सीमा संघोष पत्रिका मार्च

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  • Опубликовано: 19 окт 2024
  • सीमा संघोष पत्रिका मार्च
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    सीमा जागरण मंच मुखपत्र सीमा संघोष देश की सीमाओं के प्रति, सीमा प्रहरियों के प्रति, सीमान्त क्षेत्रों में रहने वाले लोगों के प्रति आम जनमानस में एक आदर और सत्कार का भाव जगाने का एक प्रयास है।
    सीमा जागरण मंच के राष्ट्र रक्षा रूपी यज्ञ में सीमा संघोष कलम रूपी आहुति है जो देश की आंतरिक सुरक्षा ,बाह्य सुरक्षा और सीमा सुरक्षा से जुड़े विषयों पर सटीक जानकारी सभी देशवासियों तक पहुंचाने का कार्य करती है। देश की सुरक्षा केवल सीमा पर खड़े हुए प्रहरियों की जिम्मेदारी नही है अपितु देश का प्रत्येक नागरिक भी देश की सुरक्षा के लिए बराबर का जिम्मेदार है, सीमा प्रहरियों के प्रति देश के लोगों में जन जागृति करने का काम यह पत्रिका करती है।
    "सीमा संघोष" अपने नाम के अनुरूप ही अपने उद्देश्य को परिलक्षित करता है। जैसे कहा जाता हैं, 'जहां न पहुंचे रवि वहां पहुंचे कवि' ठीक यही कार्य सीमा संघोष करता है।
    भारत जैसे विशाल देश में सबसे कम जाना जाने वाला परन्तु सबसे महत्वपूर्ण स्थान रखने वाला अगर कोई भू-भाग है, तो वह है; देश की सीमाएं वहाँ के स्थानीय निवासी, वहाँ तैनात सैन्य बल, वहाँ के गॉव, वहाँ की नदियां, वहाँ के पर्वत, वहाँ के रेगिस्तान। ये सब अपने समूचे देशवासियों को कुछ बताना चाहते हैं, अपनी अलौकिकता के बारे में, अपनी रमणीयता के बारे में, अपने चट्टान जैसे साहस, अपनी नदी रूपी माधुर्य, अपने वन रूपी हरियाली यह सब दिखाना भी चाहते हैं। साथ ही साथ आगाह करना चाहते हैं; वीरान होते गांव के बारे में, सरहद पर होती घुसपैठ के बारे में, दुश्मनों के कुटिल चालों के बारे में, अवैध तस्करीयों के बारे में, और लंबे समय तक हुए अपनी उपेक्षा के बारे में।
    सीमा संघोष इन सब की आवाज है, जो इस समूचे देश तथा देशवासियों को वास्तविकता से परिचित कराने का कार्य करता है। देश तथा देशवासियों में सीमाओं तथा सीमाजनों के प्रति जनजागृति पैदा करना ही सीमा संघोष का प्रमुख उद्देश्य है। सीमा संघोष देशवासियों के समक्ष सीमाओं की रणनीतिक, आर्थिक, सामाजिक राजनीतिक तथा सबसे बढ़कर सामरिक महत्व को न सिर्फ लिपिबद्ध करता है, अपितु देश के हर वर्ग को अपनी सीमाओं तथा सीमाजनों के साथ एक ऐसे धागे में पिरोने का कार्य करता है, जिसको पितामह भीष्म के कहे इस वाक्य से समझा जा सकता है जिसमें पितामह ने कहा है कि; "सीमाएं माता के वस्त्रों के समान होती हैं, इनकी रक्षा करना हर पुत्र का कर्तव्य है"।
    सीमा संघोष देश की सीमाओं तथा देशवासियों के बीच उस संबंध को स्थापित करने का प्रयास करता है, जिससे भारत अपनी सीमाओं तथा सीमाजनों को सक्षम, सशक्त तथा आत्मनिर्भर बना सके। सीमा संघोष एक हुंकार है सीमा पर होते नए बदलावों का, सीमा तथा सीमाजनों के प्रति जनजागृति के अभियान का, यह कृतज्ञ है हर उस बलिदान का जो सीमाओं की रक्षा में हुए, यह परिचायक है उसी बलिदान के भाव का, यह द्योतक है संसाधन विहीन सीमाजनों का, यह नाद है सशक्त सीमा का, यह जयघोष है समर्थ होते भारत के सुरक्षित तथा समृद्ध होती सीमाओं का।
    जय हिन्द
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Комментарии • 2

  • @ShreeshKPathak
    @ShreeshKPathak Год назад +1

    शानदार प्रयास, उल्लेखनीय पत्रिका

  • @dr_Anki
    @dr_Anki Год назад

    बहुत बढिया, शानदार