Bhagavad Gita: Chapter 4, Verse 22

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  • Опубликовано: 7 сен 2024
  • यदृच्छालाभसंतुष्टो द्वन्द्वातीतो विमत्सरः ।
    समः सिद्धावसिद्धौ च कृत्वापि न निबध्यते ॥22॥
    वे जो अपने आप स्वतः प्राप्त हो जाए उसमें संतुष्ट रहते हैं, ईर्ष्या और द्वैत भाव से मुक्त रहते हैं, वे सफलता और असफलता दोनों में संतुलित रहते हैं, वे सभी प्रकार के कार्य करते हुए कर्म के बंधन में नहीं पड़ते।

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