03. दुख के ही बीज बोये.. झूठी मृगतृष्णा अर्थात क्या? || महरौनी प्रवास || 2024
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- Опубликовано: 17 окт 2024
- प्रभु ! स्वाश्रित जीवन हो, स्वानुभवमय जीवन हो।
निस्पृह निरपेक्ष सहज, मंगलमय जीवन हो ॥ टेक ॥
दुर्भागों में फँसकर, जीवन अनन्त खोये,
तृप्ति न मिली क्षणभर, दुःख के ही बीज सदा बोये।
धिक् विषय-कषायों को, निवृत्तिमय जीवन हो ॥ 1 ॥
झूठी मृगतृष्णा दुःखमय पर की आशा,
आशा तृष्णा से ही हो चहुँगति में वासा।
अनुबन्ध नहीं कोई सन्तोषी जीवन हो ॥ 2 ॥
विभु ! भव-भव की पीड़ा, अब नहीं सही जाती,
प्रभुतामय थिरतामय तब शान्त दशा भाती।
ध्रुवदृष्टि शुद्धोपयोग, पुरुषार्थी जीवन हो ॥ 3 ॥
पर-आश्रित मोह अरु क्षोभ, स्वाश्रय से सहज मिटे,
दुःखमयी भव-बन्धन, स्वाश्रय से सहज कटे।
निर्ग्रन्थ निराकुल प्रभु समतामय जीवन हो ॥ 4 ॥
स्वाधीन स्वयं में ही अनुभव-रस पान सदा,
झलके सब विश्व भले, निज में ही मग्न सदा।
बस सर्व विकल्पों से, प्रभु तुम सम जीवन हो ॥ 5 ॥
जय जिनेंद्र पंडितजी और साधर्मियोंको🙏🙏
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Jay shachidanad 👏 pandit ji
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Bhut sunder true🙏🙏🙏
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Jai jinendra ji from Ashok nagar
જય જિનેન્દ્ર ગુજરાત
आदरणीय पंडित जी जिनबाणी माता की जय जय जिनेन्द्र
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