8/84 कपालेश्वर महादेव | 84 Mahadev Ujjain | चौरासी महादेव उज्जैन | Mahakal | Ujjain | Avantika

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  • Опубликовано: 5 сен 2024
  • 8/84 कपालेश्वर महादेव | 84 Mahadev Ujjain | चौरासी महादेव उज्जैन | Mahakal | Ujjain | Avantika
    वैवस्वत कल्प में, त्रैतायुग में, महाकाल वन में पितामह यज्ञ कर रहे थे। वहाँ ब्राह्मण समाज बैठा था। महादेव कापालिक वेश में वहाँ पहुँच गए। यह देखकर ब्राह्मणों ने क्रोधित हो उन्हें हवन स्थल से चले जाने को कहा। कापालिक वैश धारण किए महादेव ने ब्राह्मणों से अनुरोध किया कि मैंने ब्रह्म हत्या का पाप नाश करने के लिए बारह वर्ष का व्रत धारण किया है। अतः मुझे पापों का नाश करने हेतु अपने साथ बिठाएँ। ब्राह्मणों द्वारा इनकार करने पर उन्होंने कहा कि ठहरों, मैं भोजन करके आता हूँ। तब ब्राह्मणों ने उन्हें मारना शुरू कर दिया। इससे उनके हाथ में रखा कपाल गिरकर टूट गया। इतने पर कपाल पुनः प्रकट हो गया। ब्राह्मणों ने क्रोधित होर कपाल को ठोकर मार दी। जिस स्थान पर कपाल गिरा वहाँ करोड़ों कपाल प्रकट हो गए। ब्राह्मण समझ गए कि यह कार्य महादेव का ही है। उन्होंने शतरूद्री मंत्रों से हवन किया। तब प्रसन्न होकर महादेव ने कहा कि जिस जगह कपाल को फैंहा है, वहाँ अनादिलिंग महादेव का लिंग है। यह समयाभाव से ढँक गया है। इसके दर्शन से ब्रह्म हत्या का पाप नाश होगा। इस पर भी जब दोष दूर नहीं हुआ तब आकाशवाणी हुई कि महाकालवन जाओ। वहाँ महान लिंग दर्शन करते समय हाथ में स्थित ब्रह्म मस्तक पृथ्वी पर गिर गया। तब महादेव ने इसका नाम कपालेश्वर रखा। बिलोटीपुरा स्थित राजपूत धर्मशाला में स्थित कपालेश्वर महादेव के दर्शन करने मात्र से कठिन मनोरथ पूरे होेते हैं।
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