Kirantan Granth - Shri Mukhvani Charcha by Shri Rajan Swami Ji | SPJIN 16th Annual Function 2022
HTML-код
- Опубликовано: 5 сен 2024
- Kirantan Granth - Shri Mukhvani Charcha by Shri Rajan Swami Ji | SPJIN 16th Annual Function 2022
Please subscribe to our channel at: goo.gl/maqz3p
PS: Please Don't Forget to SUBSCRIBE to our "SPJIN" channel for an abundant wealth of spiritual discourses, devotional music and thought-provoking discussions. Widen your knowledge on Supreme Truth God, True Master (Satguru), True purpose of life, Jeeva & Soul, Meditation, Moral ethics and more. New videos are added regularly. So Keep watching, learning and sharing. Pranam Ji.
नोट: कृपया हमारे "SPJIN" चैनल को सब्सक्राइब करना न भूलें (आप यहाँ क्लिक करके सब्सक्राइब करें - goo.gl/maqz3p) । आध्यात्मिक चर्चा, भजन - कीर्तन के इस अपार सागर रुपी चैनल के द्वारा आत्मा - परमात्मा, सतगुरु, मानव जीवन के परम लक्ष्य, ध्यान - समाधि, नैतिक मूल्यों आदि विषयों में अपना ज्ञान और बढ़ाएं । यहाँ पर नए वीडियो नियमित रूप से अपलोड होते रहते हैं । तो देखते रहिये , सीखते रहिये व दूसरों के साथ शेयर भी करते रहिये । प्रणाम जी ।
Social Links (Please FOLLOW & LIKE) -
Facebook: / shri.rajan.swami
Facebook: / shri.prannath.jyanpeeth
Twitter: / raajanswami
Website: www.spjin.org
Email: shriprannathgyanpeeth@gmail.com
WhatsApp: +91-7533876060
Thanks for watching the video. Please SUBSCRIBE and press the Bell icon.
Find more about us at:
www.spjin.org
श्री प्राणनाथ ज्ञानपीठ के मुख्य उद्देश्य -
ज्ञान, शिक्षा, उच्च आदर्श, पावन चरित्र व भारतीय संस्कृति का समाज में प्रचार करना तथा वैज्ञानिक सिद्धांतो पर आधारित आध्यात्मिक मूल्य द्वारा मानव को महामानव बनाना और श्री प्राणनाथ जी की ब्रम्हवाणी के द्वारा समाज में फ़ैल रही अंध-परम्पराओं को समाप्त करके सबको एक अक्षरातीत की पहचान कराना।
अति महत्वपूर्ण नोट :-
यह पंचभौतिक शरीर हमेशा रहने वाला नहीं है।
प्रियतम परब्रह्म को पाने के लिये यह सुनहरा अवसर है।
अतः बिना समय गवाएं उस अक्षरातीत पाने के लिये प्रयास करना चाहिये।
Free e-Books to Download related to Shri Tartam Vani and Chitwani, also you can order books in Print copies from Shri Prannath Gyanpeeth, Sarsawa (+91 70881 20381).
1. परिकरमा + सागर + सिनगार + खिलवत टीका
www.spjin.org/...
www.spjin.org/...
www.spjin.org/...
www.spjin.org/...
2. NIJANAND YOG (निजानन्द योग) - Collection of 60 Invaluable FAQs
www.spjin.org/...
3. CHITWANI MARGDARSHAN (चितवनि मार्गदर्शन) - Smallest and Best ever Pocket Guide to Meditation
www.spjin.org/...
4. DHYAN KI PUSHPANJALI (ध्यान की पुष्पाञ्जलि) - Detailed Question-Answer Sessions transcribed in this unique pearl of spiritual wisdom
www.spjin.org/...
आत्मिक दृष्टि से परमधाम, युगल स्वरुप तथा अपनी परआत्म को देखना ही चितवनि (ध्यान) है। चितवनि के बिना आत्म जागृति संभव नहीं है। संसार की अब तक की प्रचलित सभी ध्यान पद्धतियाँ निराकार-बेहद से आगे नहीं जाती हैं। तारतम ज्ञान के प्रकाश में मात्र निजानन्द योग ही परमधाम ले जा सकता है।
प्रियतम अक्षरातीत की चितवनि में इतना आनन्द है कि उसके सामने संसार के सभी सुख मिलकर भी कहीं नहीं ठहरते। यही कारण है कि ध्यान का आनन्द पाने के लिये ही राजकुमार सिद्धार्थ, महावीर, भर्तृहरि आदि ने अपने राज-पाट को छोड़ दिया और वनों में ध्यानमग्न रहे।
बेहद मण्डल - इस प्राकृतिक जगत् से परे वह बेहद मण्डल है, जिसे योगमाया का ब्रह्माण्ड कहते हैं। चारों वेदों में इसे चतुष्पाद विभूति के रूप में वर्णित किया गया है। इस मण्डल में अक्षर ब्रह्म के चारों अन्तःकरण (मन, चित, बुद्धि तथा अहंकार) की लीला होती है, जिन्हें क्रमशः अव्याकृत, सबलिक, केवल और सत्स्वरूप कहते हैं।
परमधाम - बेहद मण्डल से परे वह स्वलीला अद्वैत परमधाम है, जिसके कण-कण में सच्चिदानन्द परब्रह्म की लीला होती है। यह अनादि है, अनन्त है और सच्चिदानन्दमय है। जिस प्रकार सागर अपनी लहरों से तथा चन्द्रमा अपनी किरणों लीला करता है, उसी प्रकार अक्षरातीत भी अपनी अभिन्न स्वरूपा अंगरूपा आत्माओं के साथ अद्वैत लीला करते हैं, जो अनादि है और इसमें कभी अलगाव नहीं होता है।
वेदों ने इसी परमधाम के सम्बन्ध में “त्रिपादुर्ध्व उदैत्पुरुष” अर्थात् परब्रह्म योगमाया से परे है, कहकर मौन धारण कर लिया। मुण्डकोपनिषद् ने भी 'दिव्य ब्रह्मपुर' शब्द का प्रयोग तो किया, किन्तु उसे बेहद मण्डल (केवल ब्रह्म) में मान लिया। कुरआन में मेयराज के वर्णन के द्वारा संकेत किये जाने पर भी मुस्लिम जगत अभी इसकी वास्तविकता से बहुत दूर है।
श्री प्राणनाथजी की अलौकिक तारतम वाणी में इस परमधाम की शोभा, लीला एवं आनन्द का विशद रूप में वर्णन किया गया है, जिसका सुख किसी सौभाग्यशाली को ही प्राप्त होता है।
Aap key charnome koti koti prem pranam ji 🙏 Swamiji
Swamiji ke charno me koti koti prem parnamji.❤❤
Prem pranam ji 🙏🌹🙏
Parnam maharaj ji
Koti koti prem pranam swami ji 🙏
प्रणामजी
Koti koti Prem pranamji pyare Swami Ji ke charan Kamal me
Pranam ji
Sure ji sahebji krupa daya meher kare prem parnamji
Pranamji swamiji ❤❤❤
પ્રેમ પ્રણામ જી 🙏🙏
❤ se pranam ji sath ji
Prnam swami ji 🙏🙏
Pranam guru ji🙏🙏
Prem pranam ji
Prem Pranam dhani ji ki pyari sakhi ji 🙏 🙏
Pranamji Swamiji
🌹🙏pranamji🙏🌹
Prnm ji
प्रेम प्रणाम जी 🌹🌹🙏❤️🙏🌹🌹
Parnam ji 🌹 🙏 sawamy ji 🌹 🙏
Pranam ji 🙏🙏🙏🌹❤️❤️❤️🙏
सप्रेम प्रणाम जी।
Pranamji 🤗❤️
प्रेम प्रणाम जी🙏🌹🙏
अजय सिंह महाराज जी आपके चरणों में प्रणाम कर रहा है
Charanaume pranam🙏
🙏 ji
❤️ प्रेम प्रणाम जी 🙏🙏🙏
🙏🙏
🙏🙏🙏🙏🌹
Kotanikot parnam ji
🌺🙏🏻🌺
आप के चरणों में कोटि कोटि नमन स्वामी जी
Prem pranaam guruji! Agar Rajjika kripa meher nahi hota to tartam humko nasib nahi hota, aapka prabhachan sune toh hamarey hridaye mein bethey Raajji ko feel kar saktey hein, prem hein sabse badi baat!pranaam!jay ho apki !🙏
.
Raj shyama ji k charno m koti koti parnam ji
Pranam jee
Prem pranam ji
Pranamji swamiji
Pranamji 🙏🙏
श्री प्राणनाथ प्यारे की जय
Pranamji
🙏🙏🙏
Prem pranam ji
Prem pranam ji
Prem pranam 🙏 ji
Prem pranamji