क्या है झंडेवाला मन्दिर का इतिहास? || What is the History of Jhandewala Temple? || Delhi

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  • Опубликовано: 16 сен 2024
  • झंडेवाला मंदिर का इतिहास 18वाीं सदी के उत्तरार्ध से प्रारंभ होता है । आज जिस स्थान पर मंदिर स्थित है उस समय यहां पर अरावली पर्वत श्रॄंखला की हरी-भरी पहाडियाँ, घने वन हुआ करते थे। अनेक पशु पक्षियों का यह बसेरा था । इस शांत और रमणीय स्थान पर आसपास के निवासी सैर करने आया करते थे । ऐसे ही लोगों में चांदनी चौक के एक प्रसिद्ध व्यपारी श्री बद्री दास भी थे ।
    श्री बद्री दास धार्मिक व्यक्ति थे और वैष्णो देवी के भक़्त थे । वे नियमित रूप से इस पहाड़ी पर सैर करने आते थे और ध्यान में लीन हो जाते थे। एक बार ध्यान में लीन श्री बद्री दास को ऐसी अनुभूति हुई कि वही निकट ही एक गुफा में कोई प्राचीन मंदिर दबा हुआ है । पुनः एक दिन सपने में इसी क्षेत्र में उन्हें एक मंदिर दिखाई पड़ा और उन्हें लगा की कोई अदृश्य शक्ति उन्हें इस मंदिर को खोज निकालने के लिए प्रेरित कर रही है ।
    इस अनोखी अनुभूति के बाद श्री बद्री दास ने उस स्थान को खोजने में ध्यान लगा दिया और एक दिन स्वप्न में दिखाई दिए झरने के पास खुदाई करते समय गहरी गुफा में एक मूर्ति दिखाई दी । यह एक देवी की मूर्ति थी परंतु खुदाई में मूर्ति के हाथ खंडित हो गए इसलिए उन्होंने खुदाई में प्राप्त मूर्ति को उस के ऐतिहासिक महत्व को ध्यान में रखते हुए उसी स्थान पर रहने दिया। और ठीक उसके ऊपर देवी की एक नयी मूर्ति स्थापित कर उसकी विधिवत प्राण प्रतिष्ठा करवायी । इस अवसर पर मंदिर के ऊपर एक बहुत बडा ध्वज लगाया गया जो पहाड़ी पर स्थित होने के कारण दूर - दूर तक दिखाई देता था जिसके कारण कालान्तर में यह मंदिर झंडेवाला मंदिर के नाम से विख्यात हो गया ।
    खुदाई में प्राप्त मूर्ति जिस स्थान पर स्थापित है वह स्थान गुफा वाली माता के नाम से विख्यात हो गया । गुफा वाली देवी के खंडित हाथों के स्थान पर चांदी के हाथ लगाये गये और इस मूर्ति की पूजा भी पूर्ण विधि-विधान से की जाने लगी। वही पर खुदाई में प्राप्त एक चट्टान के ऊपर बने शिवलिंग को भी स्थापित किया गया है जिस पर नाग-नागिन का जोड़ा उकेरा हुआ है। यह प्राचीन गुफा वाली माता और शिवलिंग भी भक़्तों की श्रद्धा का केंद्र है। इसी गुफा में जलाई गई ज्योतियाँ भी लगभग आठ दशकों से अखंड रूप में जल रही है ।
    बद्री दास अब भगत बद्री दास के नाम से विख्यात हो चुके थे, आसपास की जमीनों को मंदिर के विस्तार के लिए खरीद लिया। भगत बद्री दास ने अपना शेष जीवन माँ झंडेवाली की सेवा में ही समर्पित कर दिया। मंदिर की स्थापना के साथ ही इस स्थान पर भक़्तों का आना जाना शुरू हो गया और धीरे-धीरे समय के साथ मंदिर का स्वरूप भी बदलता गया। साथ ही मंदिर के आसपास का स्वरूप भी बदलने लगा और अरावली की हरी-भरी पहाड़ियों पर जगह-जगह भवन इमारतें बनने लगी ।
    भारत विभाजन के समय शरणार्थियों के रूप में राजधानी दिल्ली में आने वाले लोग जहां तहां बस गए जिससे इस स्थान का स्वरूप बदला। वर्तमान में यह स्थान राजधानी के केंद्र में स्थित अनेक प्रसिद्ध एवं बहुत व्यस्त व्यापारिक केंद्रो से घिरा हुआ है जिसमें पहाडगंज, करोल बाग, सदर बाजार, झंडेवालान आदि हैं ।
    भगत बद्री दास जी के स्वर्गवास के पश्चात उनके सुपुत्र श्रीरामजी दास और फिर पौत्र श्री श्याम सुंदर जी ने मंदिर के दायित्व को संभाला और अनेक विकास कार्य करवाये। श्री श्याम सुंदर ने वर्ष 1944 में मंदिर की व्यवस्थाओं और इससे जुडे कार्यक्रमों को सुंदर ढंग से चलाए रखने के लिए एक सोसायटी का गठन कर उसे विधिवत कानूनी स्वरूप प्रदान करवाया और सोसायटी का नाम बद्री भगत झंडेवाला टेम्पल सोसायटी रखा गया। जो इस मंदिर से जुड़ी जिम्मेदारियों को पूर्ण करने के लिए प्रतिबद्ध है।
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Комментарии • 4

  • @AnitaMishra-c6e
    @AnitaMishra-c6e 5 месяцев назад +1

    Jai mata di ❤❤❤❤❤

  • @medhaacharya2210
    @medhaacharya2210 7 месяцев назад +1

    प्रिंस जी ,आपका धन्यवाद,मंदिर के इतने सुन्दर दर्शन कराने तथा इसका इतिहास बताने के लिए ❤

  • @Travelworld3325
    @Travelworld3325 7 месяцев назад +1

    Jai Mata di❤