Ahle Sunnat Wa Jamat kon hai or kon nhi || Who is Ahle sunnat wa jamat || Allama Rizwan Naqshbandi

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  • Опубликовано: 6 янв 2025

Комментарии •

  • @faizanikram8521
    @faizanikram8521 9 месяцев назад +2

    کروڑوں درود و سلام خاتم النبیین صلی اللہ علیہ وسلم کی پاک ذات پہ آپکی آل پہ آپکے تمام صحابہ کرام رضوان اللہ تعالیٰ علیہم اجمعین پہ

  • @farzanafarii17
    @farzanafarii17 Год назад

    MashaAllah beautiful bayaan 💖💖💖

  • @ReallyBoss-7
    @ReallyBoss-7 Год назад +2

    Ahele Sunnat jamat Zindabad Maslak E Ala Hazrat Zindabad 🌹

  • @mohammadiqbal5357
    @mohammadiqbal5357 8 месяцев назад

    Mashaallah bahut khoob hajarat ❤

  • @786abbulhassansyedsr.5
    @786abbulhassansyedsr.5 3 года назад +5

    💓 lab baik ya Rasool Allah 💓

  • @kingjanimrankingjan1149
    @kingjanimrankingjan1149 3 года назад +4

    ماشاء اللہ مفتی صاحب آپ آپ نے بہت اچھی بات کہی

  • @hasan9166
    @hasan9166 4 года назад +4

    MashAllah!!

  • @AllamaRizwanNaqshbandi
    @AllamaRizwanNaqshbandi  6 лет назад

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  • @khalidbinwakeel9619
    @khalidbinwakeel9619 2 года назад +1

    ماشاءاللہ بہت اچھے انداز میں علامہ صاحب نے سمجھایا اللہ تعالیٰ آپ کے علم میں عمل میں عمر میں خیر وبرکت فرمائے آمین

  • @shahidqadri112
    @shahidqadri112 6 лет назад +3

    ماشاءاللہ

  • @fareedsyed956
    @fareedsyed956 4 года назад +3

    Beshak.. Masha Allah.. Umdah Bayan

  • @eshafatima9946
    @eshafatima9946 4 года назад +3

    Ma Sha Allah

  • @fortunepk
    @fortunepk 6 лет назад +4

    Masha-ALLAH

  • @BabarQadri-d4d
    @BabarQadri-d4d Месяц назад

    Babar Qadri Karachi Korangi ♥ Zabrds Zabrds ❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤❤

  • @Bwave-Nexus
    @Bwave-Nexus 3 года назад +2

    Allah, Rasoolallah (saw) our Ahlebait ke mohibbon ka adab wajib hei our unke dushmanoon per lanat hei. Allah ne quran mein inhi logon per lanat bheji hei.....!

  • @chishtigonalqadri7743
    @chishtigonalqadri7743 4 года назад +1

    Ma Sha Allah .hazrat g

  • @mohammadharis404
    @mohammadharis404 Год назад

    One of the best videos i ever Seen♥️

  • @chabisir4042
    @chabisir4042 3 года назад

    Bilkul Sain Ap ne durst farmaya.

  • @sharifsharifuddinuddin9627
    @sharifsharifuddinuddin9627 3 года назад +1

    ماشاءللہ میں یہ بیان سننا ہے بس سنلئ

  • @fortunepk
    @fortunepk 6 лет назад +2

    SubhanALLAH

  • @WaseembhattiBhatti-c1s
    @WaseembhattiBhatti-c1s 10 месяцев назад

    Aik bandai nai question kiya h agar hum kesi k sath zana krai to k sath nikha kr saktai h kya?????Ans plzz

  • @aminamin5790
    @aminamin5790 3 года назад

    Mashallah

  • @muneebahashmi6681
    @muneebahashmi6681 3 года назад +1

    Alime den ba amal ashiq e rasool.rizwan bhai

  • @Bwave-Nexus
    @Bwave-Nexus 3 года назад

    Ya Mohammad , Ya Musa, Ya Nooh kehna bilkul quran ke mutabiq hei.

  • @wekiproduction5461
    @wekiproduction5461 4 года назад

    Very nice

  • @rashidlodhi1713
    @rashidlodhi1713 3 года назад

    shahba ki definition bhi bata dain....

  • @muhammadikram-kc8of
    @muhammadikram-kc8of 4 года назад

    Bohat achi bat ki

  • @mianfaizmuhammad1450
    @mianfaizmuhammad1450 4 года назад

    Nice explanation

  • @shabirahmadmir7544
    @shabirahmadmir7544 3 года назад

    ALAHUAKBAR

  • @shabirahmadmir7544
    @shabirahmadmir7544 3 года назад

    Subhaan

  • @chabisir4042
    @chabisir4042 3 года назад

    سبحان اللہ
    اہلسنت جماعت
    زندہ آباد

  • @sadiyakhan6197
    @sadiyakhan6197 4 года назад +2

    Ahle sunnat wa jamat kiya hai plz bata do?

    • @rehankureshi8501
      @rehankureshi8501 4 года назад +2

      Meri is baat ko mufti ulma ikram tak phuchya jaye} ईस फतवे में जो लफ्ज़ 13 वी लाइन में शेर के बाद 👉जरूरियाते मसलके अहलेसुन्नत इस्तिमाल हुआ कोई मुफ्ती अलीम इस पर वीडियो जरूर बनाये कियुकि इसके इनकार से इंसान सुन्नी नही रहता गुमराह हो जाता है मुसलमान तब भी रहता है काफिर नही गुमराह होता है यानी जो जरुरियते दीन का इनकार करता है वो काफिर होता है और जो जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत का इनकार करता है वो गुमराह होता है सुन्नी नही और आज हर कोई किसी को भी गुमराह कह देता है बल्कि काफिर तक चाहे वो बात किसी भी दर्ज़े की हो तो इन दोनों की तारीफ क्या है हुक्म क्या है ये जरूर बताना चाहिये कियुकि ये जरूरी है इनको मानने की वजह से ही हम मुसलमान और सुन्नी है मेने जरुरियते दीन की तो खूब तारीफ पढ़ी लेकिन जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत को पूरी तरह से नही जानता हम नियाज़ फातिहा मिलाद चन्द बातो को मान कर सुन्नी नही बने सब अक़ाइद को मानना जरूरी है और जो मानेगा सुन्नी है वही मसलके आलाहज़रत पर है 💐और ये कहा जाता है जो नबी का गुस्ताख़ है वो सुन्नी नही बल्कि वो तो मुसलमान ही नही उलमा तवज़्ज़ो दे नमाज़ में सब गलती 1 जैसी नही फ़र्ज़ के छूटने पर नमाज़ नमाज़ ही नही, इसी तरह जरुरियते दीन का इन्कारी मुसलमान ही नही , वाजिब के छूटने पर नमाज़ मकरूह तहरीमी, नमाज़ हो चुकी है लेकिन पूरी तरह सही नही दुबारा पढ़ना वाजिब इसी तरह जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत का इन्कारी मुसलमान है लेकिन सुन्नी नही गुमराह है हज़रत सिद्दीक अकबर फारूक आज़म को सबसे अफ़ज़ल सहाबी मानना जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत है किसी और को इनसे अफ़ज़ल मानना गुमराही है कुछ लोग इस हवाले से गुमराह कर रहे है अवाम को हज़रत अली की मुहब्बत के बहाने 💐उलमा तक़लीद वसीला हजीरो नज़ीर इल्मे गैब सहाबा की तौहीन, नबी का नूर होना, कब्रे अनवर में जिंदा होना और भी कोई बाते जिनका इनकार करते है बदमज़हब कम से कम उनका तो बयान करे उनकी अहमियत को की इनके इंकार से आख़िरत खराब हो जाती है 💐कोई मेरी बात से इख़्तिलाफ़ कर सकता है कि ये बाते अवाम के लिए मुश्किल है समझना लेकिन कोई हमे फ़र्ज़ वाजिब के बारे में सवाल करता है तो हम ये नही कहते कि 💐 फ़र्ज़ उसे कहते है जो दलीले कतई से साबित हो और वाजिब उसे जो दलीले जननी से } अवाम क्या समझे दलीले कतई क्या जन्नी क्या फिर बाता दिया जाये की दलीले कतई वो जो कुराने पाक या हदीसे मुतवातिर से हो (तो फिर मुतवातिर क्या 💐मतलब सवाल पे सवाल फिर भी अवाम के समझ मे न आये बात💐 हम सिर्फ इतना बताते है कि फ़र्ज़ का छोड़ने से इंसान गुनहगार होता है और जिस वो इबादत में हो उसके बिना वो बातिल इस ही तरह जरुरियते दीन के इनकार से ईमान बातिल यानी खराब और जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत के इनकार से सुन्नियत से खारिज बदमज़हब है लेकिन बदमज़हबी कुफ्र तक नही पोहुची इसलिए गुमराह है

  • @mtariq9300
    @mtariq9300 2 года назад

    Ahley sunnat jamaat kab wajood ma aaae

  • @abdullahoptics9436
    @abdullahoptics9436 4 года назад +2

    Molana sb ap to ahl-e-sunat ki bajy barelwiyat ka batai ja rahy hein...

    • @ishaikh5512
      @ishaikh5512 3 года назад +1

      Barelwiyat or wo Jinka Aqida Barelwiyo wala hai wohi Asli Ahlesunnat hai
      Agar Nahi hai to Sabit kar
      Barelvio ka Ek Amal jo
      Quran, Hadith, Ijma, Qayas ke
      khilaf ho

    • @muhammadumair5729
      @muhammadumair5729 3 года назад

      @@ishaikh5512 quran kehta hai firqay na banao but ye brelvi jokay aik firqa hai . . . ye brelvi maslak ko pata hi nhi firqay ka tow ye tow quran key kilaaf hogia

    • @ishaikh5512
      @ishaikh5512 3 года назад +1

      @@muhammadumair5729 Huzoorﷺ ne wazhat kar di hai
      73 Firke me se 1 Jannati Firqa hoga
      72 jahannumi honge
      Tirmizi Sharif, Vol.2 (kitabul Imaan) Hadees no.538
      Jannati bi 1 Firqa hi hoga babu😂
      Afsos ke Daleel tere Daawe ke khilaaf gai🤡

    • @muhammadumair5729
      @muhammadumair5729 3 года назад

      @@ishaikh5512 beta inhonay kaha k aik janati firka hoga . inhonay ye tow nhi kaha nha k falah firka jannati hoga. . hr firka apni hi tareefay krta hai sb firkay parst ko hadees yad hai but quran may jo firkay k mutalik jo kaha gia hai wo pata nhi. . .
      Nabi pak ﷺ nay ye tow nhi kaha na firkay banao . . mulakkar abi tumhay taza doodh ki zaroorat hai

    • @ishaikh5512
      @ishaikh5512 3 года назад

      @@muhammadumair5729
      Sureh Aale Imraan Ayat No.104
      Aur Tum Me'n Ek Giroh Aisa Hona Chaahiye Ke Bhalaayi Ki Taraf Bulaaye'n Aur Achchi Baat Ka Hukm De'n Aur Buri Se Man'a Kare'n Aur Yehi Log Muraad (Kaamiyaabi) Ko Paho'nche.
      Ayat No.105
      Aur Un Jaise Na Hona Jo Aapas Me'n Phat Gaye Aur Unme'n Phoot Pad Gayi Ba'ad Iske Ke Roshan Nishaaniyaa'n Unhe'n Aachuki Thee'n Aur Unke Liye Bada Azaab Hai.

  • @rehankureshi8501
    @rehankureshi8501 4 года назад +1

    💐 Meri is baat ko mufti ulma ikram tak ho sake to phuchya jaye} 👉जरूरियाते मसलके अहलेसुन्नत के बारे में कोई मुफ्ती अलीम इस पर वीडियो जरूर बनाये कियुकि इसके इनकार से इंसान सुन्नी नही रहता गुमराह हो जाता है मुसलमान तब भी रहता है काफिर नही गुमराह होता है यानी जो जरुरियते दीन का इनकार करता है वो काफिर होता है और जो जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत का इनकार करता है वो गुमराह होता है सुन्नी नही और आज हर कोई किसी को भी गुमराह कह देता है बल्कि काफिर तक चाहे वो बात किसी भी दर्ज़े की हो तो इन दोनों की तारीफ क्या है हुक्म क्या है ये जरूर बताना चाहिये कियुकि ये जरूरी है इनको मानने की वजह से ही हम मुसलमान और सुन्नी है मेने जरुरियते दीन की तो खूब तारीफ पढ़ी लेकिन जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत को पूरी तरह से नही जानता हम नियाज़ फातिहा मिलाद चन्द बातो को मान कर सुन्नी नही बने सब अक़ाइद को मानना जरूरी है और जो मानेगा सुन्नी है वही मसलके आलाहज़रत पर है 💐और ये कहा जाता है जो नबी का गुस्ताख़ है वो सुन्नी नही बल्कि वो तो मुसलमान ही नही उलमा तवज़्ज़ो दे नमाज़ में सब गलती 1 जैसी नही फ़र्ज़ के छूटने पर नमाज़ नमाज़ ही नही, इसी तरह जरुरियते दीन का इन्कारी मुसलमान ही नही , वाजिब के छूटने पर नमाज़ मकरूह तहरीमी, नमाज़ हो चुकी है लेकिन पूरी तरह सही नही दुबारा पढ़ना वाजिब इसी तरह जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत का इन्कारी मुसलमान है लेकिन सुन्नी नही गुमराह है हज़रत सिद्दीक अकबर फारूक आज़म को सबसे अफ़ज़ल सहाबी मानना जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत है किसी और को इनसे अफ़ज़ल मानना गुमराही है कुछ लोग इस हवाले से गुमराह कर रहे है अवाम को हज़रत अली की मुहब्बत के बहाने 💐उलमा तक़लीद वसीला हजीरो नज़ीर इल्मे गैब सहाबा की तौहीन, नबी का नूर होना, कब्रे अनवर में जिंदा होना और भी कोई बाते जिनका इनकार करते है बदमज़हब कम से कम उनका तो बयान करे उनकी अहमियत को की इनके इंकार से आख़िरत खराब हो जाती है 💐कोई मेरी बात से इख़्तिलाफ़ कर सकता है कि ये बाते अवाम के लिए मुश्किल है समझना लेकिन कोई हमे फ़र्ज़ वाजिब के बारे में सवाल करता है तो हम ये नही कहते कि 💐 फ़र्ज़ उसे कहते है जो दलीले कतई से साबित हो और वाजिब उसे जो दलीले जननी से } अवाम क्या समझे दलीले कतई क्या जन्नी क्या फिर बाता दिया जाये की दलीले कतई वो जो कुराने पाक या हदीसे मुतवातिर से हो (तो फिर मुतवातिर क्या 💐मतलब सवाल पे सवाल फिर भी अवाम के समझ मे न आये बात💐 हम सिर्फ इतना बताते है कि फ़र्ज़ का छोड़ने से इंसान गुनहगार होता है और जिस वो इबादत में हो उसके बिना वो बातिल इस ही तरह जरुरियते दीन के इनकार से ईमान बातिल यानी खराब और जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत के इनकार से सुन्नियत से खारिज बदमज़हब है लेकिन बदमज़हबी कुफ्र तक नही पोहुची इसलिए गुमराह है

  • @sha2zadi
    @sha2zadi 4 года назад +1

    SUBHAN ALLAH VABIHAMDIHI SUBHAN ALLAH HILAZEEM VABIHAMDIHI ASTAGFIRULLAH

  • @MudassarKhan-gg3ju
    @MudassarKhan-gg3ju 9 месяцев назад

    Lanat bar dushman e Ali A.S ❤

  • @rehankureshi8501
    @rehankureshi8501 4 года назад +2

    इतनी तफसील से किसी ने नही बताया कोंन सुन्नी कौन नही जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत क्या है इसको कोई सुन्नी अलीम और वाज़ेह करे

  • @lostinlife2700
    @lostinlife2700 3 года назад +1

    😂😂😂😂

  • @karrar5640
    @karrar5640 Год назад

    Bashak mulvi nay kitab tou pada hay magar asili kitab padnay ko nahing mila hay.

  • @mansoorpatel606
    @mansoorpatel606 Год назад

    Qaber pujwa Shia ki shakh hai

  • @ImranAnsari-bc6wc
    @ImranAnsari-bc6wc Год назад

    Chistirasulullah ahlesunnat se hai aur isko na manna ahlesunnat se kharij hai😂😂😂😂😂😂😂😂

  • @shyamsunder7910
    @shyamsunder7910 11 месяцев назад

    MashaAllah

  • @naseerhussainqadri517
    @naseerhussainqadri517 4 года назад +1

    ماشاءاللہ

  • @rehankureshi8501
    @rehankureshi8501 4 года назад +1

    💐 Meri is baat ko mufti ulma ikram tak ho sake to phuchya jaye} 👉जरूरियाते मसलके अहलेसुन्नत के बारे में कोई मुफ्ती अलीम इस पर वीडियो जरूर बनाये कियुकि इसके इनकार से इंसान सुन्नी नही रहता गुमराह हो जाता है मुसलमान तब भी रहता है काफिर नही गुमराह होता है यानी जो जरुरियते दीन का इनकार करता है वो काफिर होता है और जो जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत का इनकार करता है वो गुमराह होता है सुन्नी नही और आज हर कोई किसी को भी गुमराह कह देता है बल्कि काफिर तक चाहे वो बात किसी भी दर्ज़े की हो तो इन दोनों की तारीफ क्या है हुक्म क्या है ये जरूर बताना चाहिये कियुकि ये जरूरी है इनको मानने की वजह से ही हम मुसलमान और सुन्नी है मेने जरुरियते दीन की तो खूब तारीफ पढ़ी लेकिन जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत को पूरी तरह से नही जानता हम नियाज़ फातिहा मिलाद चन्द बातो को मान कर सुन्नी नही बने सब अक़ाइद को मानना जरूरी है और जो मानेगा सुन्नी है वही मसलके आलाहज़रत पर है 💐और ये कहा जाता है जो नबी का गुस्ताख़ है वो सुन्नी नही बल्कि वो तो मुसलमान ही नही उलमा तवज़्ज़ो दे नमाज़ में सब गलती 1 जैसी नही फ़र्ज़ के छूटने पर नमाज़ नमाज़ ही नही, इसी तरह जरुरियते दीन का इन्कारी मुसलमान ही नही , वाजिब के छूटने पर नमाज़ मकरूह तहरीमी, नमाज़ हो चुकी है लेकिन पूरी तरह सही नही दुबारा पढ़ना वाजिब इसी तरह जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत का इन्कारी मुसलमान है लेकिन सुन्नी नही गुमराह है हज़रत सिद्दीक अकबर फारूक आज़म को सबसे अफ़ज़ल सहाबी मानना जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत है किसी और को इनसे अफ़ज़ल मानना गुमराही है कुछ लोग इस हवाले से गुमराह कर रहे है अवाम को हज़रत अली की मुहब्बत के बहाने 💐उलमा तक़लीद वसीला हजीरो नज़ीर इल्मे गैब सहाबा की तौहीन, नबी का नूर होना, कब्रे अनवर में जिंदा होना और भी कोई बाते जिनका इनकार करते है बदमज़हब कम से कम उनका तो बयान करे उनकी अहमियत को की इनके इंकार से आख़िरत खराब हो जाती है 💐कोई मेरी बात से इख़्तिलाफ़ कर सकता है कि ये बाते अवाम के लिए मुश्किल है समझना लेकिन कोई हमे फ़र्ज़ वाजिब के बारे में सवाल करता है तो हम ये नही कहते कि 💐 फ़र्ज़ उसे कहते है जो दलीले कतई से साबित हो और वाजिब उसे जो दलीले जननी से } अवाम क्या समझे दलीले कतई क्या जन्नी क्या फिर बाता दिया जाये की दलीले कतई वो जो कुराने पाक या हदीसे मुतवातिर से हो (तो फिर मुतवातिर क्या 💐मतलब सवाल पे सवाल फिर भी अवाम के समझ मे न आये बात💐 हम सिर्फ इतना बताते है कि फ़र्ज़ का छोड़ने से इंसान गुनहगार होता है और जिस वो इबादत में हो उसके बिना वो बातिल इस ही तरह जरुरियते दीन के इनकार से ईमान बातिल यानी खराब और जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत के इनकार से सुन्नियत से खारिज बदमज़हब है लेकिन बदमज़हबी कुफ्र तक नही पोहुची इसलिए गुमराह है

  • @rehankureshi8501
    @rehankureshi8501 4 года назад +2

    💐 Meri is baat ko mufti ulma ikram tak ho sake to phuchya jaye} 👉जरूरियाते मसलके अहलेसुन्नत के बारे में कोई मुफ्ती अलीम इस पर वीडियो जरूर बनाये कियुकि इसके इनकार से इंसान सुन्नी नही रहता गुमराह हो जाता है मुसलमान तब भी रहता है काफिर नही गुमराह होता है यानी जो जरुरियते दीन का इनकार करता है वो काफिर होता है और जो जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत का इनकार करता है वो गुमराह होता है सुन्नी नही और आज हर कोई किसी को भी गुमराह कह देता है बल्कि काफिर तक चाहे वो बात किसी भी दर्ज़े की हो तो इन दोनों की तारीफ क्या है हुक्म क्या है ये जरूर बताना चाहिये कियुकि ये जरूरी है इनको मानने की वजह से ही हम मुसलमान और सुन्नी है मेने जरुरियते दीन की तो खूब तारीफ पढ़ी लेकिन जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत को पूरी तरह से नही जानता हम नियाज़ फातिहा मिलाद चन्द बातो को मान कर सुन्नी नही बने सब अक़ाइद को मानना जरूरी है और जो मानेगा सुन्नी है वही मसलके आलाहज़रत पर है 💐और ये कहा जाता है जो नबी का गुस्ताख़ है वो सुन्नी नही बल्कि वो तो मुसलमान ही नही उलमा तवज़्ज़ो दे नमाज़ में सब गलती 1 जैसी नही फ़र्ज़ के छूटने पर नमाज़ नमाज़ ही नही, इसी तरह जरुरियते दीन का इन्कारी मुसलमान ही नही , वाजिब के छूटने पर नमाज़ मकरूह तहरीमी, नमाज़ हो चुकी है लेकिन पूरी तरह सही नही दुबारा पढ़ना वाजिब इसी तरह जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत का इन्कारी मुसलमान है लेकिन सुन्नी नही गुमराह है हज़रत सिद्दीक अकबर फारूक आज़म को सबसे अफ़ज़ल सहाबी मानना जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत है किसी और को इनसे अफ़ज़ल मानना गुमराही है कुछ लोग इस हवाले से गुमराह कर रहे है अवाम को हज़रत अली की मुहब्बत के बहाने 💐उलमा तक़लीद वसीला हजीरो नज़ीर इल्मे गैब सहाबा की तौहीन, नबी का नूर होना, कब्रे अनवर में जिंदा होना और भी कोई बाते जिनका इनकार करते है बदमज़हब कम से कम उनका तो बयान करे उनकी अहमियत को की इनके इंकार से आख़िरत खराब हो जाती है 💐कोई मेरी बात से इख़्तिलाफ़ कर सकता है कि ये बाते अवाम के लिए मुश्किल है समझना लेकिन कोई हमे फ़र्ज़ वाजिब के बारे में सवाल करता है तो हम ये नही कहते कि 💐 फ़र्ज़ उसे कहते है जो दलीले कतई से साबित हो और वाजिब उसे जो दलीले जननी से } अवाम क्या समझे दलीले कतई क्या जन्नी क्या फिर बाता दिया जाये की दलीले कतई वो जो कुराने पाक या हदीसे मुतवातिर से हो (तो फिर मुतवातिर क्या 💐मतलब सवाल पे सवाल फिर भी अवाम के समझ मे न आये बात💐 हम सिर्फ इतना बताते है कि फ़र्ज़ का छोड़ने से इंसान गुनहगार होता है और जिस वो इबादत में हो उसके बिना वो बातिल इस ही तरह जरुरियते दीन के इनकार से ईमान बातिल यानी खराब और जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत के इनकार से सुन्नियत से खारिज बदमज़हब है लेकिन बदमज़हबी कुफ्र तक नही पोहुची इसलिए गुमराह है

  • @rehankureshi8501
    @rehankureshi8501 4 года назад

    💐 Meri is baat ko mufti ulma ikram tak ho sake to phuchya jaye} 👉जरूरियाते मसलके अहलेसुन्नत के बारे में कोई मुफ्ती अलीम इस पर वीडियो जरूर बनाये कियुकि इसके इनकार से इंसान सुन्नी नही रहता गुमराह हो जाता है मुसलमान तब भी रहता है काफिर नही गुमराह होता है यानी जो जरुरियते दीन का इनकार करता है वो काफिर होता है और जो जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत का इनकार करता है वो गुमराह होता है सुन्नी नही और आज हर कोई किसी को भी गुमराह कह देता है बल्कि काफिर तक चाहे वो बात किसी भी दर्ज़े की हो तो इन दोनों की तारीफ क्या है हुक्म क्या है ये जरूर बताना चाहिये कियुकि ये जरूरी है इनको मानने की वजह से ही हम मुसलमान और सुन्नी है मेने जरुरियते दीन की तो खूब तारीफ पढ़ी लेकिन जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत को पूरी तरह से नही जानता हम नियाज़ फातिहा मिलाद चन्द बातो को मान कर सुन्नी नही बने सब अक़ाइद को मानना जरूरी है और जो मानेगा सुन्नी है वही मसलके आलाहज़रत पर है 💐और ये कहा जाता है जो नबी का गुस्ताख़ है वो सुन्नी नही बल्कि वो तो मुसलमान ही नही उलमा तवज़्ज़ो दे नमाज़ में सब गलती 1 जैसी नही फ़र्ज़ के छूटने पर नमाज़ नमाज़ ही नही, इसी तरह जरुरियते दीन का इन्कारी मुसलमान ही नही , वाजिब के छूटने पर नमाज़ मकरूह तहरीमी, नमाज़ हो चुकी है लेकिन पूरी तरह सही नही दुबारा पढ़ना वाजिब इसी तरह जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत का इन्कारी मुसलमान है लेकिन सुन्नी नही गुमराह है हज़रत सिद्दीक अकबर फारूक आज़म को सबसे अफ़ज़ल सहाबी मानना जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत है किसी और को इनसे अफ़ज़ल मानना गुमराही है कुछ लोग इस हवाले से गुमराह कर रहे है अवाम को हज़रत अली की मुहब्बत के बहाने 💐उलमा तक़लीद वसीला हजीरो नज़ीर इल्मे गैब सहाबा की तौहीन, नबी का नूर होना, कब्रे अनवर में जिंदा होना और भी कोई बाते जिनका इनकार करते है बदमज़हब कम से कम उनका तो बयान करे उनकी अहमियत को की इनके इंकार से आख़िरत खराब हो जाती है 💐कोई मेरी बात से इख़्तिलाफ़ कर सकता है कि ये बाते अवाम के लिए मुश्किल है समझना लेकिन कोई हमे फ़र्ज़ वाजिब के बारे में सवाल करता है तो हम ये नही कहते कि 💐 फ़र्ज़ उसे कहते है जो दलीले कतई से साबित हो और वाजिब उसे जो दलीले जननी से } अवाम क्या समझे दलीले कतई क्या जन्नी क्या फिर बाता दिया जाये की दलीले कतई वो जो कुराने पाक या हदीसे मुतवातिर से हो (तो फिर मुतवातिर क्या 💐मतलब सवाल पे सवाल फिर भी अवाम के समझ मे न आये बात💐 हम सिर्फ इतना बताते है कि फ़र्ज़ का छोड़ने से इंसान गुनहगार होता है और जिस वो इबादत में हो उसके बिना वो बातिल इस ही तरह जरुरियते दीन के इनकार से ईमान बातिल यानी खराब और जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत के इनकार से सुन्नियत से खारिज बदमज़हब है लेकिन बदमज़हबी कुफ्र तक नही पोहुची इसलिए गुमराह है

  • @rehankureshi8501
    @rehankureshi8501 4 года назад

    💐 Meri is baat ko mufti ulma ikram tak ho sake to phuchya jaye} 👉जरूरियाते मसलके अहलेसुन्नत के बारे में कोई मुफ्ती अलीम इस पर वीडियो जरूर बनाये कियुकि इसके इनकार से इंसान सुन्नी नही रहता गुमराह हो जाता है मुसलमान तब भी रहता है काफिर नही गुमराह होता है यानी जो जरुरियते दीन का इनकार करता है वो काफिर होता है और जो जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत का इनकार करता है वो गुमराह होता है सुन्नी नही और आज हर कोई किसी को भी गुमराह कह देता है बल्कि काफिर तक चाहे वो बात किसी भी दर्ज़े की हो तो इन दोनों की तारीफ क्या है हुक्म क्या है ये जरूर बताना चाहिये कियुकि ये जरूरी है इनको मानने की वजह से ही हम मुसलमान और सुन्नी है मेने जरुरियते दीन की तो खूब तारीफ पढ़ी लेकिन जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत को पूरी तरह से नही जानता हम नियाज़ फातिहा मिलाद चन्द बातो को मान कर सुन्नी नही बने सब अक़ाइद को मानना जरूरी है और जो मानेगा सुन्नी है वही मसलके आलाहज़रत पर है 💐और ये कहा जाता है जो नबी का गुस्ताख़ है वो सुन्नी नही बल्कि वो तो मुसलमान ही नही उलमा तवज़्ज़ो दे नमाज़ में सब गलती 1 जैसी नही फ़र्ज़ के छूटने पर नमाज़ नमाज़ ही नही, इसी तरह जरुरियते दीन का इन्कारी मुसलमान ही नही , वाजिब के छूटने पर नमाज़ मकरूह तहरीमी, नमाज़ हो चुकी है लेकिन पूरी तरह सही नही दुबारा पढ़ना वाजिब इसी तरह जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत का इन्कारी मुसलमान है लेकिन सुन्नी नही गुमराह है हज़रत सिद्दीक अकबर फारूक आज़म को सबसे अफ़ज़ल सहाबी मानना जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत है किसी और को इनसे अफ़ज़ल मानना गुमराही है कुछ लोग इस हवाले से गुमराह कर रहे है अवाम को हज़रत अली की मुहब्बत के बहाने 💐उलमा तक़लीद वसीला हजीरो नज़ीर इल्मे गैब सहाबा की तौहीन, नबी का नूर होना, कब्रे अनवर में जिंदा होना और भी कोई बाते जिनका इनकार करते है बदमज़हब कम से कम उनका तो बयान करे उनकी अहमियत को की इनके इंकार से आख़िरत खराब हो जाती है 💐कोई मेरी बात से इख़्तिलाफ़ कर सकता है कि ये बाते अवाम के लिए मुश्किल है समझना लेकिन कोई हमे फ़र्ज़ वाजिब के बारे में सवाल करता है तो हम ये नही कहते कि 💐 फ़र्ज़ उसे कहते है जो दलीले कतई से साबित हो और वाजिब उसे जो दलीले जननी से } अवाम क्या समझे दलीले कतई क्या जन्नी क्या फिर बाता दिया जाये की दलीले कतई वो जो कुराने पाक या हदीसे मुतवातिर से हो (तो फिर मुतवातिर क्या 💐मतलब सवाल पे सवाल फिर भी अवाम के समझ मे न आये बात💐 हम सिर्फ इतना बताते है कि फ़र्ज़ का छोड़ने से इंसान गुनहगार होता है और जिस वो इबादत में हो उसके बिना वो बातिल इस ही तरह जरुरियते दीन के इनकार से ईमान बातिल यानी खराब और जरुरियते मसलके अहलेसुन्नत के इनकार से सुन्नियत से खारिज बदमज़हब है लेकिन बदमज़हबी कुफ्र तक नही पोहुची इसलिए गुमराह है