Vedsar Shiv Stuti | वेदसार शिव स्तुति | Pashunam Patim Papa Nasham Paresham | Adi Shankaracharya

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  • Опубликовано: 8 фев 2025
  • Vedsar Shiv Stuti praises and glorifies Lord Shiva's various attributes, forms, and qualities. The term "Vedsar" suggests that it is derived from the essence or core teachings of the Vedas, ancient scriptures of India.
    The Shiv Stav typically consists of verses that describe Shiva's divine qualities, his role as the destroyer of evil and ignorance, his compassionate nature, and his significance in the cosmic order. These hymns are often recited or sung by devotees as a form of prayer or meditation to invoke the blessings of Lord Shiva.
    भगवान शिव की आराधना में वेदसारशिव स्तोत्रम् का पाठ भक्तों के लिए काफी लाभकारी साबित होता है। कहते हैं जो भी व्यक्ति पूरे भक्ति भाव से भगवान शिव को समर्पित इस वेदसारशिव स्तोत्रम् का पाठ करता है उसकी रक्षा स्वयं भगवान करते हैं। मान्यता है कि शत्रुओं से रक्षा में वेदसारशिवस्तोत्रम् का पाठ काफी फलदायी माना जाता है। वेदसारशिवस्तोत्रम् के पाठ से भक्तों में एक अद्भुत शक्ति का संचार होता है, जिससे वह हर कार्य को बिना किसी मुश्किल के आत्मविश्वास के साथ कर सकते हैं। यह स्तोत्र बहुत ही शक्तिशाली वेदसारशिवस्तोत्रम् है।
    Lyrics
    पशूनां पतिं पापनाशं परेशं
    गजेन्द्रस्य कृत्तिं वसानं वरेण्यम्
    जटाजूटमध्ये स्फुरद्गाङ्गवारिं
    महादेवमेकं स्मरामि स्मरारिम् ॥१॥
    अर्थ - जो सम्पूर्ण प्राणियों के रक्षक हैं, पापका ध्वंस करने वाले हैं, परमेश्वर हैं, गजराजका चर्म पहने हुए हैं तथा श्रेष्ठ हैं और जिनके जटाजूटमें श्रीगंगाजी खेल रही हैं, उन एकमात्र कामारि श्रीमहादेवजी का मैं स्मरण करता हुॅं ||1||
    महेशं सुरेशं सुरारातिनाशं
    विभुं विश्वनाथं विभूत्यङ्गभूषम्
    विरूपाक्षमिन्द्वर्कवह्नित्रिनेत्रं
    सदानन्दमीडे प्रभुं पञ्चवक्त्रम् ॥२॥
    अर्थ - चन्द्र,सूर्य और अग्नि- तीनों जिनके नेत्र हैं, उन विरूपनयन महेश्वर, देवेश्वर, देवदु:खदलन, विभु, विश्वनाथ, विभूतिभूषण, नित्यानन्दस्वरूप, पंचमुख भगवान् महादेवकी मैं स्तुति करता हूॅं ||2||
    गिरीशं गणेशं गले नीलवर्णं
    गवेन्द्राधिरूढं गुणातीतरूपम्
    भवं भास्वरं भस्मना भूषिताङ्गं
    भवानीकलत्रं भजे पञ्चवक्त्रम् ॥३॥
    अर्थ - जो कैलासनाथ हैं, गणनाथ हैं, नीलकण्ठ हैं, बैलपर चढ़े हुए हैं, अगणित रूपवाले हैं, संसारक आदिकारण हैं, प्रकाशस्वरूप हैं, शरीर में भस्म लगाये हुए हैं और श्री पार्वतीजी जिनकी अद्र्धागिंनी हैं, अन पंचमुख महादेवजी को मैं भजता हुॅं ||3||
    शिवाकान्त शंभो शशाङ्कार्धमौले
    महेशान शूलिञ्जटाजूटधारिन्
    त्वमेको जगद्व्यापको विश्वरूपः
    प्रसीद प्रसीद प्रभो पूर्णरूप ॥४॥
    अर्थ - हे पार्वतीवल्लभ महादेव ! हे चन्द्रशेखर ! हे महेश्वर ! हे त्रिशूलिन ! हे जटाजूटधरिन्! हे विश्वरूप ! एकमात्र आप ही जगत् में व्यापक हैं। हे पूर्णरूप प्रभो ! प्रसन्न् होइये, प्रसन्न् होइये ||4||
    परात्मानमेकं जगद्बीजमाद्यं
    निरीहं निराकारमोंकारवेद्यम्
    यतो जायते पाल्यते येन विश्वं
    तमीशं भजे लीयते यत्र विश्वम् ॥५॥
    अर्थ - जो परमात्मा हैं, एक हैं, जगत् के आदिकारण हैं, इच्छारहित हैं, निराकार हैं और प्राणवद्वारा जाननेयोग्य हैं तथा जिनसे सम्पूर्ण विश्व की उत्पत्ति और पालन होता है और फिर जिनमें उसका लय हो जाता है उन प्रभुको मैं भजता हूॅ ||5||
    न भूमिर्नं चापो न वह्निर्न वायु-
    र्न चाकाशमास्ते न तन्द्रा न निद्रा
    न गृष्मो न शीतं न देशो न वेषो
    न यस्यास्ति मूर्तिस्त्रिमूर्तिं तमीडे ॥६॥
    अर्थ - जो ज पृथ्वी हैं, न जल हैं, न अग्नि हैं, न वायु हैं और न आकाश है; न तन्द्रा हैं, निन्द्रा हैं, न ग्रीष्म हैं और न शीत हैं तथा जिनका न कोई देश है, न वेष है, उन मूर्तिहीन त्रिमूर्ति की मैं स्तुति करता हूॅं ||6||
    अजं शाश्वतं कारणं कारणानां
    शिवं केवलं भासकं भासकानाम्
    तुरीयं तमःपारमाद्यन्तहीनं
    प्रपद्ये परं पावनं द्वैतहीनम् ॥७॥
    अर्थ - जो अजन्मा हैं नित्य हैं, कारण के भी कारण हैं, कल्याणस्वरूप हैं, एक हैं प्रकाशकों के भी प्रकाशक हैं, अवस्थात्रय से विलक्षण हैं, अज्ञान से परे हैं, अनादि और अनन्त हैं, उन परमपावन अद्वैतस्वरूप को मैं प्रणाम करता हूॅं ||7||
    नमस्ते नमस्ते विभो विश्वमूर्ते
    नमस्ते नमस्ते चिदानन्दमूर्ते
    नमस्ते नमस्ते तपोयोगगम्य
    नमस्ते नमस्ते श्रुतिज्ञानगम्य ॥८॥
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