लंका काण्ड - रामायण | रामलीला | 2023 | रामायण खण्ड

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  • Опубликовано: 29 сен 2024
  • नल-नील की सहायता से समुद्र में सेतु का निर्माण कर राम लक्ष्मण सहित वानर सेना लंका पहुँच जाती है। रावण राम से प्रथम युद्ध में पराजित हो अपने मंझले भाई कुम्भकरण को युद्धभूमि में भेजता है। कुम्भकरण युद्धभूमि में वानर सेना को बड़ी क्षति पहुँचाता है। अंगद और हनुमान को युद्ध में परास्त कर कुम्भकरण के ललकारे जाने पर राम लक्ष्मण को लड़ने भेजते हैं। कुम्भकरण अपने कई अस्त्रों की विफलता के बाद शिव का अमोघ त्रिशूल लक्ष्मण पर चलाता है जिसे रुद्रावतार हनुमान बीच में पकड़कर तोड़ देते हैं। इसके बाद कुम्भकरण सुग्रीव को अपनी मुठ्ठी में कैद करके लंका की ओर चल देता है लेकिन राम उसका मार्ग रोक इन्द्रास्त्र चलाकर उसकी दोनों भुजाएं काट देते हैं और ब्रह्मदण्ड का वार से उसका शीश काट देते है जो समुद्र में समा जाता है। रक्तसम्बन्ध के कारण अपने भाई मृत्यु देख विभीषण की आँखों से आँसू बह निकलते हैं। अपने भाई कुम्भकरण और अतिकाय के मारे जाने पर इन्द्रजीत मेघनाद स्वयं युद्ध के लिए आता है और उसका लक्ष्मण के साथ कांटे का संघर्ष होता है। लक्ष्मण अपने भाई का स्मरण करके मेघनाद के कई दिव्यास्त्र निष्फल करते हैं। यह देख मेघनाद शक्ति का आह्वान करके लक्ष्मण पर आघात कर मूर्च्छित कर देते है। राम धरा पर मूर्च्छित पड़े अपने भाई लक्ष्मण का सिर गोद में रखकर विलाप करते हैं। लंका के वैद्यराज सुषेण लक्ष्मण का उपचार करने के लिए सूर्योदय से पूर्व हिमालय पर्वत से मृतसंजीवनी बटी लाने के लिए कहते है। हनुमान राम से आज्ञा लेकर आकाश मार्ग से हिमालय पहुँच मृतसंजीवनी बूटी की पहचान न कर पाने के कारण पूरे द्रोणागिरी पर्वत को सूर्योदय से पूर्व ले आते है। संजीवनी के रस से लक्ष्मण की मूर्छा दूर हो जाती है। लक्ष्मण पुनः युद्धभूमि में पहुँचते है लेकिन मेघनाद पहले अपने चाचा विभीषण को सन्तानहन्ता कहकर मारने के लिये लक्ष्य साधकर यमास्त्र चलाता है लेकिन लक्ष्मण जोकि गन्धर्वराज कुबेर से इस अस्त्र के तोड़ की विधि जान चुके थे, वह विभीषण की रक्षा करते हैं। इसके पश्चात मेघनाद लक्ष्मण पर ब्रह्मास्त्र, पाशुपतास्त्र, नारायण अस्त्र चलाता है किन्तु लक्ष्मण द्वारा समस्त शस्त्र प्रणाम किए जाने के पर उनकी प्रदक्षिणा करके लौट जाते है। यह देख मेघनाद रण छोड़ अन्तर्धान हो अपने पिता रावण के पास जाता है और पुत्रधर्म का निर्वाह करते हुए उन्हें सचेत करता है। मेघनाद कहता है कि उसे जो अनुभव हुए हैं, उसके आधार पर वह समझ चुका है कि राम मनुष्य नहीं हैं, नारायण के अवतार हैं। वह पिता से सीता को लौटाकर राम की शरण में जाने को कहता है। रावण मेघनाद की बातों से क्रोधित होता है और उसे युद्ध से हट जाने को कहता है। इस पर मेघनाद कहता है कि पिता से विमुख पुत्र का तो भगवान भी आदर नहीं करते हैं। वह युद्धभूमि में जाकर वीर की भाँति भगवान राम के हाथों मरना चाहेगा। मेघनाद अट्टहास करता हुआ पुनः लक्ष्मण के समक्ष पहुँचकर युद्ध आरम्भ करता है। लक्ष्मण अपने बाण को श्रीराम की आन देकर मेघनाद पर चलाते हैं। यह बाण मेघनाद का शीश काटकर गिरा देता है। मेघनाद की मृत्यु से क्रोधित हो रावण स्वयं रणभूमि में उतरता है। देवतागण पैदल नंगे पाव राम देख भगवान ब्रह्मा जी के सुझाव पर इन्द्र का सारथी मातलि को दिव्य रथ के साथ राम के पास भेजते है। रावण राम को इन्द्र के रथ पर आरूढ़ देखकर परेशान हो जाता है। राम रावण के बीच भयंकर युद्ध होता है। राम बारम्बार अपने तीखे बाणों से रावण का शीश काटते हैं किन्तु हर बार उसके धड़ पर नया शीश उग आता जाता है। देवराज इन्द्र यह विचित्र स्थिति देखकर कहते हैं कि प्रभु राम रावण के वक्ष पर बाण क्यों नहीं चलाते। इसपर भगवान ब्रह्मा गूढ़ रहस्य बताते हैं कि राम कभी रावण के हृदय को लक्ष्य करके बाण नहीं चलायेंगे क्योंकि वे जानते हैं कि रावण के हृदय में सीता का वास है, सीता के हृदय में राम का वास है और राम के हृदय में पूरी सृष्टि का वास है। इस अवस्था में यदि रावण के हृदय में बाण मारा गया तो उसके साथ सीता, स्वयं राम और पूरी सृष्टि का विनाश हो जायेगा। उधर राम की निरन्तर विफलता देखकर विभीषण उनके पास पहुँचते हैं और बताते हैं कि भगवान ब्रह्मा के वरदान से रावण की नाभि में अमृत है। राम अग्निबाण का संधान कर रावण की नाभि को भेदते हैं और उसका अमृत सुखा देते हैं। सारथि मातलि कहता है कि देवताओे ने रावण के विनाश का जो समय बताया था, वह आ चुका है। अब राम ब्रह्मास्त्र का प्रयोग कर रावण का अन्त करें। राम रावण पर ब्रह्मास्त्र चलाते हैं। रावण धरती पर आ गिरता है। प्राण छोड़ते समय पहली बार वह अपने मुख से राम को श्रीराम कहकर पुकराता है। तीनों लोक राम की जय जयकार करते हैं।
    || जय सियाराम ||

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