श्री जिनवर का मंगल शासन सहजपने स्वीकार । ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’ । स्वर - अस्मिता जैन

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  • Опубликовано: 10 сен 2024
  • श्री जिनवर का मंगल शासन, सहजपने स्वीकार हमें |
    श्री गुरुवर का शुभ अनुशासन, सहजपने स्वीकार हमें
    वस्तु स्वरुप समझना है, भेदज्ञान उर धरना है |
    देहादिक से भिन्न शुद्ध, आतम का अनुभव करना है ||
    रत्नत्रय ही सुख का साधन, सहजपने स्वीकार हमें ।। 1
    पर द्रव्यों का दोष नहीं है, दुःख का कारण मोह सही है |
    व्यर्थ भटकना है बाहर में, अपना सुख अपने में ही है ||
    ज्ञानानन्दमयी निज आतम, सहजपने स्वीकार हमें ।। 2 ।।
    सर्व विकल्प अकिंचित्कर हैं, मूढ़ व्यर्थ बोझा ढोता है |
    आर्तध्यान कितना ही कर लो, जो होना है वह होता है ||
    वस्तु का स्वाधीन परिणमन, सहजपने स्वीकार हमें ।। 3
    हो सम्यक् पुरुषार्थ जीव का, कारण सर्व सहज मिलते |
    भायें सम्यक् तत्त्व भावना, सुगुण प्रसून सभी खिलते ||
    उदासीनता ही आनंदमय, सहजपने स्वीकार हमें ।। 4
    वीतरागता श्री जिनवर की, अब आदर्श हमारा है |
    अहो-अहो ! समभावी गुरुवर, का ही हमें सहारा है |
    मोही जग तो अशरण ही हैं, सहजपने स्वीकार हमें ।।5
    रचयिता: ब्र. श्री रवीन्द्र जी ‘आत्मन्’
    स्वर: अस्मिता जैन
    जीवन पथ दर्शन || ब्र. श्री रवीन्द्रजी ‘आत्मन्’
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