[21/07, 14:39] किरण: [21/07, 14:35] किरण: योगामृत-उपाध्याय-श्री-निर्णय-सागर-जी-महाराज. ४९.एक-समय-में-एक-ही-उपयोग-हो-सकता-है..मतलब-अशुभोप्योग-है..तोह-शुभोप्योग-नहीं-हो-सकता,और-शुद्धोप्योग-से-शुभोप्योग-का-निरोध-होता-है...,अशुभोप्योग-को-त्याग-शुभोप्योग-में-प्रवर्ती-करनी-चाहिए.. -(कुंद-कुंद का कुंदन-आचार्य विद्यासागर जी द्वारा संगृहीत(आचार्य कुंद-कुंद के द्वारा लिखे गए [21/07, 14:39] किरण: शुध्दोपयोगसे ही आनंद की अनुभूति होती हैं। एक समय का सार प्रत्यक्षात पर जोर हैं आनंदकी बात गौर से जाणो. धर्म्यध्यान प्रत्यक्ष अनुभूति होती हैं जीवात्मा अनादी अनंत शाश्वत सत्य है ।यह तो एक ही पुरुषोत्तम हैं पुज्यश्री वीरसागरजी की धार्मिक और सात्विक प्रवृत्तियों को प्रत्यक्ष जाणा हैं। कोई भी हो,,मुक्तिबोध और सच्चे आनंदकी अनुभूति में खुद को औरौको जाणकर मैं एक अखंडीत विश्वरूप दर्शन हैं। जैनभूगोल देखे तो पता चला कि मैं कौन हूँ मेरी श्रद्धा भक्ति की भावनाएं उमड आती हैं। [22/07, 05:53] किरण: 29.अशुभोप्योग का फल नरक और तिर्यंच गति है,शुभोय्पोग का फल मनुष्य और स्वर्ग,शुद्धोप्योग का फल साक्षात् मोक्ष है.(कुंद-कुंद का कुंदन-आचार्य विद्यासागर जी द्वारा संगृहीत(आचार्य कुंद-कुंद के द्वारा लिखे गए शास्त्रों में से)(श्री मानक चंद जैन जी ने मुझको समझाया) ३०.शुभोप्योग से अशुभोयोग का निरोध होता है,और शुद्धोप्योग से शुभोप्योग का निरोध होता है.(कुंद-कुंद का कुंदन-आचार्य विद्यासागर जी द्वारा संगृहीत(आचार्य कुंद-कुंद के द्वारा लिखे गए शास्त्रों में से)(श्री मानक चंद जैन जी ने मुझको समझाया) ३१.आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान अशुभोप्योग है,धर्म ध्यान शुभोप्योग है,शुक्ल ध्यान शुद्दोप्योग है.-श्री मानक चंद जन जी. ३२.सच्चा सुख तोह वह है जो "शास्वत,स्वाधीन,आत्मोत्पन्न,बाधा रहित अखंडित हो"...इन्द्रियसुख तोह न ही शाश्वत है न ही आत्मोत्पन्न -"योगामृत-उपाध्याय श्री निर्णय सागर जी महाराज जी.
शुभ अशुभ विचार सब को देखा तो ये खयाल आयेगा की परंपरागत बातौको अब मिटाना बाकी हैं तो सब झंटटौको गौण करो और प्रत्यक्षात मात्र मैं हूँ इसका मुझे अभिमान हैं मैं सानीध्य सौभाग्य हैं. पहिले जैनभूगोल कीं जाणकारी उपलब्ध हैं. गुगल सर्च इंजिन पर सब कुछ जाणकर अपनी पहचान ही सच्चाई बोध हैं यह जाणणा सुलभ हैं धर्म्यध्यान से ही सच्चाई जाणो. सुरूवात धर्म्यध्यान प्रत्यक्षात मात्र मैं हूँ अनुभूती कीं सच्चाई कहीं हैं. मनुष्य भव मन उधाण उधाण होते ही ज्ञान कीं अनुभूती हैं ही तो प्रथम शुध्दोपयोग हीं फर्ज हैं याद है ना अपने बस की बात है. खुद का स्वरूप ज्यो अनादीसे हैं शाश्वत सत्य की जाणकारी मिलनेका भी कार्य हो, प्रत्यक्ष संबंध को देखा तो ये खयाल आयेगा की मैं तो इस विश्वमे अकेले अकेले है. बाकी सब पर्यायौकी भरमार हैं क्षणिक हैं. मैं आप भी हो जी. 👏👏👏शुध्दोहम् l
कुछ भी हो जी एक ही विचार होता हैं दो होते ही नहीं. फायदा ,, उजळणी क्रोधक बन रहे हो,,खुद को अकेला इस जहां में अखंडित अक्रम अनादी अनंत चेतन ध्रूवात्मा कीं अनुभूती करना सुलभ हैं धर्म्यध्यान से ही सच्चाई जाणो यही दिव्यध्वनीसे पैगाम द्वारा आदेश हैं.
Bahut sundar bhajan.....aawaz aur lay bhi ati hi sundar
Bahut sundar bhajan awaaz bahut Sundar hai .
Jai Jinendra 🙏
Excellent wordings 👏👌🙏
पुर्णमती माताजी की जय हो जय हो 👏👏
Sunder line jai jai gurudev
Aap hi ho swayam Bhagwan 🙏
Ye bhavna gurudev ko yaad krne per vivash krte hai bhaut hi sunder line jai jai gurudev🌴🙏🙏🙏
वंदावी माताजी किती सुंदर आवाज ब अर्थपूर्ण गाणं खूप सुंदर👍👍👌👌👌🙏
Vandami mataji
Jai jinedra🌹😄👍🙏
Jai Mata di
जो जो भेटे भूत त्यासी माणावा भगवंत 🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏🙏
Om Arham om shanti
पूर्णमति माताजी की जय
पूर्णमति माताजी की जय
पूर्णमति माताजी की जय
स्वरुप का यथार्थ दर्शन मधुर वाणी में उपहार हम भक्तिभाव से ध्यावे भावे
Jai ho
🙏🙏🙏
बहुत सुंदर ।
🎉🎉👌🏻👌🏻👌🏻
👌👌👍🙏🙏
~~~ 🙏 वन्दामि माताजी! 🙏
... Thank U! So Very Much for Sharing ... 🙏
~~~ जय जिनेंद्र, उत्तम क्षमा!
~~~ जय भारत!🙏
(2020 Jan. 12 Sun. Eve.)
तणध
🙏🏼🙏🏼🙏🏼
Bandami guru maa
Bahut sundar.
Jai jinendraji supar bhujan thick
Om Arham Om Shanti Sardarshahr
Accha
Very nice
भजन
हे आतम आनंद धन
Great Sukhmall Bakliwal
of
Kolkata
तीन योग से सत् सत् नमन
Bot achha
Badia
Zombie q right ekibhav Stotra
Memorable
Ashish Kumar Jain
B
[21/07, 14:39] किरण: [21/07, 14:35] किरण: योगामृत-उपाध्याय-श्री-निर्णय-सागर-जी-महाराज.
४९.एक-समय-में-एक-ही-उपयोग-हो-सकता-है..मतलब-अशुभोप्योग-है..तोह-शुभोप्योग-नहीं-हो-सकता,और-शुद्धोप्योग-से-शुभोप्योग-का-निरोध-होता-है...,अशुभोप्योग-को-त्याग-शुभोप्योग-में-प्रवर्ती-करनी-चाहिए..
-(कुंद-कुंद का कुंदन-आचार्य विद्यासागर जी द्वारा संगृहीत(आचार्य कुंद-कुंद के द्वारा लिखे गए
[21/07, 14:39] किरण: शुध्दोपयोगसे ही आनंद की अनुभूति होती हैं। एक समय का सार प्रत्यक्षात पर जोर हैं आनंदकी बात गौर से जाणो. धर्म्यध्यान प्रत्यक्ष अनुभूति होती हैं जीवात्मा अनादी अनंत शाश्वत सत्य है ।यह तो एक ही पुरुषोत्तम हैं पुज्यश्री वीरसागरजी की धार्मिक और सात्विक प्रवृत्तियों को प्रत्यक्ष जाणा हैं। कोई भी हो,,मुक्तिबोध और सच्चे आनंदकी अनुभूति में खुद को औरौको जाणकर मैं एक अखंडीत विश्वरूप दर्शन हैं। जैनभूगोल देखे तो पता चला कि मैं कौन हूँ मेरी श्रद्धा भक्ति की भावनाएं उमड आती हैं।
[22/07, 05:53] किरण: 29.अशुभोप्योग का फल नरक और तिर्यंच गति है,शुभोय्पोग का फल मनुष्य और स्वर्ग,शुद्धोप्योग का फल साक्षात् मोक्ष है.(कुंद-कुंद का कुंदन-आचार्य विद्यासागर जी द्वारा संगृहीत(आचार्य कुंद-कुंद के द्वारा लिखे गए शास्त्रों में से)(श्री मानक चंद जैन जी ने मुझको समझाया)
३०.शुभोप्योग से अशुभोयोग का निरोध होता है,और शुद्धोप्योग से शुभोप्योग का निरोध होता है.(कुंद-कुंद का कुंदन-आचार्य विद्यासागर जी द्वारा संगृहीत(आचार्य कुंद-कुंद के द्वारा लिखे गए शास्त्रों में से)(श्री मानक चंद जैन जी ने मुझको समझाया)
३१.आर्त ध्यान और रौद्र ध्यान अशुभोप्योग है,धर्म ध्यान शुभोप्योग है,शुक्ल ध्यान शुद्दोप्योग है.-श्री मानक चंद जन जी.
३२.सच्चा सुख तोह वह है जो "शास्वत,स्वाधीन,आत्मोत्पन्न,बाधा रहित अखंडित हो"...इन्द्रियसुख तोह न ही शाश्वत है न ही आत्मोत्पन्न -"योगामृत-उपाध्याय श्री निर्णय सागर जी महाराज जी.
शुभ अशुभ विचार सब को देखा तो ये खयाल आयेगा की परंपरागत बातौको अब मिटाना बाकी हैं तो सब झंटटौको गौण करो और प्रत्यक्षात मात्र मैं हूँ इसका मुझे अभिमान हैं मैं सानीध्य सौभाग्य हैं.
पहिले जैनभूगोल कीं जाणकारी उपलब्ध हैं. गुगल सर्च इंजिन पर सब कुछ जाणकर अपनी पहचान ही सच्चाई बोध हैं यह जाणणा सुलभ हैं धर्म्यध्यान से ही सच्चाई जाणो.
सुरूवात धर्म्यध्यान प्रत्यक्षात मात्र मैं हूँ अनुभूती कीं सच्चाई कहीं हैं. मनुष्य भव मन उधाण उधाण होते ही ज्ञान कीं अनुभूती हैं ही तो प्रथम शुध्दोपयोग हीं फर्ज हैं याद है ना अपने बस की बात है.
खुद का स्वरूप ज्यो अनादीसे हैं शाश्वत सत्य की जाणकारी मिलनेका भी कार्य हो, प्रत्यक्ष संबंध को देखा तो ये खयाल आयेगा की मैं तो इस विश्वमे अकेले अकेले है. बाकी सब पर्यायौकी भरमार हैं क्षणिक हैं.
मैं आप भी हो जी. 👏👏👏शुध्दोहम् l
कुछ भी हो जी एक ही विचार होता हैं दो होते ही नहीं.
फायदा ,, उजळणी क्रोधक बन रहे हो,,खुद को अकेला इस जहां में अखंडित अक्रम अनादी अनंत चेतन ध्रूवात्मा कीं अनुभूती करना सुलभ हैं धर्म्यध्यान से ही सच्चाई जाणो यही दिव्यध्वनीसे पैगाम द्वारा आदेश हैं.
@@kirangandhi954 ....kun iya.s.......tachanekal.......yash.jain.........namost...mataji.............naman..........
H
Bhav poorn
Vandami mataji
🙏🙏🙏
Om Arham om shanti
Vandami mataji