सीता की खोज करने रात में रावण के रंगमंहल में मदिरा मद नग्न, अर्ध नग्न सुन्दर सुन्दर युवतियों के सोते देख वृह्म चारी हनुमान हैरान हो गया सुन्दरकाण्ड सर्ग -9 वाल्मीकि रामायण
एक बार जरूर पढ़ो राम लक्ष्मण नहीं-अम्बेडकर चाहिए मनुस्मृति नहीं-संबिधान चाहिए धर्म नहीं- अधिकार चाहिए मन्दिर नहीं -स्कूल चाहिए भगवान नहीं -विज्ञान चाहिए भाषण नहीं -रोजगार चाहिए पूंजीवाद नहीं -समाजवाद चाहिए धर्मतंत्र नहीं -लोकतंत्र चाहिए असमानता नहीं -समानता चाहिए अनेकता नहीं -एकता चाहिए अन्याय नहीं -न्याय चाहिए भीख नहीं -हक़ चाहिए गुलामी नहीं -आजादी चाहिए जय भारत, जय संविधान
शिव पुराण शिवादि के पूजने वाले टट्टी ( विष्ठा का कीड़े बनेंगे वैष्णव: पुरषो येस्तु शिव वृह्मादी देवतान् प्रणम्यधेचार्य द्वावी विष्ठयां जायते कृमि!!261!!(वृद्ध हारित स्मृति ) अर्थ -यदि विष्णु का उपासक भूलकर भी शिव, ब्रह्मा आदि को प्रणाम या उनकी पूजा अर्चना करता है तो वह मरकर पखाने का कीड़ा बनता है!
देवदासी बनाकर नारी का बलात्कार बड़े बड़े मंदिरों मे पंडे पुजारियों द्वारा सदियों से भगवान के सामने ही होता रहा है, और भगवान मोन हो कर देखता रहा है और उसने कभी बालात्कारियों को दण्डित नहीं किया इसका सीधा अर्थ है मन्दिर मे भगवान नहीं केवल पत्थर ही है GKGS UPDATE
Kअपना आटा अपना घी भोग लगाते पंडित जी, हमें बोलते काबड़ ढोना दिल्ली पढ़ते पंडित जी, हमें बोलते मन्दिर जाना संसद जाते पंडित जी, हमें बोलते कुछ नहीं तेरा भूमाफिया बनते पंडित जी, दान की पेटी हम भरते लूट मचाते पंडित जी, राम रहीम मे हमें फसाकार धंधा करते पंडित जी, हमें फसाते धर्म कर्म मे जज बन बैठे पंडित जी, जो पंडित से दूर रहेगा फिर न होगा दण्डित जी, ...........*******.........अपना आटा अपना घी भोग लगाते पंडित जी, हमें बोलते काबड़ ढोना दिल्ली पढ़ते पंडित जी, हमें बोलते मन्दिर जाना संसद जाते पंडित जी, हमें बोलते कुछ नहीं तेरा भूमाफिया बनते पंडित जी, दान की पेटी हम भरते लूट मचाते पंडित जी, राम रहीम मे हमें फसाकार धंधा करते पंडित जी, हमें फसाते धर्म कर्म मे जज बन बैठे पंडित जी, जो पंडित से दूर रहेगा फिर न होगा दण्डित जी, ...........*******.........अपना आटा अपना घी भोग लगाते पंडित जी, हमें बोलते काबड़ ढोना दिल्ली पढ़ते पंडित जी, हमें बोलते मन्दिर जाना संसद जाते पंडित जी, हमें बोलते कुछ नहीं तेरा भूमाफिया बनते पंडित जी, दान की पेटी हम भरते लूट मचाते पंडित जी, राम रहीम मे हमें फसाकार धंधा करते पंडित जी, हमें फसाते धर्म कर्म मे जज बन बैठे पंडित जी, जो पंडित से दूर रहेगा फिर न होगा दण्डित जी, ...........*******.........अपना आटा अपना घी भोग लगाते पंडित जी, हमें बोलते काबड़ ढोना दिल्ली पढ़ते पंडित जी, हमें बोलते मन्दिर जाना संसद जाते पंडित जी, हमें बोलते कुछ नहीं तेरा भूमाफिया बनते पंडित जी, दान की पेटी हम भरते लूट मचाते पंडित जी, राम रहीम मे हमें फसाकार धंधा करते पंडित जी, हमें फसाते धर्म कर्म मे जज बन बैठे पंडित जी, जो पंडित से दूर रहेगा फिर न होगा दण्डित जी, ...........*******.........अपना आटा अपना घी भोग लगाते पंडित जी, हमें बोलते काबड़ ढोना दिल्ली पढ़ते पंडित जी, हमें बोलते मन्दिर जाना संसद जाते पंडित जी, हमें बोलते कुछ नहीं तेरा भूमाफिया बनते पंडित जी, दान की पेटी हम भरते लूट मचाते पंडित जी, राम रहीम मे हमें फसाकार धंधा करते पंडित जी, हमें फसाते धर्म कर्म मे जज बन बैठे पंडित जी, जो पंडित से दूर रहेगा फिर न होगा दण्डित जी, ...........*******.........अपना आटा अपना घी भोग लगाते पंडित जी, हमें बोलते काबड़ ढोना दिल्ली पढ़ते पंडित जी, हमें बोलते मन्दिर जाना संसद जाते पंडित जी, हमें बोलते कुछ नहीं तेरा भूमाफिया बनते पंडित जी, दान की पेटी हम भरते लूट मचाते पंडित जी, राम रहीम मे हमें फसाकार धंधा करते पंडित जी, हमें फसाते धर्म कर्म मे जज बन बैठे पंडित जी, जो पंडित से दूर रहेगा फिर न होगा दण्डित जी, ...........*******.........अपना आटा अपना घी भोग लगाते पंडित जी, हमें बोलते काबड़ ढोना दिल्ली पढ़ते पंडित जी, हमें बोलते मन्दिर जाना संसद जाते पंडित जी, हमें बोलते कुछ नहीं तेरा भूमाफिया बनते पंडित जी, दान की पेटी हम भरते लूट मचाते पंडित जी, राम रहीम मे हमें फसाकार धंधा करते पंडित जी, हमें फसाते धर्म कर्म मे जज बन बैठे पंडित जी, जो पंडित से दूर रहेगा फिर न होगा दण्डित जी, ...........*******.........अपना आटा अपना घी भोग लगाते पंडित जी, हमें बोलते काबड़ ढोना दिल्ली पढ़ते पंडित जी, हमें बोलते मन्दिर जाना संसद जाते पंडित जी, हमें बोलते कुछ नहीं तेरा भूमाफिया बनते पंडित जी, दान की पेटी हम भरते लूट मचाते पंडित जी, राम रहीम मे हमें फसाकार धंधा करते पंडित जी, हमें फसाते धर्म कर्म मे जज बन बैठे पंडित जी, जो पंडित से दूर रहेगा फिर न होगा दण्डित जी, ...........*******.........अपना आटा अपना घी भोग लगाते पंडित जी, हमें बोलते काबड़ ढोना दिल्ली पढ़ते पंडित जी, हमें बोलते मन्दिर जाना संसद जाते पंडित जी, हमें बोलते कुछ नहीं तेरा भूमाफिया बनते पंडित जी, दान की पेटी हम भरते लूट मचाते पंडित जी, राम रहीम मे हमें फसाकार धंधा करते पंडित जी, हमें फसाते धर्म कर्म मे जज बन बैठे पंडित जी, जो पंडित से दूर रहेगा फिर न होगा दण्डित जी, ...........*******.........अपना आटा अपना घी भोग लगाते पंडित जी, हमें बोलते काबड़ ढोना दिल्ली पढ़ते पंडित जी, हमें बोलते मन्दिर जाना संसद जाते पंडित जी, हमें बोलते कुछ नहीं तेरा भूमाफिया बनते पंडित जी, दान की पेटी हम भरते लूट मचाते पंडित जी, राम रहीम मे हमें फसाकार धंधा करते पंडित जी, हमें फसाते धर्म कर्म मे जज बन बैठे पंडित जी, जो पंडित से दूर रहेगा फिर न होगा दण्डित जी, ...........*******.........अपना आटा अपना घी भोग लगाते पंडित जी, हमें बोलते काबड़ ढोना दिल्ली पढ़ते पंडित जी, हमें बोलते मन्दिर जाना संसद जाते पंडित जी, हमें बोलते कुछ नहीं तेरा भूमाफिया बनते पंडित जी, दान की पेटी हम भरते लूट मचाते पंडित जी, राम रहीम मे हमें फसाकार धंधा करते पंडित जी, हमें फसाते धर्म कर्म मे जज बन बैठे पंडित जी, जो पंडित से दूर रहेगा फिर न होगा दण्डित जी, ...........*******.........
शंकर का 100 वर्ष तक पार्वती से रति (मैथुन ) करना दृष्टवा च भगवान्देवी मैथुनायोप चक्रमे तस्य संक्रिड मानस्ये महादेवस्य धीमत:(5) शिति कंठस्य देवस्य दिवस्य वर्षस्त (6) (बाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग (36) अर्थ -विवाह के उपरांत पार्वती देवी को देखकर शंकर उनके साथ मैथुन करने लगे उस मैथुन को करते हुए सौ वर्ष बीत गए! गीता प्रेस गोरखपुर बाल्मीकि रामायण (धर्मग्रंथो मे ऐसी अश्लील बाते लिखना क्या उचित है )
(दयानन्द कृत यजुर्वेद भाष्य, (भाष्य -7) वांच ते सुधामि, प्राण ते सुधामि, चुक्स ते सुधामि, श्रोत्र ते सुधामि, नाभि ते सुधामि, भेद ते सुधामि, पायु ते सुधामि,! यजुर्वेद (6/14) स्वामी जी अपने यजुर्वेद भाष्य में इसका अर्थ यह लिखते हैं कि हे शिष्य में तेरी वाणी, नेत्र, नाभि, जिसमे मुत्रो तसगार्ति किये जाते है उस लिंग को तेरे गुदेंन्द्रये को शुद्ध करता हूं क्या ऐसे अश्लील शव्द धर्म ग्रंथों मे लिखना उचित है
Jai ho maa🙏🙇♥️
सीता की खोज करने रात में रावण के रंगमंहल में मदिरा मद नग्न, अर्ध नग्न सुन्दर सुन्दर युवतियों के सोते देख वृह्म चारी हनुमान हैरान हो गया
सुन्दरकाण्ड सर्ग -9
वाल्मीकि रामायण
Jai Ho
जय माँ घटाशनी😊
💕💕💕💕💕
❤
❤❤
एक बार जरूर पढ़ो
राम लक्ष्मण नहीं-अम्बेडकर चाहिए
मनुस्मृति नहीं-संबिधान चाहिए
धर्म नहीं- अधिकार चाहिए
मन्दिर नहीं -स्कूल चाहिए
भगवान नहीं -विज्ञान चाहिए
भाषण नहीं -रोजगार चाहिए
पूंजीवाद नहीं -समाजवाद चाहिए
धर्मतंत्र नहीं -लोकतंत्र चाहिए
असमानता नहीं -समानता चाहिए
अनेकता नहीं -एकता चाहिए
अन्याय नहीं -न्याय चाहिए
भीख नहीं -हक़ चाहिए
गुलामी नहीं -आजादी चाहिए
जय भारत, जय संविधान
शिव पुराण
शिवादि के पूजने वाले टट्टी ( विष्ठा का कीड़े बनेंगे
वैष्णव: पुरषो येस्तु शिव वृह्मादी देवतान् प्रणम्यधेचार्य द्वावी विष्ठयां जायते कृमि!!261!!(वृद्ध हारित स्मृति )
अर्थ -यदि विष्णु का उपासक भूलकर भी शिव, ब्रह्मा आदि को प्रणाम या उनकी पूजा अर्चना करता है तो वह मरकर पखाने का कीड़ा बनता है!
देवदासी बनाकर नारी का बलात्कार बड़े बड़े मंदिरों मे पंडे पुजारियों द्वारा सदियों से भगवान के सामने ही होता रहा है, और भगवान मोन हो कर देखता रहा है और उसने कभी बालात्कारियों को दण्डित नहीं किया इसका सीधा अर्थ है मन्दिर मे भगवान नहीं केवल पत्थर ही है
GKGS UPDATE
सच्चाई हमेशा लोगों को कड़वी लगती है!
भगवान है या नहीं ये उस महिला से पूछो जिसने अपना वलात्कार होने से पहले लाखों बार अल्लाह, गॉड,ईश्वर से मदद मांगी थी,
Kअपना आटा अपना घी
भोग लगाते पंडित जी,
हमें बोलते काबड़ ढोना
दिल्ली पढ़ते पंडित जी,
हमें बोलते मन्दिर जाना
संसद जाते पंडित जी,
हमें बोलते कुछ नहीं तेरा
भूमाफिया बनते पंडित जी,
दान की पेटी हम भरते
लूट मचाते पंडित जी,
राम रहीम मे हमें फसाकार
धंधा करते पंडित जी,
हमें फसाते धर्म कर्म मे
जज बन बैठे पंडित जी,
जो पंडित से दूर रहेगा
फिर न होगा दण्डित जी,
...........*******.........अपना आटा अपना घी
भोग लगाते पंडित जी,
हमें बोलते काबड़ ढोना
दिल्ली पढ़ते पंडित जी,
हमें बोलते मन्दिर जाना
संसद जाते पंडित जी,
हमें बोलते कुछ नहीं तेरा
भूमाफिया बनते पंडित जी,
दान की पेटी हम भरते
लूट मचाते पंडित जी,
राम रहीम मे हमें फसाकार
धंधा करते पंडित जी,
हमें फसाते धर्म कर्म मे
जज बन बैठे पंडित जी,
जो पंडित से दूर रहेगा
फिर न होगा दण्डित जी,
...........*******.........अपना आटा अपना घी
भोग लगाते पंडित जी,
हमें बोलते काबड़ ढोना
दिल्ली पढ़ते पंडित जी,
हमें बोलते मन्दिर जाना
संसद जाते पंडित जी,
हमें बोलते कुछ नहीं तेरा
भूमाफिया बनते पंडित जी,
दान की पेटी हम भरते
लूट मचाते पंडित जी,
राम रहीम मे हमें फसाकार
धंधा करते पंडित जी,
हमें फसाते धर्म कर्म मे
जज बन बैठे पंडित जी,
जो पंडित से दूर रहेगा
फिर न होगा दण्डित जी,
...........*******.........अपना आटा अपना घी
भोग लगाते पंडित जी,
हमें बोलते काबड़ ढोना
दिल्ली पढ़ते पंडित जी,
हमें बोलते मन्दिर जाना
संसद जाते पंडित जी,
हमें बोलते कुछ नहीं तेरा
भूमाफिया बनते पंडित जी,
दान की पेटी हम भरते
लूट मचाते पंडित जी,
राम रहीम मे हमें फसाकार
धंधा करते पंडित जी,
हमें फसाते धर्म कर्म मे
जज बन बैठे पंडित जी,
जो पंडित से दूर रहेगा
फिर न होगा दण्डित जी,
...........*******.........अपना आटा अपना घी
भोग लगाते पंडित जी,
हमें बोलते काबड़ ढोना
दिल्ली पढ़ते पंडित जी,
हमें बोलते मन्दिर जाना
संसद जाते पंडित जी,
हमें बोलते कुछ नहीं तेरा
भूमाफिया बनते पंडित जी,
दान की पेटी हम भरते
लूट मचाते पंडित जी,
राम रहीम मे हमें फसाकार
धंधा करते पंडित जी,
हमें फसाते धर्म कर्म मे
जज बन बैठे पंडित जी,
जो पंडित से दूर रहेगा
फिर न होगा दण्डित जी,
...........*******.........अपना आटा अपना घी
भोग लगाते पंडित जी,
हमें बोलते काबड़ ढोना
दिल्ली पढ़ते पंडित जी,
हमें बोलते मन्दिर जाना
संसद जाते पंडित जी,
हमें बोलते कुछ नहीं तेरा
भूमाफिया बनते पंडित जी,
दान की पेटी हम भरते
लूट मचाते पंडित जी,
राम रहीम मे हमें फसाकार
धंधा करते पंडित जी,
हमें फसाते धर्म कर्म मे
जज बन बैठे पंडित जी,
जो पंडित से दूर रहेगा
फिर न होगा दण्डित जी,
...........*******.........अपना आटा अपना घी
भोग लगाते पंडित जी,
हमें बोलते काबड़ ढोना
दिल्ली पढ़ते पंडित जी,
हमें बोलते मन्दिर जाना
संसद जाते पंडित जी,
हमें बोलते कुछ नहीं तेरा
भूमाफिया बनते पंडित जी,
दान की पेटी हम भरते
लूट मचाते पंडित जी,
राम रहीम मे हमें फसाकार
धंधा करते पंडित जी,
हमें फसाते धर्म कर्म मे
जज बन बैठे पंडित जी,
जो पंडित से दूर रहेगा
फिर न होगा दण्डित जी,
...........*******.........अपना आटा अपना घी
भोग लगाते पंडित जी,
हमें बोलते काबड़ ढोना
दिल्ली पढ़ते पंडित जी,
हमें बोलते मन्दिर जाना
संसद जाते पंडित जी,
हमें बोलते कुछ नहीं तेरा
भूमाफिया बनते पंडित जी,
दान की पेटी हम भरते
लूट मचाते पंडित जी,
राम रहीम मे हमें फसाकार
धंधा करते पंडित जी,
हमें फसाते धर्म कर्म मे
जज बन बैठे पंडित जी,
जो पंडित से दूर रहेगा
फिर न होगा दण्डित जी,
...........*******.........अपना आटा अपना घी
भोग लगाते पंडित जी,
हमें बोलते काबड़ ढोना
दिल्ली पढ़ते पंडित जी,
हमें बोलते मन्दिर जाना
संसद जाते पंडित जी,
हमें बोलते कुछ नहीं तेरा
भूमाफिया बनते पंडित जी,
दान की पेटी हम भरते
लूट मचाते पंडित जी,
राम रहीम मे हमें फसाकार
धंधा करते पंडित जी,
हमें फसाते धर्म कर्म मे
जज बन बैठे पंडित जी,
जो पंडित से दूर रहेगा
फिर न होगा दण्डित जी,
...........*******.........अपना आटा अपना घी
भोग लगाते पंडित जी,
हमें बोलते काबड़ ढोना
दिल्ली पढ़ते पंडित जी,
हमें बोलते मन्दिर जाना
संसद जाते पंडित जी,
हमें बोलते कुछ नहीं तेरा
भूमाफिया बनते पंडित जी,
दान की पेटी हम भरते
लूट मचाते पंडित जी,
राम रहीम मे हमें फसाकार
धंधा करते पंडित जी,
हमें फसाते धर्म कर्म मे
जज बन बैठे पंडित जी,
जो पंडित से दूर रहेगा
फिर न होगा दण्डित जी,
...........*******.........अपना आटा अपना घी
भोग लगाते पंडित जी,
हमें बोलते काबड़ ढोना
दिल्ली पढ़ते पंडित जी,
हमें बोलते मन्दिर जाना
संसद जाते पंडित जी,
हमें बोलते कुछ नहीं तेरा
भूमाफिया बनते पंडित जी,
दान की पेटी हम भरते
लूट मचाते पंडित जी,
राम रहीम मे हमें फसाकार
धंधा करते पंडित जी,
हमें फसाते धर्म कर्म मे
जज बन बैठे पंडित जी,
जो पंडित से दूर रहेगा
फिर न होगा दण्डित जी,
...........*******.........
शंकर का 100 वर्ष तक पार्वती से रति (मैथुन ) करना
दृष्टवा च भगवान्देवी मैथुनायोप चक्रमे तस्य संक्रिड मानस्ये महादेवस्य धीमत:(5)
शिति कंठस्य देवस्य दिवस्य वर्षस्त (6)
(बाल्मीकि रामायण बालकाण्ड सर्ग (36)
अर्थ -विवाह के उपरांत पार्वती देवी को देखकर शंकर उनके साथ मैथुन करने लगे उस मैथुन को करते हुए सौ वर्ष बीत गए!
गीता प्रेस गोरखपुर
बाल्मीकि रामायण
(धर्मग्रंथो मे ऐसी अश्लील बाते लिखना क्या उचित है )
अंधविश्वास और पाखंड
संसार मे कोई ईश्वर नहीं इसको ढूंढ़ने मे अपना धन और समय बर्बाद न करें
गौतम बुद्ध
(दयानन्द कृत यजुर्वेद भाष्य, (भाष्य -7)
वांच ते सुधामि, प्राण ते सुधामि, चुक्स ते सुधामि, श्रोत्र ते सुधामि, नाभि ते सुधामि, भेद ते सुधामि, पायु ते सुधामि,! यजुर्वेद (6/14)
स्वामी जी अपने यजुर्वेद भाष्य में इसका अर्थ यह लिखते हैं कि हे शिष्य में तेरी वाणी, नेत्र, नाभि, जिसमे मुत्रो तसगार्ति किये जाते है उस लिंग को तेरे गुदेंन्द्रये को शुद्ध करता हूं
क्या ऐसे अश्लील शव्द धर्म ग्रंथों मे लिखना उचित है
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