Class 14-तत्त्वार्थ सूत्र | कौनसा ज्ञान हमारे लिए हितकारी है? |
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- Опубликовано: 9 мар 2022
- Class 14 - तत्त्वार्थ सूत्र | अध्याय 1 | सूत्र 20-23| Tatwar Sutra in Hindi | Tattvarth Sutra | कौनसा ज्ञान हमारे लिए हितकारी है?- तत्त्वार्थ सूत्र |
ओं अर्हं नमः
आज की कक्षा का एक quick revision कर लेते हैं
हमने जाना की सभी ज्ञानों में हमारे लिए श्रुतज्ञान के बारे में जानना महत्वपूर्ण है
श्रुतज्ञान दो प्रकार का होता है
पहला अक्षरात्मक अर्थात जो ज्ञान सुनकर होता है
वह सिर्फ पंचेन्द्रिय संज्ञी में ही होता है
वह हमारे लिए हितकारी है
और दूसरा अनक्षरात्मक अर्थात जो ज्ञान बिना सुने अपने आप होता है
यह एक इंद्री से संघी पंचेन्द्रिय तक सभी में होता है
हमने जाना भाव श्रुतज्ञान के क्षयोपशम से ही हम द्रव्य श्रुत को समझ सकते हैं
भाव श्रुतज्ञान 20 प्रकार के हैं
श्रुतज्ञान के चिन्तन से धर्म ध्यान, शुक्ल ध्यान होते हैं
सूत्र 21 से हमने अवधिज्ञान के प्रकरण को समझा
अवधिज्ञान के दो भेद हैं
पहला भव प्रत्यय अर्थात जिसमे भव या आयु कर्म का उदय ही कारण है
यह देव और नारकी के नियामक होता है
और दूसरा गुण प्रत्यय अर्थात जिसमें क्षयोपशम और सम्यग्दर्शन, सम्यग्चारित्र आदि गुण निमित्त होते हैं
यह मनुष्य और त्रियंच के होता है
इनमे क्षयोपशम तो सामान्य निमित्त है; सम्यग्दर्शन आदि गुण भी जरूरी हैं
यहाँ अवधिज्ञान का आशय सम्यग्ज्ञान से है मिथ्या ज्ञान से नहीं
मिथ्या अवधिज्ञान को विभंग ज्ञान कहते हैं
अवधिज्ञान के 6 भेद होते हैं
अनुगामी - जो हमारे साथ अन्य क्षेत्र, भव में भी चला जाए
अननुगामी- जो इस क्षेत्र में तो है मगर दूसरे क्षेत्रों, भवों में साथ न जाये; छूट जाये
वर्धमान अर्थात बढता हुआ जो गुणों की वृद्धि से बढ़ता चला जाता है
हीयमान अर्थात घटता हुआ जो संकलेश परिणामों के कारण से घटता जाये
अवस्थित- जैसा प्राप्त हुआ है, वैसा ही बना रहना
अनअवस्थित- जो विशुद्धि और संक्लेश के साथ बढ़-घट जाए
अवधिज्ञान देशावधि, परमावधि और सर्वावधि तीन प्रकार का होता है
देशावधि = चारों गतियों में हो सकता है
परमावधि और सर्वावधि केवल चरम शरीरी, उसी भव में मोक्ष जाने वाले मुनि महाराज को ही होगा
देव, नारकी, तीर्थंकर को अवधि ज्ञान सर्वाङ्ग से होता है
अन्य महापुरुषों को नाभि से ऊपर शुभ चिन्ह शंखादि पर अवधिज्ञान लगाना पड़ेगा
मिथ्या दृष्टि के चिन्ह नाभि से नीचे होते हैं
मन:पर्यय ज्ञान, दूसरे के मन में स्थित पदार्थ को, चिंतन को जानेगा
यह दो प्रकार का होता है:
ऋजुमति ज्ञान - दूसरे के मन में चल रहे सरल चिन्तन को जानेगा
वाहन विपुलमति ज्ञान कुटिल और सरल दोनों चिन्तन को जानेगा
ऋजुमति ज्ञान ऋजु मन, ऋजु वचन, ऋजु काय तीन प्रकार का होता है
विपुलमति ज्ञान ऋजु मन-वचन-काय की प्रवृत्ति, कुटिल मन-वचन-काय की प्रवृत्ति से छः प्रकार का होता है
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नमोस्तु गुरूदेव
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नमोस्तु गुरूदेव 🙏🙏🙏
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आपके गुणात्मक प्रवचन बहुत लाभदायक सिद्ध होते हैं।
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु गुरुदेव
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु महाराज जी बैंगलोर|
Mamta lad namostu gurudev 🙏🙏🙏🙏🙏
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Mumbai - JAI JINANDRA🙏
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अनीता छाया सागर
नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु महाराज श्री
Namostu namostu namostu maharaj ji
3 , मित्थ्या मनह पर्यंत ज्ञान
पुष्पा जैन भोपाल
Alpa choksy 🙏 ♥️
Namostu Gurudev prakrit Bhasha sikhani hai uska link Kahan milega
3, मिथ्या मनह पर्यंत ज्ञान है
पुष्पा जैन भोपाल
Mithya avdhigyan
Nsmostu 🙏🙏🙏🌹
Qh@
नमोस्तु महाराज जी
1) गाथा 20- पर्याय, अक्षर,पद आदि को भव श्रुत कैसे समझें ?
2) गाथा 22- बताया कि मनुष्य/ तिर्यंच में स.दर्शन होने पर ही अवधि ज्ञान होगा।
पर इनमें विभंग ज्ञान भी होता होगा न ?
3) गाथा 23- देशावधि, भव तथा गुण प्रत्यय दोनों ही प्रकार के होते होंगे ?
4) गाथा 24- रिजुमति मनःपर्यय ज्ञान भी अर्धचिंतित को भी जानता है न ?
योगेन्द्र- ग्वालियर
Namostu gurudev
🙏🙏🙏
Namostu gurudev🙏🙏🙏