अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्] १. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी । २. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)
अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्] १. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी । २. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)
अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्] १. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी । २. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्] १. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी । २. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)
अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्] १. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी । २. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्] १. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी । २. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)
अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्] १. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी । २. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्] १. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी । २. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)
Nice sharing beautiful 😊
4 like super sharing bahut hi Sundar banaya hai❤❤❤❤
8❤like Achcha video hai sister ji❤❤❤🎉🎉🎉🎉
❤❤❤❤🎉🎉🎉🎉🎉
🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉🎉
Super super super super super super super super super super super
नाइस
Nice
So ब्यूटीफुल एंड वीडियो बनाने वाले लोगों को भी 😊
अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्]
१. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी ।
२. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)
Nice
अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्]
१. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी ।
२. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)
अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्]
१. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी ।
२. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्]
१. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी ।
२. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)
अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्]
१. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी ।
२. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्]
१. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी ।
२. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)
अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्]
१. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी ।
२. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)अंजनहारी संज्ञा स्त्री॰ [सं॰ अञ्जन + कारिन्]
१. आँख की पलक के किनारे की फुंसी । बिलनी । गुहांजनी । गुहाई । अंजना । एक कीड़ा । भृंगी ।
२. एक प्रकार का उड़नेवाला कीड़ा । भृंगी नामक एक कीड़ा । विशेष-इसे कुम्हारी या बिलनी भी कहते हैं । यह प्रायः दीवार के कोनों पर गीली मिट्टी से अपना घर बनाता है । कहते हैं, इस मिट्टी को घिसकर लगाने से आँख की बिलनी अच्छी हो जाती है । इसी कीड़े के विषय में यह प्रसिद्ध है कि वह दुसरे कीड़ों को पकड़कर अपने समान रप लेता है, जैसे, भई गति कीट भृंग की नाई । जहँ तहँ देखौ रघुराई ।-तुलसी॰ (शब्द॰)