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सकाम कर्म वो जिसमें अहम अपने आप को कर्ता जानकर श्रेय और अश्रेय लेता रहता है और दुख पाता रहता है,और निष्काम कर्म वो जो सहज ही उद्भूत होता है।उसमें कर्ता गायब होता है,माने होता ही नहीं,सिर्फ कर्म होता है।
आत्मा की बात हो नहीं सकती है तो फ़िर आप सहज कर्म की व्याख्या क्यों कर रहे हैं? अहम बहुत चालाक होता है वो तुंरत खुद को आत्मा मान लेता है, क़ायदे से अहम के कान में आत्मा शब्द पड़ना ही नहीं चाहिए था, बेहतरी पर्याप्त था।
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सादर प्रणाम आचार्य जी 🙏💐
Parnam sir ❤❤❤❤
आत्मज्ञान से सरलता,मैत्री, प्रेम, अहंकार का ज्ञान
प्रतिक्रिया पर नियंत्रण,तन,मन कीस्थूल कामना का ज्ञान और मुक्ति की ओर अग्रसर होते हैं।
हमारे सारे कर्म अहं की कामना और डर से ही आते हैं।
हमारे सारे कर्म अहं से आते हैं इसलिए हमें तो विवेक की ज़रूरत है।
-आचार्य प्रशांत
आत्म ज्ञान मुक्ति का मार्ग है।अहम खोखला है ये जान लेना ही मुक्ति है
सफ़र लंबा ,समय थोडा ❤❤
भगवत गीता के श्लोलो की वास्तविक व्याख्या आचार्य्यजी के द्वारा
गौर से देख लो sb pta chal jayega❤❤🙏🙏🙏🙏
सहज कर्म वो जो सीधे आत्मा से उद्भूत होता है।
और हर वो कर्म जो अहंकार द्वारा किया जा रहा है -असहज हो गया।
-आचार्य प्रशांत
मनुष्य की मूल समस्या
कर्म की नहीं ज्ञान की है।
-आचार्य प्रशांत
Dhanyawaad guruji
❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
हमारे लिए कबीर जी की एक बात पर्याप्त है, हँस समझ-बूझ बन चरना।
आत्मा माने वोध की गहराई । सहज कर्म मतलब आत्मा से किया गया कर्म ।
सहज कर्म की सुंदरता ये कि उसमें विवेक भी नहीं चाहिए।
आत्मा क्या करेगी विवेक का?
-आचार्य प्रशांत
जिसका कोई कारण नहीं हो सकता वही निष्काम कर्म है । जो कामना ज्ञान से आये वो निष्कामना है
कर्म कर्ता क्रिया सब अहम है।
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आचार्य जी को सादर प्रणाम 🙏🏼
शास्त्र विहित कर्म हो सकता है, अगर शास्त्र से आशय उपनिषद' दर्शन' गीता हैं।
कामना ही कारण है।
Pranam aacharya ji ❤❤❤🙏🙏🙏
सकाम कर्म वो जिसमें अहम अपने आप को कर्ता जानकर श्रेय और अश्रेय लेता रहता है और दुख पाता रहता है,और निष्काम कर्म वो जो सहज ही उद्भूत होता है।उसमें कर्ता गायब होता है,माने होता ही नहीं,सिर्फ कर्म होता है।
Aacharya ji aapka Charan Mein कोटि-कोटि Pranam
कामना ही कारण होती हैं प्रणाम आचार्य जी❤❤❤❤
दूसरों को खिलाने से कितना सुख का अनुभव होता है, ये भी तो सकामना हुई न।
भाव माने वृत्ति।
❤❤❤❤ good morning sir 🌄🌄🌄🌄🌄🌄🙏👍👌👍👌👍
अद्भुत प्रसंग
प्रणाम आचार्य जी🙏 r
Thought के पीछे tendency होती है।
🙏
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क्या नहीं हूँ? ये पूँछना पर्याप्त लगता है मुझे, क्या हूँ? पूँछने में बहकने लगता हूँ।
नमस्ते आचार्य जी❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤
atma he vishudh chetna bodh ki gehrayi gyan se karm khud hi udbhut hota he vichar karna nhi padta me kya kru yhi nishkam karm he
वृत्ति का कारण तुम्हारा होना।
आत्मा की बात हो नहीं सकती है तो फ़िर आप सहज कर्म की व्याख्या क्यों कर रहे हैं? अहम बहुत चालाक होता है वो तुंरत खुद को आत्मा मान लेता है, क़ायदे से अहम के कान में आत्मा शब्द पड़ना ही नहीं चाहिए था, बेहतरी पर्याप्त था।
4 दिनों से काफ़ी तनाव में हूँ, 10 वर्षों से एक ही पृश्न परेशान कर रहा है कि करूँ क्या?
Charaiveti, charaiveti ( keep moving, keep moving )
❤❤❤
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🙏
❤❤