संत बनना है तो एक बार ये वीडियो जरूर देखलें | कैसी होती है एक संत की दिनचर्या ।

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  • Опубликовано: 15 окт 2024
  • कितना कठिन जीवन है सच्चे संतों का, इन्हें दान देने से मिलता है कई गुना ज्यादा लाभ।
    मित्रों दान किसे देना चाहिए ये जान लेना आवश्यक है क्यों कि हम जो दान देते हैं वो जरूरतमंद तक पहुंचना
    चाहिए
    संत महात्मा जी का संपर्क सूत्र
    कुन्दन कृष्ण जी महाराज (कुसुम सरोवर के पास गोवर्धन )-7492069965
    our team
    contact to Sant sewa, gau Sewa
    Ramakant Gaur- 9927572104
    Manoj Kumar- 8445496444
    सबसे बड़े दान है ये -
    1 भूखे को भोजन
    2 प्यासे को जल
    3 रोगी को उपचार और औषधि
    4 निराश्रय को आश्रय
    5 शीत मेँ निर्धन को ऊनी वस्त्र, कम्बल इत्यादि
    6 जीव को जीवन दान
    दान देने वाले की सभी प्रशंसा करते हैं। राजा शिवि, मुनि दधीच, कर्ण आज भी दान के कारण अमर हैं। आपके पास जो भी है यथा-धन, वस्तु, अन्न, बल, बुद्धि, विद्या उसे किसी अन्य जीव को उसकी आवश्यकता पर, चाहे वह मांगे या न मांगे, उसे देना परम धर्म, मानवता या कर्तव्य है। प्रकृति अपना सब कुछ जीवों को बिना मांगे ही दे रही है। ईश्वर भी, भले हम मांगें या न मांगें हमारी योग्यता और आवश्यकता के अनुसार हमें देता है। अत: वह हमसे भी अपेक्षा करता है कि हम भी, हमारे पास जो है उसे दूसरों को दें। शास्त्रों में कई ऐसे प्रसंग हैं कि जो दीनों की सहायता नहीं करता वह कितना भी यज्ञ, जप, तप, योग आदि करे उसे स्वर्ग या सुख नहीं प्राप्त होता। जिस व्यक्ति में या समाज में दान की भावना नहीं होती उसे सभ्य नहीं कहा जाता। उसकी निंदा होती है और उसका पतन होता है, क्योंकि समाज में सुखी-दुखी, और संपन्न-विपन्न होंगे ही और सहयोग की आवश्यकता होगी। अत: समाज के अस्तित्व और प्रगति के लिए सहयोग आवश्यक है। दान देने के समय आपके मन में, अहं का, पुण्य कमाने का या अहसान करने का नहीं होना चाहिए, उस पात्र का आपको कृतज्ञ होना चाहिए कि उसने आपके अंदर सद्भाव जगाकर आपको कृतार्थ किया। ईश्वर के प्रति कृतज्ञता होनी चाहिए कि उसने आपको कुछ देने के योग्य बनाया।
    गीता के अनुसार दान तीन प्रकार का होता है। जो दान कुपात्र व्यसनी को या अनादरपूर्वक या दिखावे के लिए दिया जाए वह अधम, जो बदले में कोई लाभ लेने या यश की आशा से कष्ट से भी दिया जाए वह दान मध्यम है। परंतु जो दान कर्तव्य समझकर, बिना किसी अहं भाव के, नि:स्वार्थ भाव से किया जाता है वही उत्तम श्रेणी में आता है। कर्मो के अनुसार पुनर्जन्म होता है और उसी के अनुसार धनी और निर्धन समाज में दिखाई पड़ते हैं। दान ईश्वर की प्रसन्नता में प्रमुख है। अत: ईश्वर की प्रसन्नता के लिए, अपने को उत्कृष्ट बनाने के लिए और समाज को सुचारू रूप से चलाने के लिए हमें जरूरतमंदों की सहायता करनी ही होगी।
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