अंतिम संस्कार | अंत्येष्टि संस्कार (antim sanskar | antyeshti sanskar) 16 - Part 2

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  • Опубликовано: 10 сен 2024
  • इस चलचित्र में शमशान जाकर वहां से आने तक की क्रियाओं का वर्णन है |
    अंत्येष्टि संस्कार विधि - 2
    5. श्मशान में भूमि को पवित्रकर शव को वहाँ लिटा दें। अब शमी, चंदन आदि की लकड़ियाँ लेकर आएँ। और भूमि को पुनः पवित्रकर वेदी बनाकर वहाँ चिता तैयार करें। शव को उस पर लिटाएँ व दोनों हाथों में पिंड दान करें। शव पर घी लगाएँ।
    6. अब दाह करें और क्रव्याद नामक अग्नि देवता की पूजा निम्नलिखित मंत्र से करें:
    त्वं भूतकृज्जगद्योनिस्त्वं लोकपरिपालकः। उपसंहर तस्मात्वमेनं स्वर्गं नयामृतम्।। (धर्मकांड, प्रेतकल्प, 5/15, 64-65/44-45)
    हे देव! आप भूतकृत हैं। हे देव ! आप इस संसार के योनिस्वरूप और सभी के पालनहार हैं। इसलिये आप इस शव का अपने में उपसंहार करके अमृतस्वरूप स्वर्ग में ले जाइये। ... अब यम, अंतक, मृत्यु, ब्रह्मा, जातवेदस नाम से एक-एक आहुति घी और तिल से देकर एक आहुति शव के मुख पर दें।
    7. अब आधा भाग जब जल जाए तो इस मंत्र को जपें। अस्मात्वमधिजातोअसि त्वदयं जायतां पुनः। असौ स्वर्गाय लोकाय स्वाहा।। (यजु 35,22) व 4/15, 66-67/49, ग.पु,)
    हे देव ! आप इसी से उत्पन्न हुए हैं। यह शरीर पुनः आपस उत्पन्न हो। अमुक नाम वाला यह प्राणी स्वर्ग लोक को प्राप्त करे। ... ऐसा कहकर तिलमिश्रित आहुति शव के ऊपर छोड़ें। अब रोएँ।
    8. अब स्नान करने यह सोचकर जाएँ कि प्रेत की यही आज्ञा है। और शिखा खोलकर दक्षिणाभिमुख होकर अग्रलिखित मंत्र बोलकर स्नान करें। प्रजापतौ त्वा देवतोयामुपोदके लोके निदधाम्यसौ। अपे नः शोशुचदघम्।। 6,35 यजु.
    अर्थ - हे अमुक मृत जल के निकट स्थान में मैं तुम्हें प्रजापति देवता में धरता हूँ। वह प्रजापति हमारे पाप को अत्यंत जला डाले। अब किनारे आकर शिखा बाँधें और 1,3 या 10 तिल मिश्रित जल की अंजलि दें। यह मंत्र बोलकर - अद्येहा अमुक गोत्र अमुक प्रेत चितादाहजनित तापतृषोपशमाय एष तिलकुशतो याज्जलिर्मद्दत्तस्तवोपतिष्ठाम्।
    हे अमुक गोत्र में उत्पन्न अमुक नाम वाले प्रेत! तुम मेरे द्वारा दिये जा रहे इस तिलोदक से संतृप्त होओ। मैं तुम्हें तिलांज्जलि दे रहा हूँ। अतः इसको ग्रहण करने हेतु तुम यहाँ उपस्थित होओ। ... अब पुराना वस्त्र निचोड़कर दूसरा वस्त्र पहने और पुराणज्ञ से संसार की अनित्यता को सुनंे।
    अब स्त्रियाँ पहले घर जाएँ और पुरुष पश्चात में और पहले से रखी दूर्वा, जल, सफेद सरसों आदि मांगलिक वस्तुओं का स्पर्श कर नीम की पत्ती चबाकर आचमन करें और पत्थर पर पैर रखकर घर में प्रवेश करें। गोत्र से भिन्न लोग घी खाकर शुद्ध हों।
    नोट - दिन में दाह किया हो तो अँधेरे में और रात में किया हो तो उजाले/सूर्योदय पर घर जाएँ।

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