शुद्ध भक्ति तात्पर्य अन्य अभिलाषा शून्य 🙏🏻 शरीर, मन वाणी से भगवान की सेवा करना 🙏🏻 प्रवृत्ति मूलक शरीर से हरि गुरु की सेवा करना🙏🏻 वाणी से हरि ग़ुरू के रूप गुण लीला इत्यादि का वर्णन करना🙏🏻 और मन से सदा हरि गुरु का चिंतन करना प्रीति पूर्वक रूप गुण लीला का चिंतन करना❤ नृवृत्ति मूलक सेवा में अपराध ना होने पाए। सावधानी बरतना उत्तम भक्ति है। भगवान की सेवा से कभी मुक्ति ना मिले और भगवान की सेवा खूब प्रीति पूर्वक हो ❤❤❤जय प्रभुपाद ji🙏🏻
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