बांग्लादेश: क्या जूट से होगी पर्यावरण क्रांति की शुरुआत? [Jute Farming] | DW Documentary हिन्दी

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  • Опубликовано: 8 сен 2024
  • बांग्लादेश दुनिया के सबसे बड़े जूट उत्पादकों में से एक है. राजधानी ढाका में हुआ एक आविष्कार इस फाइबर को हमेशा के लिए अत्यंत ज़रूरी बना सकता है. ये आविष्कार है जूट सेल्यूलोज़ से तैयार किया हुआ बायोडिग्रेडेबल फॉइल. इस आविष्कार की मदद से दुनिया भर में इस्तेमाल होने वाले डिस्पोजेबल प्लास्टिक बैगों को बायोडिग्रेडेबल जूट के उत्पाद से बदला जा सकता है.
    बांग्लादेश में जूट को "सुनहरा रेशा" कहा जाता है क्योंकि इसमें सोने जैसी चमक होती है और ये स्थानीय किसानों के लिए समृद्धि लेकर आया है. जवान पौधे की पत्तियों का उपयोग सलाद और चाय बनाने के लिए भी किया जा सकता है. लेकिन इसकी खेती करना कठिन काम है और इस खेती में हमेशा फायदा नहीं होता.
    जूट की डंडियों की कटाई आमतौर पर हाथ से होती है और उन्हें छुरी से काटना पड़ता है. उत्तरी बांग्लादेश के बोगुरा जिले के हिजली गांव में जूट किसान अयूब अली अकंद और अफ़ज़ उद्दीन अकंद खेतों में काम करते समय गहरे पानी में उतरते हैं. जूट के डंठलों को रेशा निकालने की प्रक्रिया के लिए ले जाया जाता है. आखिर में इलाके की बड़ी फ़ैक्ट्रियों में उनसे जूट का कपड़ा बनाया जाता है.
    वैज्ञानिक मुबारक अहमद खान ने जूट में भारी मात्रा में मौजूद सेल्यूलोज़ का फायदा उठाया और एक बायोडिग्रेडेबल मैटीरियल बनाया. इसका इस्तेमाल "शोनाली बैग" बनाने में होता है, जो प्लास्टिक बैग का बढ़िया विकल्प है.
    जूट सेल्यूलोज़ से इस नए मैटीरियल की खोज हमारे लिए उम्मीद की किरण है. खास कर के दुनिया भर में महासागरों और पर्यावरण के प्रदूषण को देखते हुए, जिससे बांग्लादेश भी अछूता नहीं है. लेकिन क्या इस प्राकृतिक उत्पाद में अरबों डॉलर के प्लास्टिक उद्योग को मात देने की क्षमता है? और क्या व्यावसायिक सफलता, अयूब और अफ़ज़ और उनके बच्चों को "फाइबर किसान" के रूप में ये मुश्किल काम जारी रखने की प्रेरणा देती रहेगी?
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