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Saagar Mein Gaagar - 2 | Bhaav Kann - 17
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- Опубликовано: 19 июн 2024
- मौसी जी (श्रीमती सुलोचना देवी बगड़ीया) द्वारा लिखित यह लेख "सागर में गागर" भाव कण - १७ (श्री सत्संग सदन, कलकत्ता द्वारा प्रकाशित) में प्रकाशित किया गया।
Lock down के दौरान इस लेख का विश्लेषण श्री पुरुषोत्तम शर्मा "भैया" द्वारा Zoom पर किया गया। मौसी जी द्वारा लिखित कई गूढ़ लेखों की विश्लेषण श्रृंखला का बीसवाँ लेख "सागर में गागर" प्रभु प्रेमियों के समक्ष प्रस्तुत है। भक्त हृदय के उद्गार हम सत्य - पथ के पथिकों का मार्ग सुगम करने की कुंजी है, हम सभी इनको जीवन में उतार पाएं और प्रभु प्राप्ति के मार्ग पर अग्रसर हो पाये, यही सद्गुरु से प्रार्थना है।
।।हरि ऊँ।।
Note : This audio is originally Uploaded on Bhaavamrit Dhaara - Purushottam Bhaiya Dwara
• 'Sagar mein Gagar' par...
Om
आओ आओ प्रभू भाव से भरदो प्रभू
खाली खाली पड़ी मेरी गगरी
लेलो अपनी शरण मेटो जीवन का ऋण
आए भिक्षुक बाबा तेरी नगरी
भिक्षा भाव की हमको तो देना
मन मे भक्ति का चाव तू देना
सबमें देखूँ तुम्हे दया देना हमे
चलूँ बस सदा तेरी ही डगरी
तेरी दुनिया में रहूं मै ऐसे
पंक मे कमल खिले जैसे
आनन्द दाता प्रभू हम पर कृपा कर तू
बनूँ तेरे प्रेम की बदरी
तुने वाणी का बाण चलाया
पत्थर ह्रदय को भी तर बनाया
भाव गंगा बही मन की गंदगी धुली
चारो तरफ छटा छट की बिखरी
जप तप न हमको आए
मन मे भाव बस तेरा भाए
ना भटके अब और देदो चरणों में ठौर
करदो रहम करो ना अब देरी
आओ आओ प्रभू......
मन्जू जिन्दल गुरु की कृपा से 🙏🙏