होवे रे डीघी डीघी पाळ समंद री तलवे जल जमुना रो नीर, हाँ होवे रे पाळ चढ़े गुरु नो मैं जोवियो रे सतगुरु त्रमणा री सीर, हाँ होवे रे आज साहिब मौं घर प्रामणा रे हिवड़े सुख बरसे आनंद, हाँ होवे रे केसर गार गढ़ावना रे मोतीड़ा रो चौक पुराऊं, हाँ होवे रे चंदन रो चौक गुरु रो बैसनो दूध पगा ना गुरु रा पाऊं, हाँ होवे रे आज साहिब होवे रे आँगन रोपाऊं एलची रे वध रही अमर बेल, हाँ होवे रे फूलड़ा रो मुकुट बनावनो रे हिवड़े रे कूंपळ मेल, हाँ होवे रे आज साहिब होवे रे तीन लोक हरि नो मैं जोवियो रे हरि मेल्या नेड़ा नजीक, हाँ होवे रे भगत मुगत रे कारणे रे कह गया दास कबीर हाँ होवे रे आज साहिब 🌷🌷🌷🌷🌷
सतगुरु तथागत गौतम बुद्ध ने इस संसार में गुरु शिष्य परम्परा शुरू की जिससे शुरू हुई संतो की अमर बेल। गोरखनाथ इसी अमर बेल में एक बौद्ध संत हुए जो कि सतगुरु बुद्ध से सत्रह सौ साल बाद हुए। मेघवाल समाज भले ही भूल गया अपने सतगुरु बुद्ध को लेकिन फिर भी बौद्ध धम्म वाणी भजनो के माध्यम से गाता रहा और बड़े बड़े संत इस समाज में होते रहे। कबीर, रैदास से भी पहले चौदहवीं सदी तीन बड़े संत हुए इस समाज में डाली बाई, रामदेवजी और खींवण जी। फिर राजस्थान के मेघवाल डाली बाई और रामदेवजी को गुरु मानकर बुद्ध के धम्म को आगे बढ़ाते रहे। फिर पन्द्रहवीं सदी में इस समाज में उत्तर प्रदेश में संत शिरोमणि रविदास जी और कबीर दास जी हुए। कबीर दास जी भी इसी समाज में पैदा हुए जो दलित मुस्लिम बन गये थे और कपड़े का काम करते थे उनमें। दरअसल कपड़े बुनने का काम ही मूल काम था इस समाज का लेकिन मुगल काल में चमड़े का व्यवसाय जोरों सोरों से शुरू हुआ तो गरीबी की वजह से इस समाज के लोगों ने चमड़े का काम भी शुरू कर दिया। बौद्धमय भारत में बौद्ध धम्म को चलाने वाले मुख्य बौद्ध यही मेघवाल समाज था जिसको कि तेरहवीं चौहदवीं सदी में षड्यंत्र के तहत अछूत बनाकर समाज से बहिष्कृत कर दिया गया ताकि बौद्ध धम्म को खत्म किया जा सके। आम बौद्ध जनता को शुद्र बनाकर गुलाम बना दिया गया जो कि आज ओबीसी वर्ग में आते हैं। इन समस्त बौद्धों को शिक्षा से भी वंचित कर दिया गया ताकि ये लोग अपने धर्म, संस्कृति और इतिहास को भूल जाए। परिणामस्वरूप यह समाज बुद्ध को भूल गया, अपने धर्म का नाम भूल गया लेकिन बुद्ध के धम्म को नहीं भूला। बौद्ध धम्म वाणी इस मेघवाल समाज सत्संग के माध्यम से चलती रही। सारे भजन बुद्ध के धम्मपद पर आधारित ही होते थे। इस समाज के पूराने नाम चौदहवीं पन्द्रहवीं सदी तक कहीं कहीं आदि धर्मी होता था तो कहीं ऋषिया होता था तो कहीं ऋषि होता था। क्योंकि इस समाज में ऋषि यानी बौद्ध संतो साधुओं की भरमार होती थी। जैसे जोगी समाज होता है वो भी बौद्ध संत ही थे। मेघवाल समाज को आदि धर्मी क्यों कहा जाता था क्योंकि जब लोग नये बने वैदिक धर्म को मानने लग गये थे, हिन्दू बन गये थे तब भी ये समाज बौद्ध ही था जो कि हजारों सालों से चला आ रहा था इसलिए हिन्दू और मुस्लिम लोग इस समाज को आदि धर्मी बोलते थे। बौद्ध भिक्षुओं की भरमार होने की वजह से ऋषिया या ऋषि भी कहा जाता था इस समाज को। मुझे तो तब आश्चर्य हुआ जब मैं अठारह साल का था सन् 2000 में तब एक दिन मेरे दादाजी ने बताया कि अपने सत्संग में सारे भजन अपने शरीर पर ध्यान लगाने से संबंधित गाये जाते हैं, अपने मन को पवित्र करने के लिए गहरे ज्ञान पर गाये जाते हैं। मैंने पूछा दादाजी से भगवान के होते हैं ना भजन तो? दादाजी ने फटाक से व धीरे से बोलकर कहा कि किसी को कुछ बताना मत ये मंदिर, मस्जिद, तीर्थ, भगवान, शिव, विष्णु, राम, कृष्ण, गणेश सब माया जाल है और लोग इस मायाजाल में फंसे हुए हैं। मैं कृष्ण का भक्त था। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि अब तक यही पढ़ते सुनते आया हूं कि भगवान के भजन गाये जाते हैं और भगवान की भक्ति की जाती है और दादाजी तो इस सब को मायाजाल बता रहे हैं और सारे भजन अपने शरीर पर ध्यान करने से संबंधित होते हैं, सांस की माला जो अपने आप फिर रही है इसको देखना होता है, मन को अपने वश में करना, पवित्र करना आदि से संबंधित ही होते हैं भजन जो अपने समाज में सत्संग में गाते हैं। यह सब बातें सुनकर मुझे बहुत ज्यादा आश्चर्य हुआ कि मेरे दादाजी जिनको लोग संत की तरह समझते थे और मैं खुद उनको भगवान का बड़ा भक्त समझता था लेकिन उन्होंने तो भगवान को एक मायाजाल बता दिया और उसमें नहीं पड़ने की सलाह दी। अपनी पढ़ाई के भार की वजह से धीरे धीरे ये बातें मेरे दिमाग में साइड हो गई। 2012 में दादाजी का देहांत हो गया। मेरे सरकारी नौकरी लग गई और फिर 2017 से जब मैं बुद्ध के बारे में जानने लगा, बुद्ध के धम्म के बारे में जानने लगा, विपस्सना ध्यान के बारे में जाना तो मुझे सत्रह साल पहले मेरे दादाजी की कही बातें याद आईं। तब मैंने हमारे समाज के इतिहास को जानने के लिए हमारे महापुरुषों द्वारा लिखित भारत का सच्चा इतिहास ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर लिखा हुआ पढ़ा तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। हमारा नाता तथागत बुद्ध से। कबीर, रैदास का मार्ग भी बुद्ध का ही मार्ग। डाली बाई और रामदेवजी का मार्ग भी बुद्ध का ही मार्ग। ये तो झूठा जोड़ा गया हमारे संतों महापुरुषों, बौद्ध संतो को हिंदू देवी-देवताओं से, भगवानों से।
होवे रे डीघी डीघी पाळ समंद री
तलवे जल जमुना रो नीर, हाँ
होवे रे पाळ चढ़े गुरु नो मैं जोवियो रे
सतगुरु त्रमणा री सीर, हाँ
होवे रे आज साहिब मौं घर प्रामणा रे
हिवड़े सुख बरसे आनंद, हाँ
होवे रे केसर गार गढ़ावना रे
मोतीड़ा रो चौक पुराऊं, हाँ
होवे रे चंदन रो चौक गुरु रो बैसनो
दूध पगा ना गुरु रा पाऊं, हाँ
होवे रे आज साहिब
होवे रे आँगन रोपाऊं एलची रे
वध रही अमर बेल, हाँ
होवे रे फूलड़ा रो मुकुट बनावनो रे
हिवड़े रे कूंपळ मेल, हाँ
होवे रे आज साहिब
होवे रे तीन लोक हरि नो मैं जोवियो रे
हरि मेल्या नेड़ा नजीक, हाँ
होवे रे भगत मुगत रे कारणे रे
कह गया दास कबीर हाँ
होवे रे आज साहिब
🌷🌷🌷🌷🌷
सतगुरु तथागत गौतम बुद्ध ने इस संसार में गुरु शिष्य परम्परा शुरू की जिससे शुरू हुई संतो की अमर बेल।
गोरखनाथ इसी अमर बेल में एक बौद्ध संत हुए जो कि सतगुरु बुद्ध से सत्रह सौ साल बाद हुए।
मेघवाल समाज भले ही भूल गया अपने सतगुरु बुद्ध को लेकिन फिर भी बौद्ध धम्म वाणी भजनो के माध्यम से गाता रहा और बड़े बड़े संत इस समाज में होते रहे। कबीर, रैदास से भी पहले चौदहवीं सदी तीन बड़े संत हुए इस समाज में डाली बाई, रामदेवजी और खींवण जी। फिर राजस्थान के मेघवाल डाली बाई और रामदेवजी को गुरु मानकर बुद्ध के धम्म को आगे बढ़ाते रहे। फिर पन्द्रहवीं सदी में इस समाज में उत्तर प्रदेश में संत शिरोमणि रविदास जी और कबीर दास जी हुए। कबीर दास जी भी इसी समाज में पैदा हुए जो दलित मुस्लिम बन गये थे और कपड़े का काम करते थे उनमें। दरअसल कपड़े बुनने का काम ही मूल काम था इस समाज का लेकिन मुगल काल में चमड़े का व्यवसाय जोरों सोरों से शुरू हुआ तो गरीबी की वजह से इस समाज के लोगों ने चमड़े का काम भी शुरू कर दिया।
बौद्धमय भारत में बौद्ध धम्म को चलाने वाले मुख्य बौद्ध यही मेघवाल समाज था जिसको कि तेरहवीं चौहदवीं सदी में षड्यंत्र के तहत अछूत बनाकर समाज से बहिष्कृत कर दिया गया ताकि बौद्ध धम्म को खत्म किया जा सके। आम बौद्ध जनता को शुद्र बनाकर गुलाम बना दिया गया जो कि आज ओबीसी वर्ग में आते हैं। इन समस्त बौद्धों को शिक्षा से भी वंचित कर दिया गया ताकि ये लोग अपने धर्म, संस्कृति और इतिहास को भूल जाए। परिणामस्वरूप यह समाज बुद्ध को भूल गया, अपने धर्म का नाम भूल गया लेकिन बुद्ध के धम्म को नहीं भूला। बौद्ध धम्म वाणी इस मेघवाल समाज सत्संग के माध्यम से चलती रही। सारे भजन बुद्ध के धम्मपद पर आधारित ही होते थे।
इस समाज के पूराने नाम चौदहवीं पन्द्रहवीं सदी तक कहीं कहीं आदि धर्मी होता था तो कहीं ऋषिया होता था तो कहीं ऋषि होता था। क्योंकि इस समाज में ऋषि यानी बौद्ध संतो साधुओं की भरमार होती थी। जैसे जोगी समाज होता है वो भी बौद्ध संत ही थे। मेघवाल समाज को आदि धर्मी क्यों कहा जाता था क्योंकि जब लोग नये बने वैदिक धर्म को मानने लग गये थे, हिन्दू बन गये थे तब भी ये समाज बौद्ध ही था जो कि हजारों सालों से चला आ रहा था इसलिए हिन्दू और मुस्लिम लोग इस समाज को आदि धर्मी बोलते थे। बौद्ध भिक्षुओं की भरमार होने की वजह से ऋषिया या ऋषि भी कहा जाता था इस समाज को।
मुझे तो तब आश्चर्य हुआ जब मैं अठारह साल का था सन् 2000 में तब एक दिन मेरे दादाजी ने बताया कि अपने सत्संग में सारे भजन अपने शरीर पर ध्यान लगाने से संबंधित गाये जाते हैं, अपने मन को पवित्र करने के लिए गहरे ज्ञान पर गाये जाते हैं। मैंने पूछा दादाजी से भगवान के होते हैं ना भजन तो? दादाजी ने फटाक से व धीरे से बोलकर कहा कि किसी को कुछ बताना मत ये मंदिर, मस्जिद, तीर्थ, भगवान, शिव, विष्णु, राम, कृष्ण, गणेश सब माया जाल है और लोग इस मायाजाल में फंसे हुए हैं। मैं कृष्ण का भक्त था। मुझे आश्चर्य हो रहा था कि अब तक यही पढ़ते सुनते आया हूं कि भगवान के भजन गाये जाते हैं और भगवान की भक्ति की जाती है और दादाजी तो इस सब को मायाजाल बता रहे हैं और सारे भजन अपने शरीर पर ध्यान करने से संबंधित होते हैं, सांस की माला जो अपने आप फिर रही है इसको देखना होता है, मन को अपने वश में करना, पवित्र करना आदि से संबंधित ही होते हैं भजन जो अपने समाज में सत्संग में गाते हैं। यह सब बातें सुनकर मुझे बहुत ज्यादा आश्चर्य हुआ कि मेरे दादाजी जिनको लोग संत की तरह समझते थे और मैं खुद उनको भगवान का बड़ा भक्त समझता था लेकिन उन्होंने तो भगवान को एक मायाजाल बता दिया और उसमें नहीं पड़ने की सलाह दी। अपनी पढ़ाई के भार की वजह से धीरे धीरे ये बातें मेरे दिमाग में साइड हो गई। 2012 में दादाजी का देहांत हो गया। मेरे सरकारी नौकरी लग गई और फिर 2017 से जब मैं बुद्ध के बारे में जानने लगा, बुद्ध के धम्म के बारे में जानने लगा, विपस्सना ध्यान के बारे में जाना तो मुझे सत्रह साल पहले मेरे दादाजी की कही बातें याद आईं। तब मैंने हमारे समाज के इतिहास को जानने के लिए हमारे महापुरुषों द्वारा लिखित भारत का सच्चा इतिहास ऐतिहासिक साक्ष्यों के आधार पर लिखा हुआ पढ़ा तो मेरे पैरों तले जमीन खिसक गई। हमारा नाता तथागत बुद्ध से। कबीर, रैदास का मार्ग भी बुद्ध का ही मार्ग। डाली बाई और रामदेवजी का मार्ग भी बुद्ध का ही मार्ग। ये तो झूठा जोड़ा गया हमारे संतों महापुरुषों, बौद्ध संतो को हिंदू देवी-देवताओं से, भगवानों से।
चूका चूका महेशजी
हरे हरे
Very good work. These type of channels are needed more.
वाह साहब जी
जय श्री राम सियाराम सियाराम जय श्री कृष्ण जय सत् गुरूजी SR. JI
very sweet bhajan jai ho
Adhbhoot
by listening to it really felt like raining of bliss
☁🎈🎈☁🎈🎈☁
🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈
🎈🎈🎈🎈🎈🎈🎈
☁🎈🎈🎈🎈🎈☁
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☁☁☁🎈☁☁☁
Nice bhajan by Mahesha Ram ji
very nice bhajan
sat sahib
Kindly add lyrics of the bhajan
It directly touches..peace n only peace ....
Very very nice
nice bhajan
बहुत ही, अछा. ह
nice
BHANWAR SINGH RAWLOT.
Jmj sa
om shanti shanti very toching
मधुरी राग
bala ram bhajan badiya
nice bhajan