KAPAT

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  • Опубликовано: 26 ноя 2024
  • योगेश्वर श्रीकृष्ण के अनुसार कल्याण-पथ की जानकारी, उसका साधन और उसकी प्राप्ति सद्गुरु से होती है। इधर-उधर तीर्थों में बहुत भटकने या बहुत परिश्रम से यह तब तक नहीं मिलता, जब तक किसी सन्त द्वारा न प्राप्त किया जाय। अध्याय ४/३४ में श्रीकृष्ण ने कहा- अर्जुन! तू किसी तत्त्वदर्शी महापुरुष के पास जाकर, भली प्रकार दण्ड-प्रणाम कर, निष्कपट भाव से सेवा करके, प्रश्न करके उस ज्ञान को प्राप्त कर। प्राप्ति का एकमात्र उपाय है, किसी महापुरुष का सान्निध्य और उनकी सेवा। उनके अनुसार चलकर योग की संसिद्धिकाल में पायेगा। अध्याय १८/१८ में उन्होंने बताया कि परिज्ञाता अर्थात् तत्त्वदर्शी महापुरुष, ज्ञान अर्थात् जानने की विधि और ज्ञेय परमात्मा- तीनों कर्म के प्रेरक हैं। अत: श्रीकृष्ण के अनुसार महापुरुष ही कर्म के माध्यम हैं, न कि केवल पुस्तक। किताब तो एक नुस्खा है। नुस्खा रटने से कोई नीरोग नहीं होता बल्कि उसे अमल में लाना है।
    -- श्रीमद्भगवद्गीता की शाश्वत टीका “यथार्थ गीता।”
    ‘Vishwagaurav’ (Pride of the World), ‘Bharatgaurav’ (Pride of India), ‘Vishwaguru’ (the Man of the World and prophet) was accorded on the reverend Swami Shri Adgadanand Ji Maharaj by the World Religious Parliament for the work ‘Yatharth Geeta’ - Commentary on Srimad Bhagavad Gita.
    The Audio and the text of the Book, Yatharth Geeta is available in various International (English, Russian, French, German, Spanish, Chinese, Italian, Norwegian, Dutch, Portuguese, Arabic, Japanese, Persian, Nepali and Urdu) and Indian languages (Hindi, Bengali, Assamese, Gujarati, Marathi, Tamil, Telugu, Malayalam, Kannada, Oriya, Sindhi, Sanskrit, Punjabi).
    More on Yatharth Geeta and Ashram Publications: www.yatharthgee...
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    © Shri Paramhans Swami Adgadanandji Ashram Trust.

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