Aigiri Nandini | Mahishasura Mardini Stotra | महिषासुर मर्दिनी महालक्ष्मी स्तोत्र - With Lyrics

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  • Опубликовано: 11 сен 2024
  • Title - Aigiri Nandini | Mahishasura Mardini
    Singer - Shubhangi Joshi
    Label - Ahuja Music
    Lyrics-
    अयि गिरिनन्दिनि नन्दितमेदिनि विश्वविनोदिनि नन्दिनुते
    गिरिवरविन्ध्यशिरोऽधिनिवासिनि विष्णुविलासिनि जिष्णुनुते ।
    भगवति हे शितिकण्ठकुटुम्बिनि भूरिकुटुम्बिनि भूरिकृते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १ ॥
    सुरवरवर्षिणि दुर्धरधर्षिणि दुर्मुखमर्षिणि हर्षरते
    त्रिभुवनपोषिणि शङ्करतोषिणि किल्बिषमोषिणि घोषरते
    दनुजनिरोषिणि दितिसुतरोषिणि दुर्मदशोषिणि सिन्धुसुते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २ ॥
    अयि जगदम्ब मदम्ब कदम्ब वनप्रियवासिनि हासरते
    शिखरि शिरोमणि तुङ्गहिमलय शृङ्गनिजालय मध्यगते ।
    मधुमधुरे मधुकैटभगञ्जिनि कैटभभञ्जिनि रासरते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ३ ॥
    अयि शतखण्ड विखण्डितरुण्ड वितुण्डितशुण्द गजाधिपते
    रिपुगजगण्ड विदारणचण्ड पराक्रमशुण्ड मृगाधिपते ।
    निजभुजदण्ड निपातितखण्ड विपातितमुण्ड भटाधिपते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ४ ॥
    अयि रणदुर्मद शत्रुवधोदित दुर्धरनिर्जर शक्तिभृते
    चतुरविचार धुरीणमहाशिव दूतकृत प्रमथाधिपते ।
    दुरितदुरीह दुराशयदुर्मति दानवदुत कृतान्तमते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ५ ॥
    अयि शरणागत वैरिवधुवर वीरवराभय दायकरे
    त्रिभुवनमस्तक शुलविरोधि शिरोऽधिकृतामल शुलकरे ।
    दुमिदुमितामर धुन्दुभिनादमहोमुखरीकृत दिङ्मकरे
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ६ ॥
    अयि निजहुङ्कृति मात्रनिराकृत धूम्रविलोचन धूम्रशते
    समरविशोषित शोणितबीज समुद्भवशोणित बीजलते ।
    शिवशिवशुम्भ निशुम्भमहाहव तर्पितभूत पिशाचरते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ७ ॥
    धनुरनुषङ्ग रणक्षणसङ्ग परिस्फुरदङ्ग नटत्कटके
    कनकपिशङ्ग पृषत्कनिषङ्ग रसद्भटशृङ्ग हताबटुके ।
    कृतचतुरङ्ग बलक्षितिरङ्ग घटद्बहुरङ्ग रटद्बटुके
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ८ ॥
    सुरललना ततथेयि तथेयि कृताभिनयोदर नृत्यरते
    कृत कुकुथः कुकुथो गडदादिकताल कुतूहल गानरते ।
    धुधुकुट धुक्कुट धिंधिमित ध्वनि धीर मृदंग निनादरते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ९ ॥
    जय जय जप्य जयेजयशब्द परस्तुति तत्परविश्वनुते
    झणझणझिञ्झिमि झिङ्कृत नूपुरशिञ्जितमोहित भूतपते ।
    नटित नटार्ध नटी नट नायक नाटितनाट्य सुगानरते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १० ॥
    अयि सुमनःसुमनःसुमनः सुमनःसुमनोहरकान्तियुते
    श्रितरजनी रजनीरजनी रजनीरजनी करवक्त्रवृते ।
    सुनयनविभ्रमर भ्रमरभ्रमर भ्रमरभ्रमराधिपते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ ११ ॥
    सहितमहाहव मल्लमतल्लिक मल्लितरल्लक मल्लरते
    विरचितवल्लिक पल्लिकमल्लिक झिल्लिकभिल्लिक वर्गवृते ।
    शितकृतफुल्ल समुल्लसितारुण तल्लजपल्लव सल्ललिते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १२ ॥
    अविरलगण्ड गलन्मदमेदुर मत्तमतङ्गजराजपते
    त्रिभुवनभूषण भूतकलानिधि रूपपयोनिधि राजसुते ।
    अयि सुदतीजन लालसमानस मोहन मन्मथराजसुते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १३ ॥
    कमलदलामल कोमलकान्ति कलाकलितामल भाललते
    सकलविलास कलानिलयक्रम केलिचलत्कल हंसकुले ।
    अलिकुलसङ्कुल कुवलयमण्डल मौलिमिलद्बकुलालिकुले
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १४ ॥
    करमुरलीरव वीजितकूजित लज्जितकोकिल मञ्जुमते
    मिलितपुलिन्द मनोहरगुञ्जित रञ्जितशैल निकुञ्जगते ।
    निजगणभूत महाशबरीगण सद्गुणसम्भृत केलितले
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १५ ॥
    कटितटपीत दुकूलविचित्र मयुखतिरस्कृत चन्द्ररुचे
    प्रणतसुरासुर मौलिमणिस्फुर दंशुलसन्नख चन्द्ररुचे
    जितकनकाचल मौलिमदोर्जित निर्भरकुञ्जर कुम्भकुचे
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १६ ॥
    विजितसहस्रकरैक सहस्रकरैक सहस्रकरैकनुते
    कृतसुरतारक सङ्गरतारक सङ्गरतारक सूनुसुते ।
    सुरथसमाधि समानसमाधि समाधिसमाधि सुजातरते ।
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १७ ॥
    पदकमलं करुणानिलये वरिवस्यति योऽनुदिनं सुशिवे
    अयि कमले कमलानिलये कमलानिलयः स कथं न भवेत् ।
    तव पदमेव परम्पदमित्यनुशीलयतो मम किं न शिवे
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १८ ॥
    कनकलसत्कलसिन्धुजलैरनुषिञ्चति तेगुणरङ्गभुवम्
    भजति स किं न शचीकुचकुम्भतटीपरिरम्भसुखानुभवम् ।
    तव चरणं शरणं करवाणि नतामरवाणि निवासि शिवम्
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ १९ ॥
    तव विमलेन्दुकुलं वदनेन्दुमलं सकलं ननु कूलयते
    किमु पुरुहूतपुरीन्दु मुखी सुमुखीभिरसौ विमुखीक्रियते ।
    मम तु मतं शिवनामधने भवती कृपया किमुत क्रियते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २० ॥
    अयि मयि दीन दयालुतया कृपयैव त्वया भवितव्यमुमे
    अयि जगतो जननी कृपयासि यथासि तथानुमितासिरते ।
    यदुचितमत्र भवत्युररीकुरुतादुरुतापमपाकुरुते
    जय जय हे महिषासुरमर्दिनि रम्यकपर्दिनि शैलसुते ॥ २१ ॥

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