संजयश्रुत गीता सोलहवाँ अध्याय देवासुर सम्पद ।

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  • Опубликовано: 22 сен 2024

Комментарии • 11

  • @uddhavaborgaonkar189
    @uddhavaborgaonkar189 2 месяца назад

    ॐश्री... अतिसुंदर विवेचन दैवी प्रवृत्ति और असुरी प्रवृत्ति के बीच. त्याग, सत्य और सहिष्णुता व भक्ति योग का अनुसरण करते हुए दैवी प्रवृत्ति को अंगीकार कर अपना जीवन उद्धरण कर सकता है.
    जय जय श्री राधेकृष्ण राधेकृष्ण राधेकृष्ण ॐ 🌹 🙏 🌹

  • @shrutisudhaaryaarya1986
    @shrutisudhaaryaarya1986 2 месяца назад

    अति शोभनीय जय श्री कृष्णा ❤❤❤❤🎉🎉🎉

  • @manuYadav-qw3lt
    @manuYadav-qw3lt 2 месяца назад +1

    Vohut hi sunder

  • @raikwarsuresh
    @raikwarsuresh 2 месяца назад

    सोलहवें अध्याय में भगवान ने दैवीय एवं आसुरी संपदवालों के लक्षण और उनकी गति का कथन किया है। हरि भैया के गायन और आवाज ने इस उपदेश को बहुत सरस सहज और सरल बना दिया है।
    धन्यवाद आदरणीय हरि भैया।

  • @bkraikwar4008
    @bkraikwar4008 2 месяца назад

    अति सुंदर जयश्री राम

  • @vanmalabobra1077
    @vanmalabobra1077 2 месяца назад

    हमेशा की तरह बहुत ही सुंदर और अनुकरणीय

  • @vikramsinghchouhan9249
    @vikramsinghchouhan9249 2 месяца назад

    बहुत सुंदर श्रवणीय अनुकरणीय संदेश,जय श्री कृष्ण 🌹🙏

  • @gopendramalviya8730
    @gopendramalviya8730 2 месяца назад

    अति कर्णप्रिय मनमोहक 🎉❤

  • @dilipjain315
    @dilipjain315 2 месяца назад

    Bahut sundar

  • @vanmalabobra1077
    @vanmalabobra1077 2 месяца назад

    Ati sundar aur karnpriy

  • @gopendramalviya8730
    @gopendramalviya8730 2 месяца назад

    अतिउत्तम 🎉🎉❤❤