।।जय श्री सच्चिदानंद परमेश्वराय नमो नमः।।::-पद्य पाठ-कविता::-अजी सुरति सुमरे सारशब्द अखण्ड धुन की चित्त में सुमधुर झनकार, जिसकी महिमा अपरम्पार। सत स्वयंभू का आगाज निरंतर अलख अल्लाह लगातार। यही तो करता भवसागर से सभी का बेडा पार, आत्मा जिसकी अनुभूति करती बारम्वार। कलिकाल में जाना हमनें, शब्द गुरु विदेही का ऐसा चमत्कार,जिसकी महिमा अपरम्पार।।01।।साँई अरुण जी महाराज का जब सतसंग मिला, सारे संदेह गए भाग। माता पिता बंधु बांधव सब संसारी व्यवहार, ये सब स्वारथ के यार। दीवाने वन्दे कौन तेरा सच्चा साथी है, उसे पहचान मत बन तू नादान। सारशब्दी सतगुरु ही सबका साथी, जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी आधार। उसका गुरुवचन महान, जिसकी महिमा अपरम्पार।।02।।सारशब्द धन की खेती करले, काया माया की रेत में वन्दे। कट जाएगें तेरे सब काल के फंदे, छोड़ दे संसारी काले धंदे। सारशब्द की बेली लगाले, सतगुरु वचन के बीज बोयले। पंडित होय कर वेद बखानें, परमपिता परमात्माराम का मर्म ना जानें। मुल्ला बन कर बांचे कुरान अल्लाह ताला की नहीं पहचान। पुस्तक पढ़ पढ़कर परमात्माराम नाम अखण्ड सारशब्द नहीं पहचाना,अंत समय लखचौरासी पाना। जिसकी महिमा अपरम्पार।।03।।साधो यह तन ठाट तंबूरे का, खेंचत तान मरोरत खूटी। निकसत राग हजूरे का, यह तन शब्द गुरु धुर धुन चित्त में जानन का।।00।।,,साँई अरुण जी महाराज नासिक महाराष्ट्र और सारशब्दीय संत परिवार को सादर समर्पित,,सालिकराम सोनी।।00।।
।।जय श्री सच्चिदानंद परमेश्वराय नमो नमः।।::-पद्य पाठ कविता::-आये हैं एक ही देश से हम सभी, और उतरे एक ही घाट। हवा लगी संसारी मन माया की तभी, हो गए बारह बाट।।ज्योति निरंजन तेरी माया बड़ी ही भूल भुलान।।00।।हाड मांस की पेटी में तूने, रक्त चाम लपेटी। कोई बनाया बेटा तूने, कोई बनाई बेटी।।रक्त मांस हड्डी के ढ़ेर पर, चिपकाया तूने चाम। देख उसी की सुंदरता को, हो जाती नींद हराम।।01।।जो करता नित्य विरोध क्रोध,का कहता बुरा परिणाम। होता क्रोधित स्वयं तो होती, ये वाणी बिना लगाम।।मृत्यु देखता है वो ओरों की, रोज सबेरे शाम। लेकिन भवन बनाता है जैसे, हर दम करना है मुकाम।।02।।लखचौरासी योनियों में जीव भटकावे, जीव भटकि भटकि दुख पावे। कहे कबीर जी जो सारशब्द हमारा लख पावे परममोक्ष पद पावे।।राम राम सब कोई कहें, ठग ठाकुर और चोर। जिस नाम से कबीर, गुरुनानक रविदास तरे, वह नाम कोई और।।03।।ज्योति निरंजन तेरी माया बड़ी ही भूल भुलान।।00।।दोहा:-विदेही शब्द गुरु परमात्मा को साहेब बंदगी, भेदी गुरु साँई अरुण जी का सतसंग। यह सब बिरले मानुष को मिले, अंत समय जायेगा सारशब्द धुन के संग।।00।।,,साँई अरुण जी महाराज नासिक महाराष्ट्र और सारशब्दीय संत परिवार को सादर समर्पित,,सालिकराम सोनी।।00।।
Saheb bandagi
Saprem saheb bandgi saheb 🎉3🎉
सभी साध्वियों के चरणों में कोटि कोटि नमन, त्रयवार सप्रेम साहेब बंदगी।
साहेब बंदगी 🙏
Samst sadhvi bahno ok,,,Hare Krishna ke tarf se Saheb bandagi ❤🙏🙏🙏⚘⚘⚘ bahut hi Uttam vichar.
Bahut sundar sahev ji
बहोत शुभकामनायें
।।जय श्री सच्चिदानंद परमेश्वराय नमो नमः।।::-पद्य पाठ-कविता::-अजी सुरति सुमरे सारशब्द अखण्ड धुन की चित्त में सुमधुर झनकार, जिसकी महिमा अपरम्पार। सत स्वयंभू का आगाज निरंतर अलख अल्लाह लगातार। यही तो करता भवसागर से सभी का बेडा पार, आत्मा जिसकी अनुभूति करती बारम्वार। कलिकाल में जाना हमनें, शब्द गुरु विदेही का ऐसा चमत्कार,जिसकी महिमा अपरम्पार।।01।।साँई अरुण जी महाराज का जब सतसंग मिला, सारे संदेह गए भाग। माता पिता बंधु बांधव सब संसारी व्यवहार, ये सब स्वारथ के यार। दीवाने वन्दे कौन तेरा सच्चा साथी है, उसे पहचान मत बन तू नादान। सारशब्दी सतगुरु ही सबका साथी, जीवन के साथ भी और जीवन के बाद भी आधार। उसका गुरुवचन महान, जिसकी महिमा अपरम्पार।।02।।सारशब्द धन की खेती करले, काया माया की रेत में वन्दे। कट जाएगें तेरे सब काल के फंदे, छोड़ दे संसारी काले धंदे। सारशब्द की बेली लगाले, सतगुरु वचन के बीज बोयले। पंडित होय कर वेद बखानें, परमपिता परमात्माराम का मर्म ना जानें। मुल्ला बन कर बांचे कुरान अल्लाह ताला की नहीं पहचान। पुस्तक पढ़ पढ़कर परमात्माराम नाम अखण्ड सारशब्द नहीं पहचाना,अंत समय लखचौरासी पाना। जिसकी महिमा अपरम्पार।।03।।साधो यह तन ठाट तंबूरे का, खेंचत तान मरोरत खूटी। निकसत राग हजूरे का, यह तन शब्द गुरु धुर धुन चित्त में जानन का।।00।।,,साँई अरुण जी महाराज नासिक महाराष्ट्र और सारशब्दीय संत परिवार को सादर समर्पित,,सालिकराम सोनी।।00।।
🎉❤❤❤❤🎉 ਬਹੁੱਤ ਸੁੰਦਰ ਪ੍ਰਵੱਚਨ ਰੋਚਕ ਸਿੱਖਿਆ ਦਾਇਕ ਕਹਾਣੀ ਵੱਧੀਆ ਲੱਗਾ । ਬਿੱਲਕੁੱਲ ਮਨੁੱਖ ਸੁਆਰਥੀ ਅਤੇ ਚਲਾਕ ਪ੍ਰਵਿਰਤੀ ਵਾਲੇ ਜਿਆਦਾਤਰ ਲੋਕ ਹਨ । ਇਸ ਲਈ ਸਮਾਂਜ਼ ਮੁਸ਼ਕਲਾਂ ਦਾ ਸਾਹਮਣਾਂ ਕਰ ਰਿਹਾ ਹੈ ।
ਸਾਹਿਬ ਬੰਦਗੀ ਸਾਹਿਬ ਬੰਦਗੀ ਸਾਹਿਬ ਬੰਦਗੀ ।
Saheb bandgi bahut achchha bhajan
।।जय श्री सच्चिदानंद परमेश्वराय नमो नमः।।::-पद्य पाठ कविता::-आये हैं एक ही देश से हम सभी, और उतरे एक ही घाट। हवा लगी संसारी मन माया की तभी, हो गए बारह बाट।।ज्योति निरंजन तेरी माया बड़ी ही भूल भुलान।।00।।हाड मांस की पेटी में तूने, रक्त चाम लपेटी। कोई बनाया बेटा तूने, कोई बनाई बेटी।।रक्त मांस हड्डी के ढ़ेर पर, चिपकाया तूने चाम। देख उसी की सुंदरता को, हो जाती नींद हराम।।01।।जो करता नित्य विरोध क्रोध,का कहता बुरा परिणाम। होता क्रोधित स्वयं तो होती, ये वाणी बिना लगाम।।मृत्यु देखता है वो ओरों की, रोज सबेरे शाम। लेकिन भवन बनाता है जैसे, हर दम करना है मुकाम।।02।।लखचौरासी योनियों में जीव भटकावे, जीव भटकि भटकि दुख पावे। कहे कबीर जी जो सारशब्द हमारा लख पावे परममोक्ष पद पावे।।राम राम सब कोई कहें, ठग ठाकुर और चोर। जिस नाम से कबीर, गुरुनानक रविदास तरे, वह नाम कोई और।।03।।ज्योति निरंजन तेरी माया बड़ी ही भूल भुलान।।00।।दोहा:-विदेही शब्द गुरु परमात्मा को साहेब बंदगी, भेदी गुरु साँई अरुण जी का सतसंग। यह सब बिरले मानुष को मिले, अंत समय जायेगा सारशब्द धुन के संग।।00।।,,साँई अरुण जी महाराज नासिक महाराष्ट्र और सारशब्दीय संत परिवार को सादर समर्पित,,सालिकराम सोनी।।00।।
बहुत ही सुंदर हृदय स्पर्शी भजन है।
साहेब बंदगी।
बहुत ही सुंदर कार्यक्रम
सभी सन्तों की सादर चरणवंदना
मैं चन्दा मामा कर्नलगंज गोण्डा UP से
बहोत ही सुन्दर मे्रे बेटा आध्यात्मिक उनत्ति हो मेरा आशीर्वाद है साहेब बन्दगी
🎉🎉 साहेब वन्दगी 🎉🎉