पार्ट-2 भजन कपि हनुमान बलवान, स्व.चिरंजीलालजी पुजारी द्वारा

Поделиться
HTML-код
  • Опубликовано: 13 сен 2024
  • lyrics पार्ट - 2
    कपि हनुमान बलवान
    संगीत-
    हाथ जोड़ के हनुमत बोल्या सूण माता मेरी चित ल्याय,
    जल्दी रामचंद्र आवेंगे अपनी ल्याव फौज सजाय,
    गढ़ लंका को तोड़ मात फिर रावण को दे गरद मिलाय,
    अभी मात मे तुझे ले ज्याता इसमे झूठ समझीयो नाय,
    लंक तोड़ सागर मे गेरद्यु रावण कील्यू मुस्क बँधाय,
    इतना काम करूँ ना डरता हुकम राम का मुझको नाय,
    जनक नंदिनी कहने लागी सून बेटा मेरी चित ल्याय,
    यहाँ पर दाना बहुत जबर है सारा जगत रहया थरराय,
    पवन बुहारी दे लंका म मृत्यु पड़ी कुंवें क माय,
    इंद्र रोज यहाँ भरे हाजरी मेघ रोज जल भर कर जाय,
    तू छोटा सा बांदर दिखे यहाँ से जिता कैसे जाय,
    अब क्या जतन करूँ म तेरा चिंता भई बदन क माय,
    इतना वचन सुण्या माता का निज स्वरूप जब दिया दिखाय,
    सोने के सुमेर गिरी नैण हुग्या लाल लाल,
    भयंकर सा रूप देख्या राक्षसां का देख्या काल,
    लंका के सम्मुख चाले कभी भी करे ना ताल,
    ऐसा जब रूप देख्या सिया मन आयो धीर,
    पास बुला के कहने लागी धन धन महावीर,
    सब गुण बसो तो में कृपा करो रघुवीर-3॥
    उठाव- देख सुंदर फल रूंख लगी तन भूख मौसमी केला न्यारा॥
    कपि हनुमान…..॥4॥
    संगीत-
    आज्ञा लेकर चल्यो बाग म अच्छा अच्छा फल खाया,
    आम संतरा और नारंगी जामुन मौसमी मन भाया,
    सारा बाग लगा दिया उन्दा सुरड़ बाग का फलखाय
    रखवारा जब बरजन लाग्या पड़ी मार व्याकुल काया,
    दूता जाय कही रावण न बानर एक जबर आया,
    सारा बाग लगा दिया उन्दा सुरड़ बाग का फलखाया,
    इतना बचन सुण्या रावण न अक्षयकुमर को भिजवाया,
    ताड़ वृक्ष न पाड़ बली न अक्षयकुमार को छितकाया,
    पड़ी मार जद व्याकुल होग्या विकल भयी उनकी काया,
    दूता जाय कही रावण न अक्षय कुमार मुक्ति पाया,
    हो भयभीत सूण इंद्रजित बंदर समीप पहूँच्यो जाई,
    ल्याऊँगा पकड़ काढ़ूँगा अकड़ और करड़ी जकड़ दयूँगा लगाई,
    चाल्यो मेघनाथ ले सेन्य साथ अब उसी स्यात् पहुँचा जाई,
    मेघनाथ का बाण चाल्या छूटण लाग्या सररर,
    धरती म सरनातो माच्यो रटन लागी हररररर,
    हनुमान किलकारी मारी होवन लागी करररर,
    राक्षसा का प्राण पंछी उड़बा लाग्या फरररर,
    मेघनाथ क मुक़ा मारया धरनी पड्यो धररररर-3॥
    उठाव- उठा जो मेघनाद बाण ले हाथ ओ बाण ब्रह्म कपि के मारया॥
    कपि हनुमान…..॥5॥
    उठाव- वा थी ब्रह्म की फाँस हरि का दास पकड़ बलदाई,
    यूँ कर मन म अहंकार सभा बीच ल्याई।
    जहाँ बैठा था दसशीश भुजा थी बिस रीस तन छाई,
    सूण ओ बंदर अज्ञान मौत तेरी आई॥
    ढाल- तेरा तपसी कद आवे ला, तेरा आज प्राण ज्याव ला।
    मूर्ख तूं पछताव गा फल करनी का पाव गा॥
    संगीत-
    फल करनी का पावे रावण सूण रावण बोल्यो बाणी,
    शेष शीश पर धरा धरी है जिनका बल सूण अभिमानी
    थोड़ा सा बल तेरे म आ गया जीत लई जुग रजधानी,
    सिया मात को हर कर ल्याया डुब गया तू बीन पानी,
    जिस समंदर का जोर करे तू नही बूँद दिखे पानी,
    इतना वचन सूण्यां रावण ने काढ़ खड़क मारण ध्याया,
    रावण को समझावण कारण सभा विभीषण चल आया,
    नीति विरोधी मत कर राजा दुत मारण नही बतलाया,
    इतना वचन सूण्यां रावण न रुई तेल जब मँगवाया,
    रुई तेल का मेल मिला के अग्नि पुँछक लिपटाया,
    उठी लाट अग्नि की जलकर धप धप कर लंका म जाये,
    धक-धक करता धुंआ जो निकले जल-जल कर लंका जल ज्याय,
    भगी नार लाचार होय के जब अग्नि की देखी लाट,
    उँट भेंस खच्चर और घोड़ी चरती बकरी जलगी टांट,
    बुरी सभा रावण कि जलगी राज तख़्त और जलग्या कोट,
    राक्षसण्यां का जल्या चोटला दाना का सब बलग्या होठ,
    कितना हाहाकार पुकारे कितना गया घर पर लौट,
    कितना भाग गया लंका से दिल अपने का त्यागा खोट,
    सन नन नन नन हवा चाले संकार,
    धप धप धप धप अग्नि बीच धपकार,
    जल जल जल राक्षसां की होगी हार-3॥
    उठाव- दीनी है लंक जलाय हंस्यो किलकार ध्यान सियावर का ध्याया
    है॥कपि हनुमान……॥6॥
    संगीत- काल बुला कर रावण बोल्यो जाओ कपि न ल्याओ मार,
    काल चालकर पास गया तब हनुमत लीना मुख मे डाल,
    देवन आके करी विनती मुख से पाछो दियो निकाल,
    मेघ बुलाके रावण बोला तुम जा बरसो जल की धार,
    मेघ चालके पास गया तब हनुमत मारी पुँछ की मार,
    भाग्यो मेघ जब कायर होके अब रावण होग्यो लाचार,
    उलट पुलट कर लंका जारी घर भगता का दिया उबार,
    पुँछ बुझान गयो सिंधु पर पुँछ बुझाई हो हूँशियार,
    सिया मात के गयो बाग म पड्यो चरन म बारम्बार,
    चूड़ामणि वहाँ से लेके ध्यायो सिया मात को धरके ध्यान,
    गौऊं खोज यूं समंदर लांघ्यो सौ योजन मायी परवान,
    जामवंत संग अंगद लेके पहुँच गए जहाँ थे भगवान,
    रावण की गढ़ लंका बँका देखी आयो सिया मात,
    चरणां में लगाया ध्यान रट रही सूरतात,
    सेना न सजाय लेवो जल्दी चालो रघुनाथ,
    इतना वचन सूण रघुनाथ ने हर्ष किया,
    अक्षोहिणी अठारह दल सभी न हुक्म दिया,
    पीथा राम कथ गावे प्रभुजी का सरना लिया- 3॥
    उठाव- अब सेना सजी है असंख्य दूजी गढ़ लंक समुंद्र पर डेरा डारया।
    कपि हनुमान…….॥7॥
    ॥समाप्त॥

Комментарии • 1