Katha 63 | Naam Dhaan Liya Hai Aur Naam Nahi Japte To Jarur Sune | SSDN | New Satsang |

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  • Опубликовано: 21 окт 2024
  • Katha 63
    ऐसे ही
    एक बहुत बड़े ही सेठ जी थे
    उनके पास बहुत पैसा था , बहुत सारे बिजनेस चल रहे थे
    जैसे जैसे उनके बिजनेस बढ़ते जा रहे थे
    उनकी भक्ति प्रभु में बदती जा रही थी
    लेकिन समस्या ये थी
    उस व्यापारी के पास में समय नहीं था
    के भगवान की भक्ति करे
    तो बहुत सारे मंदिर उसने बनवाए
    लेकिन वो खुद कभी पूजा करने गए नहीं
    उन्होंने बहुत सारे पुजारी रख दिए
    और पुजारियों को कह दिया की आपको सुबह शाम पूजा करनी है
    और वो घर के बैठ के खुश हो जाते थे की चलो मंदिर तो बना लिए है
    और पुजारी बैठ के पूजा भी कर रहे है
    ऐसे ही एक बार उनके बिजनेस में बहुत बड़ा घाटा हुआ
    घाटा भी ऐसे कोई छोटा मोटा नहीं
    पूरे १०० करोड़ की जरूरत आन पड़ी उन्हें
    और जब उन्हे लगा की कही से भी पैसा अरेंज करना मुस्किल है
    तो वो उदास होके बैठ गए
    और भिखारी जो है वो ये सोच रहा है की सेठजी यहां क्यों आए है
    ये क्या मांगने आए है यहां, इतना सब कुछ तो है इनके पास
    जैसे ही मंदिर के पट खुले , भिखारी ने कहा की प्रभु.. सिर्फ सौ रुपयों की जरूरत है
    एक दो दिन खाने का कुछ प्रबंध हो जायेगा ... और वो सिर्फ बोले जा रहा था , भगवान सौ रुपए बस सौ रुपए मिल जाए ... ऐसी कृपा करना की आज दिन भर में सिर्फ सौ रुपए मिल जाए...
    सेठ जी का दिमाग खराब हो गया , सोच रहे ये हठ ही नहीं रहा इसकी प्रार्थना चली जा रही है
    बिना देरी के अपनी जेब से सौ रुपया निकाला और उस भिखारी के हाथ में रख दिया और कहा , ये लो सौ रुपए और जाओ यहां से
    अब मुझे बात करने दो भगवान से
    भिखारी बहुत खुश हो गया और भगवान को ध्यनावाद कहते हुए चला गया की , वाह भगवान आपने तो सुबह सुबह ही काम कर दिया
    अब बारी थी उस व्यापारी की, और कहने लगे के प्रभु उस भिखारी को तो मेने भागा दिया सौ रुपए देके
    अब मेरी बात सुनो
    मुझे सौ रुपए नही
    सौ करोड़ रुपए चाइए
    बस कहीं से भी उसका इंतजाम करवा दो प्रभु
    बस मुझ पर कृपा बरसा दो और यही बोले जा रहे थे बार-बार
    तो कमल यह हुआ की मूर्ति में से भगवान प्रकट हुए और कहने लगे
    कि तूने एक भिखारी से तो मेरा पीछा छुड़वा दिया
    उसे सौ रुपए देकर के
    अब मुझे तुझसे भी बड़ा भिखारी ढूंढना पड़ेगा
    जो आए और तुझे 100 करोड रुपए देकर के तुझसे मेरा पीछा छुड़वा दे
    उस व्यापारी की आंखों में आंसू आ गए और कहने लगे कि प्रभु ऐसा क्यों कह रहे हो
    भगवान ने कहा बस यही तो सच है
    तूने इतने मंदिर बनवाए
    इतना सब कुछ करवाया लेकिन कभी मिलने नहीं आए
    और आज भी आए हो तो तब आए हो जब तुम्हें कुछ मांगना है
    मैं प्रेम का भूखा हूं बस मिलने ही चले आते तो इतना बड़ा संकट आने ही नहीं देता
    और अचानक उन्हें याद आया की मेने इतने सारे मंदिर बनवाए है
    भगवान को खुश किया है
    तो चलो अब चल के उनसे ही मांग लेते है
    तो अगले ही दिन सुबह सुबह वो मंदिर पहुंच गया
    उस व्यापारी ने इस बात का खास ध्यान रखा की एकदम सुबह सुबह जाना है
    सबसे पहले भगवान से में ही बात करगा
    कोई और आके कुछ मांग ले भगवान का मन खराब हो जाए
    तो इसलिए सबसे पहले जाके मंदिर पहुंच गए
    लेकिन जब पहुंचे अपने बनाए हुए एक मंदिर में तो देखते है
    की उनसे पहले आके लाइन में एक भिखारी आके खड़ा हुआ है
    उस व्यापारी का दिमाग खराब हो गया
    पता नही ये भगवान से क्या मांगेगा
    और पता नही ये भगवान का मन ना खराब कर दे
    तो वो सेठ जी उस भिखारी के पीछे जाके खड़े हो गए
    उस भिखारी ने भी सेठ जी को देखा की पीछे सेठ जी खड़े है
    अब सेठ जो है ये सोच रहे थे ये भिखारी यहां क्यों आया है इसको क्या चाहिए
    गुरुमुखो ये बहुत ही छोटी सी कथा है जिसका सार ये समझता है
    जहां बहुत ज्यादा मांगा जाता है वहां प्यार समाप्त हो जाता है ...प्रेम समाप्त हो जाता है
    इसलिए मांगना बंद कीजिए
    अगर मांगना ही चाहते हो तो बस सब्र मांगे की है श्री गुरु महाराज जी
    मुझे धैर्य दीजिए सब कुछ मैं अपने दम पर करूंगा
    और मुझे सब्र दीजिए आपका नाम जपने की शक्ति दीजिए
    पांच नियम निभाने की शक्ति दीजिए और अपने चरणों से लगाए रखिए क्योंकि एक यही नाम है जो अंग संग सदा साथ रहता है
    इसलिए जब भी हम श्री गुरु महाराज जी से कुछ मांगे
    तो बस नाम जपने की शक्ति मांगे

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