साधु प्रशंसा के भूखे और योग्यता से कंगाल होते हैं लेकिन जब योग्यता प्रशंसा का पीछा करती है तब योग्यता कंगाल के रास्ते आगे बढ़ जाती है यही यही संन्यासी और संसारी में अंतर
सन्यासी ➡️साधु जब शांति धारा करते समय ना देख पाते हैं फिर भी मंत्रॊ में इतना डूब जाते हैं संसारी ➡️ श्रावक जब जो पढ़कर भी और देखकर भी उर्जा एकत्रित नहीं कर पाते हैं उससे ज्यादा साधु एकत्रित कर लेते हैं| यही संसारी और संन्यासी में अंतर है
गुरुदेव के चरणो मैं मेरा कोटी कोटी कोटी कोटी नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु महाराज जी, महावीर रमेशजी जैन वरखेडकर जिंतुर निवासी जिल्हा परभणी महाराष्ट्र से, 👏👏👏
संसारी और संन्यासी मै ये ही अंतर है प्रसन्नता के भूखे योग्यता से कंगाल होते है लेकिन जब योग्यता प्रसन्नता का पीछा किया करती है तब योग्यता कंगाल के रस्ते आगे बढ़ जाती है।पूजा सिंघई ललितपुर।
साधु शांति धारा कराते समय न देख पाते न कर पाते पर मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। और श्रावक शांति धारा करते समय भी उतनी ऊर्जा एकत्रित नहीं कर पाए जितनी साधु कर लेते हैं। यही संसारी और संन्यासी में अंतर हैं। महिमा सराफ मुंगावली
साधु जब मंत्र पढ़ते हैं तो न तो भगवान को देख पाते हैं ना ही शांति धारा कर पाते हैं फिर भी मंत्रो में इतना डुब जाते हैं कि श्रावक जो पढ़ कर भी और देख कर भी इतनी ऊर्जा नहीं पाते साधु वो तर्के के मंत्रो में डुब के पा जाते हैं
संसारी भगवान जी की शांति धारा कर सकता है और वह शांति धारा के माध्यम से अपने भाव को निर्मल कर सकता है लेकिन सन्यासी जो है वह शांति धारा तो नहीं कर सकते लेकिन अपने मंत्रो में माध्यम से होने वाली शांति धारा और भगवान में इतने खो जाते हैं कि अपना कल्याण कर जाते हैं सुबोध मोदी mungaoli
साधु प्रशंसा के भूखे और योग्यता से कंगाल होते हैं लेकिन जब योग्यता प्रशंसा का पीछा करती है तब योग्यता कंगाल के रास्ते आगे बढ़ जाती है यही यही संन्यासी और संसारी में अंतर
सन्यासी ➡️साधु जब शांति धारा करते समय ना देख पाते हैं फिर भी मंत्रॊ में इतना डूब जाते हैं
संसारी ➡️ श्रावक जब जो पढ़कर भी और देखकर भी उर्जा एकत्रित नहीं कर पाते हैं उससे ज्यादा साधु एकत्रित कर लेते हैं|
यही संसारी और संन्यासी में अंतर है
गुरुदेव के चरणो मैं मेरा कोटी कोटी कोटी कोटी नमोस्तु नमोस्तु नमोस्तु महाराज जी, महावीर रमेशजी जैन वरखेडकर जिंतुर निवासी जिल्हा परभणी महाराष्ट्र से, 👏👏👏
संसारी और संन्यासी मै ये ही अंतर है प्रसन्नता के भूखे योग्यता से कंगाल होते है लेकिन जब योग्यता प्रसन्नता का पीछा किया करती है तब योग्यता कंगाल के रस्ते आगे बढ़ जाती है।पूजा सिंघई ललितपुर।
साधु शांति धारा कराते समय न देख पाते न कर पाते पर मंत्र मुग्ध हो जाते हैं। और श्रावक शांति धारा करते समय भी उतनी ऊर्जा एकत्रित नहीं कर पाए जितनी साधु कर लेते हैं। यही संसारी और संन्यासी में अंतर हैं।
महिमा सराफ मुंगावली
साधु जब मंत्र पढ़ते हैं तो न तो भगवान को देख पाते हैं ना ही शांति धारा कर पाते हैं फिर भी मंत्रो में इतना डुब जाते हैं कि श्रावक जो पढ़ कर भी और देख कर भी इतनी ऊर्जा नहीं पाते साधु वो तर्के के मंत्रो में डुब के पा जाते हैं
Akanksha jain barwai
🙏🙏
संसारी भगवान जी की शांति धारा कर सकता है और वह शांति धारा के माध्यम से अपने भाव को निर्मल कर सकता है
लेकिन सन्यासी जो है वह शांति धारा तो नहीं कर सकते लेकिन अपने मंत्रो में माध्यम से होने वाली शांति धारा और भगवान में इतने खो जाते हैं कि अपना कल्याण कर जाते हैं सुबोध मोदी mungaoli