| Osho Geeta Darshan 1&2 2 Of Dis. 07 | गीता दर्शन अ. १व२ प्रव. ०७ का २ |

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  • Опубликовано: 20 окт 2024
  • | Osho Geeta Darshan 1&2 2 Of Dis. 07 | गीता दर्शन अ. १व२ प्रव. ०७ का २ |@CrazyLovingSoul-qw4qj
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    प्रवचन 7 : भागना नहीं- जागना है
    ओशो - गीता-दर्शन - भाग एक
    अध्याय-1-2 - प्रवचन 2#7 : भागना नहीं- जागना है
    प्रश्न :
    भगवान श्री, नथिंगनेस वर्सेस एवरीथिंगनेस में आप कभी आपके प्रवचन में भागना और जागना जो प्रयोग करते हैं, तो मैं उससे भागूं या जागूं? इससे उसको क्या मतलब है? इसमें क्या एफर्ट का तत्व नहीं आता? और टोटल एक्सेप्टिबिलिटी में ईविल का क्या स्थान होता है?
    प्रश्न :
    भगवान श्री, आप यह तो कहेंगे न कि जागना भी भागने का शीर्षासन है? इतना तो एफर्ट करना पड़ेगा!
    अन्तवन्त हमे देहा नित्यस्योक्ताः शरीरिणः ।
    अनाशिनोऽप्रमेयस्य तस्माद्‌युध्यस्व भारत ।।18।।
    और हम नाशरहित, अप्रमेय, नित्यस्वरूप, जीवात्मा के ये शरीर नाशवान कहे गए हैं। इसलिस हे भरतवंशी अर्जुन, तू युद्ध कर।
    य एनं वेत्ति हन्तारं यश्चैनं मन्यते हतम् ।
    उभौ तो न विजानीतो नायं हन्ति न हन्यते।।19।1
    और जो हल आत्मा को मारने वाला समझता है। तथा जो हमको मरा मानता है, वे दोनों ही नहीं जानते हैं। क्योंकि यह आत्मा न मारता है और न मारा जाता है।
    गीता अनूठी है। सारे खोजियों का सार अर्जुन है और खोज लेने वालों का सार कृष्ण हैं।"
    -ओशो
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