बाली और दुदुम्भी का महायुद्ध | Bali vs Dundubhi | मायावी असुर ने बाली को युद्ध के लिए ललकारा

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  • Опубликовано: 7 фев 2023
  • बाली और दुदुम्भी का महायुद्ध | Bali vs Dundubhi | मायावी असुर ने बाली को युद्ध के लिए ललकारा | Maha Warrior | मायावी असुर | राक्षस और बाली युद्ध | बाली को किसने दिया श्राप | बाली और दुंदुभी युद्ध #bali #ramayan #mahawarrior
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    बाली अत्यंत शक्तिशाली व महापराक्रमी राजा था जिसके सामने कोई भी नही टिक सकता था । उसे ब्रह्मा जी से मिले वरदान के कारण शत्रु की आधी शक्ति उसके अंदर आ जाती थी जिस कारण उसे पराजित करना असंभव था । इसी कारण उसकी ख्याति दूर-दूर तक फैली हुई थी।
    उसी समय में पराक्रमी दुंदुभी नाम का एक राक्षस था जो भैंसे के रूप में पर्वत जितना विशाल था। उसके अंदर भी अथाह शक्ति थी जिसके दम पर वह दूसरों को चुनौती दिया करता था। एक दिन अपने घमंड में उसने समुंद्र को युद्ध के लिए ललकारा। तब समुंद्र देव ने उससे कहा कि वह सबसे शक्तिशाली नही हैं इसलिये वह जाकर हिमालय पर्वत से लड़े क्योंकि वे उनसे ज्यादा शक्तिशाली है।
    यह सुनकर दुंदुभी हिमालय पर्वत के पास गया व पर्वत देव को युद्ध के लिए ललकारा । उसकी ललकार सुनकर हिमालय पर्वत ने कहा कि वह भी इस पृथ्वी पर सबसे शक्तिशाली नही है। इसलिये वह किष्किन्धा के राजा बालि से युद्ध करें क्योंकि वही सबसे बलवान हैं।
    दुंदुभी अंत में बालि की नगरी किष्किन्धा पहुंचा व उसे युद्ध के लिए ललकारा। शत्रु की पुकार सुनकर बालि अत्यंत क्रोध से भर गया व उसकी चुनौती स्वीकार कर ली। ब्रह्मा के वरदान स्वरुप उस दुंदुभी की आधी शक्ति बाली के अंदर आ गयी। अब बाली के अंदर स्वयं व उस भैसे की आधी शक्ति थी व साथ ही दुंदुभी की आधी शक्ति समाप्त हो जाने से वह कमजोर पड़ गया था। बाली ने दुंदुभी को बहुत मारा व उसे कई जगह से लहूलुहान कर दिया। अंत में बाली ने दुंदुभी को अपने दोनों हाथों से उठाकर कई कोस दूर फेंक दिया। दुंदुभी हवा में उड़ता हुआ धरती पर दूर जाकर गिरा। बीच में मतंग ऋषि का आश्रम आता था जहाँ दुंदुभी के शरीर से निकल रहा रक्त गिरा।अपने आश्रम पर रक्त के गिरने से मतंग ऋषि अत्यधिक क्रोधित हो गए व उन्होंने उसी क्रोध में बाली को श्राप दे दिया। मतंग ऋषि ने बाली को श्राप दिया कि भविष्य में वह उनके आश्रम के आसपास की लगभग एक योजन की भूमि पर नही आ सकता। यदि वह इस भूमि में आने का प्रयास करेगा तो उसी समय उसकी मृत्यु हो जाएगी।
    ऋषि मतंग के इसी श्राप के कारण बालि धरती पर कही भी जा सकता था लेकिन उस आश्रम के आसपास की भूमि व वहां स्थित ऋषयमूक पर्वत के पास नही भटक सकता था।
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