ओ साथी रे तेरे बिना भी क्या जीना | कल्पना दुबे | रतिराम ज्ञानी | जवाबी कीर्तन |

Поделиться
HTML-код
  • Опубликовано: 3 янв 2025

Комментарии • 1

  • @bhanvarsingh3086
    @bhanvarsingh3086 Месяц назад +1

    दोनों कलाकारों की ओर से बेहतरीन प्रसंग |
    एक प्रसंग और मिला | राम जी जब वन से अवध लौटे तो सभी नगरवासियों की मिलने की आतुरता देखकर -
    प्रेमातुर सब लोग निहारी |कौतुक कीन्ह कृपाल खरारी ||
    अमित रूप प्रगटे तेहि काला |जथा जोग मिले सबहि कृपाला ||
    छन महिं सबहि मिले भगवाना |उमा मरम यह काहुं न जाना ||