The Mystery of Tripura Sundari Temple of Himalaya - हिमालय के त्रिपुर सुंदरी मंदिर का रहस्य

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  • Опубликовано: 10 ноя 2024
  • Mystery of Tripura Sundari Temple of Himalaya - हिमालय के त्रिपुर सुंदरी मंदिर का रहस्य (श्री यन्त्र पीठ) - राज राजेश्वरी मन्दिर देवलगढ़ (उत्तराखण्ड)
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    देवलगढ़ पर्यटन स्थल उत्तराखंड के पौड़ी गढ़वाल जिले में स्थित बहुत ही आध्यात्मिक शहर है। देवलगढ़ प्राचीन तीर्थ स्थलों के रूप में जाना जाता हैं जिसकी स्थापना सन 1512 में कांगडा के राजा देवल ने द्वारा की गयी थी। देवलगढ़ शहर प्राचीन वास्तुकला से निर्मित मंदिरों के घर के रूप में जाना जाता है। इन मंदिरों में सबसे प्रमुख मंदिर राज राजेश्वरी देवी मंदिर, गौरा देवी मंदिर, लक्ष्मी नारायण मंदिर यहाँ के सबसे लोकप्रिय मंदिर है ये सभी मंदिर पत्थरों से निर्मित है और इन पर पुरातात्विक शिलालेख मौजूद है। देवलगढ़ प्राचीन मंदिरों के समूह के लिए प्रसिद्ध है, जिन्हें मध्ययुगीन काल में बनाया गया माना जाता है। मंदिरों की वास्तुकला अति सुंदर गढ़वाली वास्तुकला से प्रभावित करती है। देवलगढ़ प्रसिद्ध लोकप्रिय पर्यटन स्थल खिरसू से कुछ ही दूरी पर स्थित है। देवलगढ़ श्रीनगर के शहर चामधार से 19 किलोमीटर की दूरी पर स्थित उत्तराखंड के शानदार अजूबे के नाम से मशहूर है।
    4,000 मीटर की ऊंचाई पर स्थित राज राजेश्वरी देवी मंदिर त्रिपुर सुंदरी को समर्पित देवलगढ़ का सबसे ऐतिहासिक और प्राचीन मंदिर है। इस मंदिर का निर्माण राजा अजयपाल द्वारा 14 वीं शताब्दी में करवाया गया था।
    इस आकर्षक मंदिर में त्रिपुर सुन्दरी की सोने से बनी प्रतिमा स्थापित है जो कि इसके आकर्षण का प्रमुख कारण है।
    मां राजराजेश्वरी को महात्रिपुरा सुंदरी, कामेशी, ललिता, त्रिपुर भैरवी आदि नामों से भी पुकारा जाता है। मां को वेदों और तंत्र शास्त्रों में योग, ऐश्वर्य व मोक्ष की देवी माना जाता है।
    प्राचीन तीर्थ स्थल देवलगढ़ मंदिरों के लिए प्रसिद्धि प्राप्त करने के अलावा श्रद्धालुओं को यहाँ होने वाले मेले के लिए भी बहुत आकर्षित करता है।
    पहले उत्तराखंड 52 छोटे-छोटे भागों में बंटा हुआ था जिनको गढ़ कहते थे इसी कारण इस पूरे क्षेत्र को गढ़वाल कहा जाता है। सन 1512 में देवलगढ़ को चांदपुर गढ़ के राजा अजय पाल ने अपनी राजधानी बनाया। इसके बाद उन्होंने अपनी राजधानी को श्री नगर में स्थापित कर दिया था। राज राजेश्वरी गढ़वाल के राजवंश की कुलदेवी थी,
    उन्होंने मां के मंदिर में उन्नत श्रीयंत्र स्थापित किया था। मां राजराजेश्वरी के तीन मंजिला मंदिर में राजा ने सबसे ऊपरी कक्ष में श्रीयंत्र, महिष मर्दिनी यंत्र, कामेश्वरी यंत्र, मूर्तियां व बरामदे में बटुक भैरव की स्थापना की है।
    इस मन्दिर में यन्त्र पूजा का विधान है। यहां कामख्या यन्त्र, महाकाली यन्त्र, बगलामुखी यन्त्र, महालक्ष्मी यन्त्र व श्रीयन्त्र की विधिवत पूजा होती है। संपूर्ण उत्तराखण्ड में उन्नत श्रीयन्त्र केवल इसी मन्दिर में स्थापित है। मन्दिर के पुजारी द्वारा आज भी यहां दैनिक प्रात:काल यज्ञ किया जाता है। नवरात्रों में रात्रि के समय राजराजेश्वरी यज्ञ का आयोजन किया जाता है। इस सिद्धपीठ में अखण्ड ज्योति की परम्परा पीढ़ियों से चली आ रही है। अत: इसे जागृत शक्तिपीठ भी कहा जाता है।
    केदार खंड में राजगढ़ी देवलगढ़ का उल्लेख है कि चित्रवती नदी व ऋषिगंगा के मध्य ऊंची चोटी पर देवताओं का गढ़ स्थित है। जिसे पुरातन काल तक द्यूलगढ़ के नाम से जाना जाता था। जो बाद में देवलगढ़ के नाम से प्रचलित हुआ।औणी के उनियाल मां राजराजेश्वरी के उपासक हैं। मां के उपासक रहे डंगवालों ने 1948 के करीब मां की आराधना का पूजा जिम्मा उनियालों को सौंप दिया था।
    मां राजराजेश्वरी का धाम भक्तों व श्रद्धालुओं के लिए वर्षभर खुला रहता है। यहां चैत्र व शारदीय नवरात्रों के अवसर पर विशेष पूजा अर्चना विधि विधान से की जाती है। वहीं हर वर्ष बैसाखी मेले का आयोजन विशेष आकर्षण का केंद्र रहता है।
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