दिल की बात | Radha-Krishna |

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  • Опубликовано: 25 дек 2024
  • वृंदावन की हरी-भरी घाटी में शाम का समय था। सूरज की आखिरी किरणें आसमान में बिखरी हुई थीं, और हवा में ठंडक थी। राधा एक छोटी सी नदी के किनारे बैठी थीं, और उनकी आँखों में कृष्ण की यादें तैर रही थीं। तभी, कृष्ण आकर उनके पास बैठ गए, जैसे वह हर पल उनके दिल में बसे हों।
    राधा मुस्कुराईं, लेकिन उनका दिल कुछ उदास था। उन्होंने धीरे से कहा, "कृष्ण, तुम हमेशा मेरी शांति छीन लेते हो। कैसे?"
    कृष्ण ने उनकी ओर देखा और हंसते हुए कहा, "राधा, क्या मैंने कभी तुम्हारी शांति छीनी है? मैं तो बस तुम्हारे दिल की गहराई में बसी एक लय हूँ।"
    राधा ने सिर झुकाया और कहा, "तुमसे मिलने के बाद, मेरा दिल हमेशा तुम्हारे ही ख्यालों में खो जाता है। फिर भी, तुम मुझसे दूर होते हो। यह दूरी मेरे दिल को तड़पाती है।"
    कृष्ण ने राधा के चेहरे को gently पकड़ा और कहा, "राधा, यह दूरी नहीं है। मैं तो हमेशा तुम्हारे पास हूँ। हवा में, फूलों में, चाँद की किरणों में, और सबसे बढ़कर, तुम्हारे दिल में। तुम मुझे देखती हो, लेकिन क्या तुम महसूस करती हो कि मैं तुमसे कभी दूर नहीं गया?"
    राधा ने आँखें बंद कीं और गहरी सांस ली, "लेकिन कृष्ण, तुम तो हमेशा खेल खेलते हो, कभी पास, कभी दूर। मुझे कैसे पता चले कि तुम सच में मेरे पास हो?"
    कृष्ण मुस्कुराए और अपने बांसुरी को निकालते हुए कहा, "राधा, जब तक तुम मेरे साथ नहीं गाती, तब तक तुम महसूस नहीं करोगी। सुनो, तुम्हारे दिल की धड़कन भी मेरी धड़कन से मेल खाती है।"
    कृष्ण ने बांसुरी बजाई, और उस स्वर में राधा को एक ऐसी शांति और प्रेम की लहर महसूस हुई, जिसे शब्दों से व्यक्त नहीं किया जा सकता था। वे दोनों शांत हो गए, और वातावरण में सिर्फ कृष्ण की बांसुरी की ध्वनि गूंजने लगी।
    राधा ने आँखें खोली और मुस्कुराते हुए कहा, "कृष्ण, अब मैं समझ गई। तुम कभी दूर नहीं जाते, तुम मेरे भीतर हमेशा हो।"
    कृष्ण ने उनकी ओर देखा और कहा, "तुमने सही समझा, राधा। हमारे बीच कोई दूरी नहीं है।"
    इस पल, दोनों के बीच कोई शब्द नहीं थे, केवल एक शांत प्रेम था, जो दोनों के दिलों को एक करता था।

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