शासन प्रशासन के लोग भी मृत्यु भोज करते हैं और दूसरों द्वारा आयोजित मृत्यु भोज में शामिल होकर जिमण भी करते हैं तो क्या शासन प्रशासन को इस अधिनियम की जानकारी में नहीं है? मृत्यु भोज ब्राह्मणों के लिये फलदायी है शायद इसलिये भी यह अधिनियम लागू नहीं हो पा रहा है।
मृत्यु भोज किसीके नहीं फलदाई शिक्षा के आभाव में अक्ल नहीं आई मृत्यु भोज निषेध अधिनियम 1960 के नियमों को जानकर तो कोई भी इस कुप्रथा में भागीदार नहीं होगा।
esko bandh karna bahut jaruri hai dukh k gar par galat niam abanb param para ham sab bhatbasi or budhijevio ko jar sar say ssb mil k es ku pratha ko bandh karna hai
षड्यंत्रों के इस युग में हो यह रहा है कि अधिकतर हिंदुओं को कुछ नहीं पता और उसे उसके शत्रु जो मीडिया संस्थानों में जमे हुए हैं उसे जो चाहे बता कर भ्रमित कर देते हैं यह ऐसे ही है जैसे कोई किसी अनाथ के माता पिता के मरने के बाद उसकी संपत्ति उसके अबोध बालकों को मूर्ख बना कर कुछ ठगों द्वारा सस्ते में उनसे ले ली जाती है हिंदुओं के बच्चे सेक्युलर हैं, खुद को बहुत समझदार समझते हैं, धर्मग्रंथों में उनकी कोई श्रद्धा नहीं होती, प्राचीन महान परंपरा का ज्ञान उन्हें कभी मिला नहीं, कोई धार्मिक शिक्षा पाते नहीं इसलिए वो बिना सोचे समझे मृत्युभोज जैसी सनातन वैदिक परंपरा के प्रखर विरोध पर उतर आए हैं भारतीय वैदिक परम्परा में सोलह संस्कारों का व्यक्ति के जीवन में खास स्थान है। मृत्यु यानी अंतिम संस्कार इन्हीं में से एक है। इसके अंतर्गत मृतक के अग्नि या अंतिम संस्कार के साथ कपाल क्रिया, पिंडदान आदि किया जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, तीन या चार दिन बाद शमशान से मृतक की अस्थियों का संचय किया जाता है। सातवें या आठवें दिन इन अस्थियों को गंगा, नर्मदा या अन्य पवित्र नदी में विसर्जित किया जाता है। दसवें दिन घर की सफाई या लिपाई-पुताई की जाती है। इसे दशगात्र के नाम से जाना जाता है। इसके बाद एकादशगात्र को पीपल के वृक्ष के नीचे पूजन, पिंडदान व महापात्र को दान आदि किया जाता है। द्वादसगात्र में गंगाजली पूजन होता है। गंगा के पवित्र जल को घर में छिड़का जाता है। अगले दिन त्रयोदशी पर तेरह ब्राम्हणों, पूज्य जनों, रिश्तेदारों और समाज के लोगों को सामूहिक रूप से भोजन कराया जाता है। इसे ही मृत्युभोज कहा जाने लगा है प्रियजन की मृत्यु से परिवार बेहद दु:खी रहता था। अपने आत्मीय स्वजन की मृत्यु के दु:ख में कई बार परिवार के लोग बीमार व अशक्त तक हो जाते थे। सदमे में आत्मघाती कदम तक उठा लेते थे। ऐसा नहीं हो.. वे सदमे में नहीं रहें इसलिए व्यवस्था दी गई कि खास परिचत और रिश्तेदार मृतक के परिजनों के पास ही रहेंगे। रोज उसके साथ सादा भोजन करेंगे। उसे ढाढस बंधाएंगे ताकि उसका दु:ख व मन हलका हो जाए। बरगवां निवासी पं. स्व. एचपी तिवारी की पुस्तक में स्पष्ट लिखा है कि गरुण पुराण के अनुसार परिचितों और रिश्तेदारों को मृतक के घर पर अनाज, रितु फल, वस्त्र व अन्य सामग्री लेकर जाना चाहिए। यही सामग्री सबके साथ बैठकर ग्रहण की जाती थी। बीमारियों के कीटाणु असर न करें इसलिए किसी तरह का बघार लाना वर्जित था। उबला हुआ या फिर कंडे पर महज सादा भोजन बनाया व परोसा जाता था तेरहवीं में विद्वानों या ब्राम्हणों को खिलाने का नियम है। इसके पीछे भी रहस्य है। प्राचीन काल से ही ब्राम्हण वर्ग उस समय अधिक शिक्षित होता था। वह औषधीय हवन के साथ वेदोच्चार की तरंगों के घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार करता था। हवन उपचार के लिए इन्हें सदैव बुलाया जाता रहे, इसलिए इनके भोजन की व्यवस्था रख दी गई। तेरहवीं पर केवल गायत्री का जाप करने वाले यानी विद्वान और तपस्पी ब्राम्हणों को ही खिलाने का विधान है। ब्राम्हण कच्ची सामग्री यानी सीधा लेकर अपना भोजन खुद बनाते थे। महापात्र को दान के समय परिजनों को यह बताया जाता है कि हर व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है। परिजन शोक में पड़कर कोई आत्मघाती कदम न उठाएं इसलिए महापात्र के माध्यम से एक लोकाचार निभाकर उसे जीवन के कभी ना रुकने की सच्चाई की सीख दी जाती थी। मृत्यु के बाद दिए जाने वाले भोज में मृतक के पूज्य जनों जैसे कि गुरु, वैद्य, दामाद, समधी, बेटी व अन्य आत्मीय जनों को ही पहले भोजन कराया जाता था। उन्हें यथा शक्ति स्मृति चिन्ह दिए जाते थे। इसके पीछे रहस्य यह था कि मृतक के दुनिया से चले जाने के बाद भी उसके संबंधियों का घर से नाता बना रहे। परिवार व रिश्तेदार एकजुट रहें पर आजकल क्योंकि समाज एक अधिक मॉडर्न वर्ग हिंदू विरोधी वामपंथी मानसिकता विकसित कर चुका है जिसे महीने में दस हजार की शराब और प्रत्येक वर्ष लाख रुपए का सैर सपाटे का खर्च नहीं दुखता पर जीवन में एक बार उसके बाप के मरने पर होने वाला मृत्युभोज का खर्च दुखता है यह घोर पतन की निशानी है मित्रों के साथ रोज महंगी शराब की महफिल जमाने वाले, यूरोप और अमेरिका में छुट्टियां मनाने वाले भी खुद के सगे माता पिता के अवसान पर जोकि जीवन में एक बार आना है उसमें दस बीस हजार से मृत्युभोज नहीं देना चाहते और उसके विरुद्ध प्रस्ताव पास करते हैं कैसा घोर पतन है? कितना बचा लेगा??
बहुत बहुत धन्यवाद सर जी महत्वपूर्ण जानकारी देने के लिए मृत भोज बंद होगा और जरूर बंद होगा एक दिन में नहीं होगा लेकिन एक दिन जरूर होगा
मृत्युभोज समाज के लिए अभिशाप है। इसे समाप्त करना जरूरी है।
Trishuldhari baudh namo budhay jay bheem Jay bharat jay samvidhan Jay mulniwasee
बाबा साहब भीमराव अंबेडकर अमर रहे अमर रहे जिन्होंने हम लोगों के लिए इतना सुंदर कानून बनाया मृत्यु भोज एक दंडनीय अपराध है इससे नहीं करना चाहिए
Yeh adhiniyam 1960 me aya tha
जरुर बंद होना चाहिए।
जानकारी देने के बहुत बहुत धन्यवाद
बहुत अच्छी जानकारी दिया सर ने जय भीम नमो वुद्धाय
Jaigeetaharekrishna
बहुत अच्छी जानकारी,इस पर स्वयं भी अमल करें?👍
Trishuldhari baudh Jay bheem Jay bharat jay samvidhan namo budhay
Jay Bheem sir swrgiye Rajesh Kumar Bihar bahut aachchha video hai ji
जय भीम जय भारत जय संविधान नमो बुद्धाय
Mritubhojbandhona.chahiye
बिल्कुल सही कहा आपने मृत्यु भोज समाज के लिए एक अभिशाप है। और इसे बंद होना चाहिए।🙏🙏🙏
❤❤जय भारत ❤❤
घंटा यहा कुछ भुक्कड़ो को जलने की बू आ रही है जय भीम
Jaankari dene ke liye dhayabad..
शासन प्रशासन के लोग भी मृत्यु भोज करते हैं और दूसरों द्वारा आयोजित मृत्यु भोज में शामिल होकर जिमण भी करते हैं तो क्या शासन प्रशासन को इस अधिनियम की जानकारी में नहीं है? मृत्यु भोज ब्राह्मणों के लिये फलदायी है शायद इसलिये भी यह अधिनियम लागू नहीं हो पा रहा है।
जी मैं भी इस कुप्रथा को समाप्त देखना चाहती हूँ.. ये समाज को अंधविश्वास मे ढकेल्टी है
मृत्यु भोज किसीके नहीं फलदाई शिक्षा के आभाव में अक्ल नहीं आई
मृत्यु भोज निषेध अधिनियम 1960 के नियमों को जानकर तो कोई भी इस कुप्रथा में भागीदार नहीं होगा।
Thankyou sir for your kind information. 🙏
Sir. हमारे महाराष्ट्र मे बडे बडे मंत्री भि यही करते हैं
वह सब असंवैधानिक और मूढ व्यक्ति हैं।
@@legalreviews7284 thanks sir ji kya AAP vastushastra ko manate hai ki nahin.naya ghar bandneke bad kya pandit through gruh pravesh karana jaruri hai
@@g.p.patkaragrifarm3410
Call me 9454546585
@@g.p.patkaragrifarm3410
Call me 9454546585
Saheb bandagi Saheb bandagi Saheb bandagi sahi hai
मृत्युभोज बंद हो
जब ये कानून के खिलाफ है तो सरकार क्यू सोती है देख क्यू नही रही है
Hona chahiye
Sad दुखड़ जब दुनिया सनातन फॉलो कर रही है तो ऐसे बेहद कानून का क्या मतलब
Har EK niyam sanvidhan Ke anusar chal Raha hai to yah kyon nahin sanvidhan ko palan karoge
Very good
Sar mere yaha sarpanch hi ye karne wala hai kya karu
Mrityu bhoj must be stop...... 🤦♀️🤦♀️🤦♀️🤦♀️
It is wasteful to gather people for bhoj on died person..... 👩👩👩👩🧏♀️🧏♀️🧏♀️
मैं भी इसकी सुरुवात करूँगा
Great
Rajsthan govt. ne rok laga di hai 2019 me
Shikayat Karne wala dushman ho jayega kya iski shikayat karta ko gupt rakha ja sakta he
मृत्यु भोज पाप है
Very Good
हमारी मदत करो
Call me 9454546585
हमारे उपर मृत्यु भोज करवाने का दबाव बनाया जा रहा है, अगर हम सहयोग यानी रुपया नहीं देंगे तो हमारे हिस्से की जमीन नहीं दे रहै हैं।
Aap sdm ya tahsildar ko turant complaint kare
Aap ko dikt kay hi jiski mrje hi o kri jiske mrje nhi hi na kri koyi jbddasti nhj hi or suno tum jise logo ki wjh si duniya ktm honi wali hi
Sanvidhan ka ullanghan nahin hona chahie
Good
Yah pratha aaj tak shuru hai.
sabhi niyam kanoon sirf sanatan dharm ke liye hi he?
बिल्कुल सही क्योंकि आत्मा कल्पना है, स्वर्ग और नरक कल्पना है तो फिर मृत्यु भोज क्यों.
अवे सब कल्पना है तो भीम अंबेडकर को क्यों मानता है वो तो मर गए छोड़ सब कल्पना है
Pta nhi logo ko kb samjh aayega.... bilkul bnd hona chahiye
Phaad k phek do ye galat niyam
Ganga gi me bahaiye bhi na hi jalao nale me phek do usse bhi kya matlab hai
jibaatms chale jane k bad jo v karam kand kia jaja hai o sab galat param para hai
Isko sarkar ko kadai se lagoo karna chahiye
Jin logon Ko Apne Ghar ke vyakti ki mrutyu per Khushi Hoti hai vah mrutyu bhoj ka aayojan karte Hain
नहीं घस्सड ऐसा नहीं है
esko bandh karna bahut jaruri hai dukh k gar par galat niam abanb param para ham sab bhatbasi or budhijevio ko jar sar say ssb mil k es ku pratha ko bandh karna hai
abang sahi hai
बकवास कानून
सनातन धर्म को हमेशा दबाया गया है
हलाला क्या है
तीन तलाक क्या है
ऐसी बातो पे भी वीडियो बनाओ दम हो तो
सनातन धर्म है क्या - जानते हो ?
@@legalreviews7284 जनता भी हूँ और मानता भी हूँ तुम्हे जलन क्यों हो रही है
@@deepakmodanwal8287
सनातन का अर्थ व आशय बताओ
@@legalreviews7284 तुम ही बताओ अगर सही अर्थ पता हो तो
समाजको भय दीखाके अपना पेट का ईंतजाम करना .सनातन 😂
Bahut jyada educated hona bhi thik nhi
To app v knowledge gain kr le kyu jalan ho rhi
Tab aap log bhi kisi bhi Puran, ya fir kisi book ka reference mat Diya kijiye
सही कहा तिवारी g
षड्यंत्रों के इस युग में हो यह रहा है कि अधिकतर हिंदुओं को कुछ नहीं पता और उसे उसके शत्रु जो मीडिया संस्थानों में जमे हुए हैं उसे जो चाहे बता कर भ्रमित कर देते हैं
यह ऐसे ही है जैसे कोई किसी अनाथ के माता पिता के मरने के बाद उसकी संपत्ति उसके अबोध बालकों को मूर्ख बना कर कुछ ठगों द्वारा सस्ते में उनसे ले ली जाती है
हिंदुओं के बच्चे सेक्युलर हैं, खुद को बहुत समझदार समझते हैं, धर्मग्रंथों में उनकी कोई श्रद्धा नहीं होती, प्राचीन महान परंपरा का ज्ञान उन्हें कभी मिला नहीं, कोई धार्मिक शिक्षा पाते नहीं इसलिए वो बिना सोचे समझे मृत्युभोज जैसी सनातन वैदिक परंपरा के प्रखर विरोध पर उतर आए हैं
भारतीय वैदिक परम्परा में सोलह संस्कारों का व्यक्ति के जीवन में खास स्थान है। मृत्यु यानी अंतिम संस्कार इन्हीं में से एक है। इसके अंतर्गत मृतक के अग्नि या अंतिम संस्कार के साथ कपाल क्रिया, पिंडदान आदि किया जाता है। स्थानीय मान्यता के अनुसार, तीन या चार दिन बाद शमशान से मृतक की अस्थियों का संचय किया जाता है। सातवें या आठवें दिन इन अस्थियों को गंगा, नर्मदा या अन्य पवित्र नदी में विसर्जित किया जाता है। दसवें दिन घर की सफाई या लिपाई-पुताई की जाती है। इसे दशगात्र के नाम से जाना जाता है। इसके बाद एकादशगात्र को पीपल के वृक्ष के नीचे पूजन, पिंडदान व महापात्र को दान आदि किया जाता है। द्वादसगात्र में गंगाजली पूजन होता है। गंगा के पवित्र जल को घर में छिड़का जाता है। अगले दिन त्रयोदशी पर तेरह ब्राम्हणों, पूज्य जनों, रिश्तेदारों और समाज के लोगों को सामूहिक रूप से भोजन कराया जाता है। इसे ही मृत्युभोज कहा जाने लगा है
प्रियजन की मृत्यु से परिवार बेहद दु:खी रहता था। अपने आत्मीय स्वजन की मृत्यु के दु:ख में कई बार परिवार के लोग बीमार व अशक्त तक हो जाते थे। सदमे में आत्मघाती कदम तक उठा लेते थे। ऐसा नहीं हो.. वे सदमे में नहीं रहें इसलिए व्यवस्था दी गई कि खास परिचत और रिश्तेदार मृतक के परिजनों के पास ही रहेंगे। रोज उसके साथ सादा भोजन करेंगे। उसे ढाढस बंधाएंगे ताकि उसका दु:ख व मन हलका हो जाए। बरगवां निवासी पं. स्व. एचपी तिवारी की पुस्तक में स्पष्ट लिखा है कि गरुण पुराण के अनुसार परिचितों और रिश्तेदारों को मृतक के घर पर अनाज, रितु फल, वस्त्र व अन्य सामग्री लेकर जाना चाहिए। यही सामग्री सबके साथ बैठकर ग्रहण की जाती थी। बीमारियों के कीटाणु असर न करें इसलिए किसी तरह का बघार लाना वर्जित था। उबला हुआ या फिर कंडे पर महज सादा भोजन बनाया व परोसा जाता था
तेरहवीं में विद्वानों या ब्राम्हणों को खिलाने का नियम है। इसके पीछे भी रहस्य है। प्राचीन काल से ही ब्राम्हण वर्ग उस समय अधिक शिक्षित होता था। वह औषधीय हवन के साथ वेदोच्चार की तरंगों के घर में सकारात्मक ऊर्जा का प्रसार करता था। हवन उपचार के लिए इन्हें सदैव बुलाया जाता रहे, इसलिए इनके भोजन की व्यवस्था रख दी गई। तेरहवीं पर केवल गायत्री का जाप करने वाले यानी विद्वान और तपस्पी ब्राम्हणों को ही खिलाने का विधान है। ब्राम्हण कच्ची सामग्री यानी सीधा लेकर अपना भोजन खुद बनाते थे। महापात्र को दान के समय परिजनों को यह बताया जाता है कि हर व्यक्ति की मृत्यु निश्चित है। परिजन शोक में पड़कर कोई आत्मघाती कदम न उठाएं इसलिए महापात्र के माध्यम से एक लोकाचार निभाकर उसे जीवन के कभी ना रुकने की सच्चाई की सीख दी जाती थी।
मृत्यु के बाद दिए जाने वाले भोज में मृतक के पूज्य जनों जैसे कि गुरु, वैद्य, दामाद, समधी, बेटी व अन्य आत्मीय जनों को ही पहले भोजन कराया जाता था। उन्हें यथा शक्ति स्मृति चिन्ह दिए जाते थे। इसके पीछे रहस्य यह था कि मृतक के दुनिया से चले जाने के बाद भी उसके संबंधियों का घर से नाता बना रहे। परिवार व रिश्तेदार एकजुट रहें
पर आजकल क्योंकि समाज एक अधिक मॉडर्न वर्ग हिंदू विरोधी वामपंथी मानसिकता विकसित कर चुका है जिसे महीने में दस हजार की शराब और प्रत्येक वर्ष लाख रुपए का सैर सपाटे का खर्च नहीं दुखता पर जीवन में एक बार उसके बाप के मरने पर होने वाला मृत्युभोज का खर्च दुखता है
यह घोर पतन की निशानी है
मित्रों के साथ रोज महंगी शराब की महफिल जमाने वाले, यूरोप और अमेरिका में छुट्टियां मनाने वाले भी खुद के सगे माता पिता के अवसान पर जोकि जीवन में एक बार आना है उसमें दस बीस हजार से मृत्युभोज नहीं देना चाहते और उसके विरुद्ध प्रस्ताव पास करते हैं
कैसा घोर पतन है?
कितना बचा लेगा??
Ji bilkul tum jaise anpadho gavar ke liye 😂😂