क्या यह भी सच है ? नारणावास.जालोर के निकट जागनाथ महादेव मंदिर की कहानी काफी प्राचीन एवं ऐतिहासिक है

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  • Опубликовано: 18 сен 2024
  • सुनहरे धोरों के बीच छटा बिखेर रहा नारणावास के निकट जागनाथ महादेव मंदिर
    नारणावास. जालोर जिले के नारणावास स्थित जागनाथ महादेव मंदिर काफी प्राचीन एवं ऐतिहासिक है। नारणावास कस्बे से पूर्व की ओर 4 किलोमीटर दूर अरावली पर्वत शृंखला उपशाखा ऐसराणा पहाड़ पर सुनहरे रेतीले धोरों के बीचजागनाथ महादेव मंदिर बिराजित है। यहां की प्राकृतिक छटा बरबस ही श्रद्धालुओं का मन मोह लेती हैं। ऊंचे ऊंचे विशाल हरे भरे पहाड़, रेत के बड़े धोरे व हरियालीआकर्षित करते हैं।
    नारणावास के रूपसिंह राठौड़ ने बताया कि मन्दिर के आस पास बहते हुए झरने, सदाबहार चलने वाली छोटी नदी जो स्थानीय श्रद्धालुओं में यहां की छोटी गंगा के नाम से जानी जाती है, आगंतुक का मन मोह लेती हैं। जिला मुख्यालय से 18 किमी दूर स्थित यह मंदिर बहुत प्राचीन एवं ऐतिहासिक है। यह मंदिर कई वर्ष पहले मोरली गिरी महाराज ने बनवाया था। जिसे नया मंदिर कहा जाता है यहां से प्राप्त एक प्राचीन शिलालेख के अध्ययन से पता चलता है कि यह स्थल देवी का शिलालेख है तथा इस पर उत्कृत लेख मंदिर की कहानी का गवाह है। यह लेख चौकोर स्तंभों के निचले भाग में स्थित है मध्य भाग में मूर्तियां उत्कीर्ण है। स्तंभों के ऊपरी भाग में मंदिर के शिखर की आकृतियां बनी हुई है। इसके अलावा उदयसिंह के लेख हंै। स्तंभ लेखों में जिन पर स्त्री मूर्तियां बनी है, यह मूर्तियां स्थल देवी की जान पड़ती है। इस मंदिर का स्थापना काल 118 2 ई. से 1207 ई. जान पड़ता है। इसी प्रकार वि.सं. 1278 के एक शिलालेख में उदयसिंह को अपनी महारानी सहित प्रणाम मुद्रा में दिखाया गया है। इसके अलावा 126 4 ई. का शिलालेख एक चबूतरे पर लगा है। इस मंदिर का शिवलिंग इतना प्राचीन है कि इसे सफेद पट्टियों से ढक दिया गया है, ताकि जलाघात से शिवलिंग को बचाया जा सके। मंदिर परिसर में कई शिलालेख एवं स्तम्भ रखे हुए हैं। कुछ तो 700 से 8 00 वर्ष पुराने बताए जाते हैं। ये सभी पुरातात्विक दृष्टि से अत्यंत ही महत्वपूर्ण है। शिवालय परिसर में जूझार बावसी का स्थान भी है, जिनको सबसे पहले पूजा करने का वचन दिया हुआ है। यह परिपाटी आज भी कायम है।

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