खूब गहरी कहानी। बहुत सुना था निर्मल जी के बारे में । उनकी परिंदे पुस्तक के कारण ज्यादा। लेकिन इतनी स्वच्छ लेखनी, बहुत ही अनुपम। कहानी अपनी जगह एक अलग आयाम लिए हुए पर लेखनी तो शानदार🙏🙏 बार बार शिवानी जी की भैरवी का ख्याल आता रहा। हालांकि दोनो में समानता कोई नही ☺️। आपने बहुत बढ़िया निभाई🙏
दो स्थानों पर गलतियां हुई हैं, एक कथा वाचन के दौरान और दूसरी निर्मल वर्मा जी द्वारा। कथा वाचन में पहाड़ की ऊंचाई 2100 मीटर की जगह 2100 किलोमीटर पढ़ दी गई। फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में केवल एक चौकीदार होता है, होटलोअं की तरह कोई मैनेजर नहीं होता।
ऐसे अनेकों मानव हैं जो अचानक घर बार छोड़ पहाड़ों पर बस जाते हैं। उन्हें दुनिया में रस नहीं आता। फिर ये सोचते हैं कि ईश्वर के दर्शन होंगे पर निराशा ही हाथ लगती है। वापिस आ कर काम धंधा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। हमारे समाज में सन्यासी को लोग पैसे, सामान आदि भी दे देते हैं। घर की याद क्यों नहीं आएगी। पर लेखक ने बताया तो है, कोवो और बादलों के रूपक से, ये एक बीच की योनि में भटक जाते हैं।
खूब गहरी कहानी। बहुत सुना था निर्मल जी के बारे में । उनकी परिंदे पुस्तक के कारण ज्यादा। लेकिन इतनी स्वच्छ लेखनी, बहुत ही अनुपम। कहानी अपनी जगह एक अलग आयाम लिए हुए पर लेखनी तो शानदार🙏🙏 बार बार शिवानी जी की भैरवी का ख्याल आता रहा। हालांकि दोनो में समानता कोई नही ☺️। आपने बहुत बढ़िया निभाई🙏
बहुत-बहुत आभार और स्नेह अंकिता ❤️❤️
Very nice story
😊like the story 😊,look like true story .
🙏😊
So nice story 🎉
दो स्थानों पर गलतियां हुई हैं, एक कथा वाचन के दौरान और दूसरी निर्मल वर्मा जी द्वारा।
कथा वाचन में पहाड़ की ऊंचाई 2100 मीटर की जगह 2100 किलोमीटर पढ़ दी गई।
फॉरेस्ट रेस्ट हाउस में केवल एक चौकीदार होता है, होटलोअं की तरह कोई मैनेजर नहीं होता।
मानवीय भूल के लिए क्षमा प्रार्थी हूं और एक जागरूक श्रोता होने के नाते आपको को हार्दिक आभार. 🙏
Thanks a lot dear..🎉🎉❤❤
My pleasures 🙏 ☺️
कहानी में।आखिर बाबा वहा क्यो रह रहे थे..... घर क्यो छोड़ा।।।।। ओ अगर सन्यासी नहीं थे तो।।।।।। फिर अचानक घर की क्यो याद आती।।।।।।। कुछ समझ नहीं आया
..मैंने कहानी अक्षरशः पाठन की...लेकिन explain कर पाना मुश्किल है मेरे लिए.
ऐसे अनेकों मानव हैं जो अचानक घर बार छोड़ पहाड़ों पर बस जाते हैं।
उन्हें दुनिया में रस नहीं आता।
फिर ये सोचते हैं कि ईश्वर के दर्शन होंगे पर निराशा ही हाथ लगती है।
वापिस आ कर काम धंधा करने की हिम्मत नहीं जुटा पाते। हमारे समाज में सन्यासी को लोग पैसे, सामान आदि भी दे देते हैं।
घर की याद क्यों नहीं आएगी। पर लेखक ने बताया तो है, कोवो और बादलों के रूपक से, ये एक बीच की योनि में भटक जाते हैं।