कौन हैं श्रीहित प्रेमानंद जी महाराज के गुरु ?
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- Опубликовано: 29 сен 2024
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श्रीहित गौरांगी शरण जी हैं प्रेमानंदजी महाराज के गुरू
वृन्दावन के पूज्य संत श्रीहित गौरांगी शरण जी महाराज हैं पूज्य प्रेमानंद के गुरू...अपनी दो टूक वाणी को लेकर देश और विदेश में तेजी से मशहूर हो रहे संत श्रीहित प्रेमानंद के गुरू कौन हैं ये सब जानना चाहते हैं...प्रेमानंद राधावल्लभी संप्रदाय से आते हैं और उसके पहले वे बनारस में ज्ञान मार्ग के संन्यासी थे लेकिन एक बार उन्होंने वहीं कृष्ण रास लीला देखी और फिर ह्रदय परिवर्तित हो गया...वे वृन्दावन आ गए...सबको पता है कि वृन्दावन प्रेम भूमि है...राधा और कृष्ण के प्रेम की लीला स्थली....प्रेमानंद जी महाराज 14 वर्ष की अवस्था से ज्ञान मार्ग पर चल रहे थे...शिव के उपासक थे...गंगा किनारे विचरण करते थे और आकाशीय वृत्ति से रहते थे, मतलब किसी ने अपनी भावना से अगर कुछ दे दिया तो ले लिया...खाने का दिया तो खा लिया...ओढ़ने को दिया तो ओढ़ लिया...ज्ञान के रास्ते उनका जीवन गंगा और शिव के बीच चल रहा था लेकिन एक दिन लीलाधर श्रीकृष्ण उनके जीवन में आ गए...श्रीकृष्ण जब किसी के जीवन में आते हैं तो फिर वह व्यक्ति लुट जाता है..है...कृष्ण में खो जाता है...महाराज जी के साथ भी ऐसा ही हुआ और उनका पूरा जीवन कृष्ण मय हो गया...जो आकाशीय वृत्ति से रहता हो उसके पास इतने धन तो नहीं थे कि वे मथुरा आ सके लेकिन कृष्ण ने बुलाया था तो आना तो था ही...किसी का लिहोरा करते-करते एक दिन वे मथुरा आ गए...जहां लिखा था- कृष्ण की धरती पर आपका स्वागत है...रेलवे स्टेशन पर पटशिला पढ़ते ही महाराज जी को लगा जैसे यही तो वो जगह है जहां जाने कितने वर्षों से कितने जन्मों से वो आना चाहते थे...वहां से वो बिहारी जी के मंदिर में आए...बिहारी जी मिले...उनसे बातें की...और बिहारी जी ने उन्हें खूब खिलाया पिलाया...आना जाना कुछ दिनों तक लगा रहा...
1st bite
प्रेमानंद जी महाराज ज्ञानमार्ग के जटिल पथिक थे, उनका प्रेम रस में डूबना आसान नहीं था किसी के लिए नहीं होता है...ज्ञान मार्ग का व्यक्ति अपने तर्कों की आधारशिला पर ही हर चीज को फिट करना चाहता है...उनके मन में भी उकताहट हुई...वे फिर बनारस लौट गए....लेकिन ब्रज की एक कहावत है भूत पीछे पड़े तो छूट जाते हैं...नंद का पूत पीछे पड़ जाए तो कभी नहीं छूटता...और इस ब्रज वाक्य के आधारतन, प्रेमानंद जी महाराज वापस ब्रज लौटे...दिलों में छटपटाहट लिए...ज्ञान छूट नहीं रहा था और प्रेम पकड़ने की जद्दोजेहद चल रही थी...महाराज जी का हाथ कौन पकड़ता....एक दिन वे राधावल्लभ मंदिर भी गए...वहां उनकी मुलाकात मंदिर के तिलकायत अधिकारी मोहित मराल गोस्वामी से हुई...उन्होंने उनकी उलझन को दूर किया और राधावल्लभ का नाम देते हुए वृन्दावन के अखंड संत श्रीहित गौरांगी शरण जी महाराज के पास भेजा
..2nd bite .
Vo - गौरांगी शरण जी महाराज, जिन्हें हम दादा गुरू और बड़े महाराज जी के नाम से जानते हैं, वे किसी से मिलते जुलते नहीं हैं....लेकिन जिनको जिनसे मिलना होता है उन्हें रोक ही कौन सकता है...उसपर कृष्ण की कृपा..
.3rd bit
Vo गौरांगी शरण जी महाराज ने श्री हित प्रेमानंद जी महाराज को अपनी शरण में लिया...और उन्हें राधावल्लभी संप्रदाय में दीक्षित किया और वर्षों तक ऊंगली पकड़ कर प्रेम मार्ग पर चलाया...प्रेमानंद जी महाराज ज्ञान मार्ग की सीढ़ीयां उतरते गए और अपने गुरू गौरांगी शरण दास जू महाराज के परम शिष्य बन गए....जिन्होंने उन्हें वृन्दावन की प्रेम रस महिमा को आत्मसात करने में मदद की...आज भी हर गुरू वार को प्रेमानंद जी महाराज अपने गुरू गौरांगी शरण जी से मिलने जाते हैं.
संतो से सकारात्मक चर्चा, वाद, संवाद का एक मंच. आग्रह, दुराग्रह से दूर सनातन एवं अन्य धर्मों के सभी संतों का समादर, और उनसे देश और समज के लिए कुछ सार्थक पाने के सरोकार को समर्पित.
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