Mahalaxmi Mandir Mumbai 2022|महालक्ष्मी मंदिर मुंबई|Mahalaxmi Mandir live Darshan|

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  • Опубликовано: 6 окт 2024
  • महालक्ष्मी मंदिर की जानकारी -
    महालक्ष्मी मंदिर महालक्ष्मी समुद्र के बिल्कुल क़रीब स्थित है। मंदिर में तीन बहुत ही सुंदर मूर्तियाँ है। महालक्ष्मी मंदिर के गर्भगृह में महालक्ष्मी, महाकाली एवं महासरस्वती तीनों देवियों की प्रतिमाएँ एक साथ विद्यमान हैं। तीनों प्रतिमाओं को सोने एवं मोतियों के आभूषणों से सुसज्जित किया गया है। नवरात्रि के त्योहारों के दौरान, असंख्य हिन्दू भक्त भगवान को नारियल, फूल और मिठाई चढ़ाते हैं।
    देशभर से श्रद्धालु यहां दर्शन के लिए पहुंचते हैं। मुंबई के भूलाभाई देसाई मार्ग पर समुद्र के किनारे स्थित इस मंदिर की सुंदरता अवर्णनीय है। यहां पहुंचकर असीम शांति प्राप्त होती हैं। माँ लक्ष्मी को धन की देवी माना गया है। महालक्ष्मी की पूजा घर और कारोबार में सुख और समृद्धि‍ लाने के लिए की जाती है।
    महालक्ष्मी मंदिर का इतिहास -
    मंदिर का इतिहास अत्यंत रोचक है। बताया जाता है कि बहुत समय पहले मुंबई में वर्ली और मालाबार हिल को जोड़ने के लिए दीवार का निर्माण कार्य चल रहा था। सैकड़ों मजदूर इस दीवार के निर्माण कार्य में लगे हुए थे, मगर हर दिन कोई न कोई बाधा आ रही थी। इसके कारण ब्रिटिश इंजीनियर काफी परेशान हो गए। इतनी मेहनत के बावजूद दीवार खड़ी नहीं हो पा रही थी। कई बार तो पूरी की पूरी दीवार ढह गई। समस्या का कोई समाधान नहीं मिल रहा था।
    इसी बीच इस प्रोजेक्ट के मुख्य अभियंता रामजी शिवाजी ने एक अनोखा सपना देखा। सपने में मां लक्ष्मी प्रकट हुईं और कहा कि वर्ली में समुद्र के किनारे मेरी एक मूर्ति है। उस मूर्ति को वहां से निकालकर समुद्र के किनारे ही मेरी स्थापना करो। ऐसा करने से हर बाधा दूर हो जाएगी और वर्ली-मालाबार हिल के बीच की दीवार आसानी से खड़ी हो जाएगी।
    मुख्य अभियंता को काफी आश्चर्य हुआ। उसने मजदूरों को स्वप्न में बताए गए स्थान पर जाने को कहा और मूर्ति ढूंढ लाने का आदेश दिया। आदेशानुसार कार्य शुरू हुआ। थोड़ी मेहनत के बाद ही महालक्ष्मी की एक भव्य मूर्ति प्राप्त हुई। यह देखकर स्वप्न पाने वाले अभियंता का शीश नतमस्तक हो गया।
    माता के आदेशानुसार समुद्र किनारे ही उस मूर्ति की स्थापना की गई और छोटा-सा मंदिर बनवाया गया। मंदिर निर्माण के बाद वर्ली-मालाबार हिल के बीच की दीवार बिना किसी विघ्न-बाधा के खड़ी हो गई। इस पर प्रोजेक्ट में शामिल लोगों ने सुकून की सांस ली। ब्रिटिश अधिकारियों को भी दैवीय शक्ति पर भरोसा करना पड़ा। इसके बाद तो इस मंदिर में श्रद्धालुओं की भीड़ उमड़ने लगी।
    सन् 1831 में धाकजी दादाजी नाम के एक व्यवसायी ने छोटे से मंदिर को बड़ा स्वरूप दिया एवं इसका जीर्णोद्धार कराया गया। समुद्र किनारे होने के कारण मंदिर की सुंदरता देखते ही बनती है।
    मंदिर के गर्भगृह में महालक्ष्मी, महाकाली एवं महासरस्वती तीनों देवियों की प्रतिमाएँ एक साथ विद्यमान हैं। तीनों प्रतिमाओं को सोने एवं मोतियों के आभूषणों से सुसज्जित किया गया है। यहाँ आने वाले हर भक्त का यह दृढ़ विश्वास होता है कि माता उनकी हर इच्छा जरूर पूरी करेंगी।
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