3 दिवसीय भक्तमाल कथा Day-3 प्रवक्ता-श्री अनंतानन्द दास जी महाराज{मलूक पीठ पुजारी जी} श्रीधाम वृंदावन

Поделиться
HTML-код
  • Опубликовано: 1 янв 2025
  • दिवसीय भक्तमाल कथा Day - 3 प्रवक्ता-श्री अनंतानन्द दास जी महाराज{मलूक पीठ पुजारी जी} श्रीधाम वृंदावन 8630061696
    #भक्तमालभक्तिपूर्ण
    02 दिसम्बर से 04 दिसम्बर 2024 तक
    कथा स्थल : माल पसाराम कीलीनी, मीना (म.प्र.)
    मुख्य आयोजक : श्री रामहेत उपाध्याय (सुसानी वाले)
    व्यवस्थापक : श्री राम जी निराश्रित गौ सेवक भक्त मण्डल गल्ला मण्डी मुरैना
    भक्तमाल कथा, भक्तों के जीवन चरित्र को लिपिबद्ध करके कथा के रूप में प्रस्तुत करना है. भक्तमाल, गुरु श्री नाभादास जी द्वारा लिखी गई है. इसमें 200 से ज़्यादा भक्तों की संक्षिप्त जीवनी दी गई है. भक्तमाल शब्द का अर्थ है, भक्तों की माला. भक्तमाल की रचना 1585 में हुई थी. इसकी टीका प्रियादास ने 1712 में लिखी थी. भक्तमाल का हिन्दी साहित्य में बहुत महत्व है.
    भक्तमाल से जुड़ी कुछ और बातें:
    भक्तमाल में भक्तों का गुणगान है.
    भक्तमाल में भक्तों के जीवन चरित्र को छप्पय छंद में बताया गया है.
    भक्तमाल की रचना रामानंद की परंपरा से जुड़े संत श्री नाभादास जी ने की थी.
    कुद विद्वानों के मुताबिक, भक्तमाल में माला के मनकों की तरह 108 छंद थे.
    भक्तमाल सुमेरु गोस्वामी श्री तुलसीदास जी:
    श्री नाभादास जी ने भक्तों की माला अर्थात भक्तमाल की रचना की। अब माला का सुमेरु का चयन करना कठिन हो गया। किस संत को सुमेरु बनाएं इस बात का निर्णय कठिन हो रहा था।
    पूज्य श्री अग्रदेवचार्य जी के चरणों में प्रार्थना करने पर उन्होंने प्रेरणा दी कि वृंदावन में भंडारा करो और संतो का उत्सव करो, उसी भंडारे उत्सव में कोई न कोई संत सुमेरु के रूप में प्राप्त हो जायेगा।
    सभी तीर्थ धामो में संतो को कृपा पूर्वक भंडारे में पधारने का निमंत्रण भेजा गया। काशी में अस्सी घाट पर श्री तुलसीदास जी को भी निमंत्रण पहुँचा था परंतु उस समय वे काशी में नहीं थे। उस समय वे भारत के तत्कालीन बादशाह अकबर के आमंत्रण पर दिल्ली पधारे थे।
    दिल्ली से लौटते समय गोस्वामी तुलसीदास जी वृंदावन दर्शन के लिए पहुंचे। वे श्री वृंदावन में कालीदह के समीप श्रीराम गुलेला नामक स्थान पर ठहर गए। श्री नाभाजी का भंडारे में पधारना अति आवश्यक जानकार गोपेश्वर महादेव ने प्रत्यक्ष दर्शन देकर गोस्वामी जी से भंडारे में जाकर संतो के दर्शन करने का अनुरोध किया।
    गोस्वामी जी भगवान् शंकर की आज्ञा पाकर भंडारे में पधारे। गोस्वामी जी जब वहाँ पहुंचे उस समय संतो की पंगत बैठ चुकी थी। स्थान पूरा भरा हुआ था, स्थान पर बैठने की कोई जगह बची नहीं थी।
    तुलसीदास उस स्थान पर बैठ गए, जहाँ पूज्यपाद संतों के पादत्राण / जूतियां रखी हुई थीं। परोसने वालों ने उन्हें पत्तल दी और उसमे सब्जियां व पूरियां परोस दीं। कुछ देर बाद सेवक खीर लेकर आया ।
    सेवक ने पूछा: महाराज ! आपका पात्र कहाँ है? खीर किस पात्र में परोसी जाये?
    तुलसीदास जी ने एक संत की जूती हाथो में लेकर कहा: इसमें परोस दो खीर।
    यह सुनते ही खीर परोसने वाला क्रोधित को उठा बोला: अरे राम राम! कैसा साधू है जो कमंडल नहीं लाया खीर पाने के लिए, अपना पात्र लाओ। पागल हो गये हो जो इस जूती में खीर लोगे?
    शोर सुनाई देने पर नाभादास जी वह पर दौड़ कर आये। उन्होने सोचा कही किसी संत का भूल कर भी अपमान न हो जाए। नाभादास जी यह बात नहीं जानते थे की तुलसीदास जी वृंदावन पधारे हुए है। उस समय संत समाज में गोस्वामी जी का नाम बहुत प्रसिद्ध था, यदि वे अपना परिचय पहले देते तो उन्हें सिंहासन पर बिठाया जाता परंतु धन्य है गोस्वामी जी का दैन्य।

Комментарии • 1