
Jai Bhagwan Vishwakarma 🙏🏻
ಓಂ ಶಾಂತಿ:🙏🌹🌹🌹Om shanthi 🙏🌹🌹🌹ഓം ശാന്തി:🙏🌹🌹🌹
कोटि कोटि नमन ॐ शांति शांति
❤️❤️❤️❤️❤️❤️
पंडित जी ये पुस्तक कहां से प्राप्त हो सकती है
Best sir
Aapane bilkul sahi baat kahi hai
Apke prayas to naman karta hun..🙏🙏
Vishwakarma ki Janam tithi Kaya hai aur Vishwakarma Bansaj ki kitab kitne me on line milegi
Deep Knowledge, spread it everywhere.
Sir ye book khaa milege panchal bharaman parkash
जानकारी के लिये आपको सादर प्रणाम।
इनकी पुस्तक कैसे मिलेगी
Jai shree vishwakarma je ke🙏
भगवान ब्रम्हा जी ही विश्कर्मा जी है या यूं कहें कि ब्रम्हा जी ही विश्कर्मा जी हैं विश्कर्मा जी ब्राह्मण है इसी में जांगिड़ ब्राह्मण भी आते है
महराज आप की बूक हमे लेना है कहा मिलेगी कैसे मंगाए बताइये
हम तो अपने आप को रावण वँशी ही कहते है रावण महान ब्राह्मण थे 🙏🙏
पांचाल और जांगिड एक ही मैडम
Are.murkh vagwan vishwkarma.se.devi debta peda huye.hai bahramma se.risi muni peda.huya hai
Barhmma or vishwkarma.vagwan ak hokar vhayi k sorup hai dono vhayi ke bansaj se lagan huya hai bahrma.ne risi muni ko janam doya.vishwkarma.vagwan.ne apne pacho putro ke sath devi.debta ko janam doya
Or dono ke bache se sadi.bibah huya hai sanar chalane ke liye hai.vagwan vishwkarma.ke.pacho putr.pirthibi par.sakar.rup.me.sadharan hai or devi devta adirist.hai bas.itne antar hai
Bhai ye book kha milegi???
Panchal barahaman prkash book kaha milegi
Brahman samaj 🙏
Ye kitabain kahan milengi
परमात्मा आपका आधुरा कार्य पूरा करने किसी को बुध्दी दे
Om santi
Bhgvan apka adhura kam karne ke shakti de
Gyan Dene k ley. Dhanyabad
कोई परम् पूज्य स्वर्गीय रामशरण जी का पता बता सकता है मुझे उनकी किताबो को पढ़ना है!
Near Patiyala Chowk
Jind
Dadaji thank you kyuki abhi ke pachal ko khud pta nhi he ki vo bhrahmin he
But time aagya ab ik ik dushre brahman bhai ka support kerne ka chahe vo politics ho ya upsc uppcs tum log obc me but giri brahmin obc goswami brahmin obc bhi aate hai but tum log obc se maximum ias ips judge professor udogpati ye sab bano obc ka sara profit yadav le rha isko takker do obc se
@@vikastiwari1866🎉🎉🎉
Dada ji parnnam
विश्वकर्मा भगवान की जय
Ye book kaha milegi sir
Jai Ho guru ji
Sir you are great
अहं भवान् पर्णामः करोमि
अर्थात पृथ्वी विश्वकर्मा मय है।
जापान से लेकर अमेरिका तक।
अमेरिका की मय सभ्यता के अवशेष प्राचीनतम सभ्यता के सबूत है। किंतु भारत का दुर्भाग्य ये है कि सभी इतिहासकार व इतिहासविदों को हड़प्पा सभ्यता को वैदिक बताने की होड़ लगी है।
Inlogo kobas chale na to vagwan ke svirup ko obc ka drja de de or unke putro ko vi iktifak se vagwan ka bansaj pithibi par nhi hai
Qkuki vagwan jante the ane bale kalyug me jitne vi sakti sakchat rahega in panta sab apne ko mahan bane ke liye mere santan ke sath isi tarahduts bevhar hoga
Dust vhevhar hoga vishwkarma kabansaj barmrisi santan hai vedo me lekin koyi mane ko teyar nhi is lite kalyug me siraf vedo me namrah gya hai bakisabmilabat hai
Nam rahgaya hai baki sab kuch milabat hai
👌👌👌
Ab to ik ho sab aur apni situation aaur aage badhao upsc pcs judge her jagah kabja bnao
Om Vishwakarmaney namah
Jay ho
Vishwakarma Brahmins are panchvedi. They followed all the 5 vedas 🙏