भीलवाड़ा रेल्वे स्टेशन, श्री हठीले हनुमान जी Bhilwara Railway Station

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  • Опубликовано: 26 июл 2021
  • ‪@thikhaikhedyanga3685‬
    भीलवाड़ा रेल्वे स्टेशन के बाहर है यह मंदिर, यहाँ हनुमान जी के दिव्य दर्शन किये. भगवान् शिव के भी दिव्य दर्शन किये.
    दीवारों पर बनी फड़ चित्र कला को भी देखा
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    दोहा
    श्रीगुरु चरन सरोज रज, निज मन मुकुर सुधारि।
    बरणौ रघुबर बिमल यश, जो दायक फल चारि।।
    बुद्धिहीन तनु जानिकै, सुमिरौं पवन कुमार।
    बल बुधि बिद्या देहु मोहि, हरहु कलेस बिकार।।
    चौपाई :
    जय हनुमान ज्ञान गुन सागर। जय कपीस तिहुँ लोक उजागर।।-1
    रामदूत अतुलित बल धामा। अंजनि पुत्र पवनसुत नामा।।-2
    महाबीर बिक्रम बजरंगी। कुमति निवार सुमति के संगी।।-3
    कंचन बरण बिराज सुबेशा। कानन कुण्डल कुञ्चित केसशा।।-4
    हाथ बज्र अरु ध्वजा बिराजै। काँधे मूंज जनेऊ छाजै ।।-5
    शंकर स्वयं केशरीनन्दन। तेज प्रताप महा जग बन्दन।।-6
    विद्यावान गुणी अति चातुर। राम काज करिबे को आतुर।।-7
    प्रभु चरित्र सुनिबे को रसिया। राम लखन सीता मन बसिया।।-8
    सूक्ष्म रूप धरि सियहिं दिखावा। बिकट रूप धरि लंक जरावा।।-9
    भीम रूप धरि असुर संहारे। रामचंद्र के काज संवारे।।-10
    लाय सजीवन लषन जियाये। श्रीरघुबीर हरषि उर लाये।।-11
    रघुपति कीन्ही बहुत बड़ाई। तुम मम प्रिय भरत सम भाई।।-12
    सहस बदन तुम्हरो यश गायो। अस कहि श्रीपति कंठ लगायो।।-13
    सनकादिक ब्रह्मादि मुनीशा। नारद शारद सहित अहीशा।।-14
    यम कुबेर दिगपाल जहांते। कबि कोबिद कहि सकै कहांते।।-15
    तुम उपकार सुग्रीवहि कीन्हा। राम मिलाय राज पद दीन्हा।।-16
    तुम्हरो मंत्र बिभीषण माना। लंकेश्वर भये सब जग जाना।।-17
    युग सहस्र योजन पर भानू। लील्यो ताहि मधुर फल जानू।।-18
    प्रभु मुद्रिका मेल मुख माही। जलधि लांघि गये अचरज नाही।।-19
    दुर्गम काज जगत के जेते। सुगम अनुग्रह तुम्हरे तेते।।-20
    राम दुआरे तुम रखवारे। होत न आज्ञा बिन पैसारे।।-21
    सब सुख लहै तुम्हारी शरना। तुम रक्षक काहू को डरना।।-22
    आपन तेज सम्हारो आपै। तीनों लोक हाँक तें कांपै।।-23
    भूत पिशाच निकट नहि आवै। महाबीर जब नाम सुनावै।।-24
    नाशै रोग हरै सब पीरा। जपत निरन्तर हनुमत बीरा।।-25
    संकट से हनुमान छुड़ावें। मन क्रम बचन ध्यान जो लावें।।-26
    सबपर राम राय सिर ताजा। तिनके काज सकल तुम साजा।।-27
    और मनोरथ जो कोई लावै। तासु अमित जीवन फल पावै।।-28
    चारों युग परताप तुम्हारा। है परसिद्ध जगत उँजियारा।।-29
    साधु सन्त के तुम रखवारे। असुर निकन्दन राम दुलारे।।-30
    अष्ट सिद्ध नव निधि के दाता। अस बर दीन जानकी माता।।-31
    राम रसायन तुम्हरे पासा। सादर तुम रघुपति के दासा।।-32
    तुम्हरे भजन राम को भावै। जनम-जनम के दुख बिसरावै।।-33
    अन्तकाल रघुबर पुर जाई। जहाँ जन्म हरि भक्त कहाई।।-34
    और देवता चित्त न धरई। हनुमत सेइ सर्ब सुख करई।।-35
    संकट टरै मिटै सब पीरा। जो सुमिरै हनुमत बलबीरा।।-36
    जै जै जै हनुमान गोसाईं। कृपा करहु गुरुदेव की नाईं।।-37
    यह शत बार पाठ कर जोई। छूटहि बन्दि महा सुख होई।।-38
    जो यह पढ़ै हनुमान चालीसा। होय सिद्धि साखी गौरीशा।।-39
    तुलसीदास सदा हरि चेरा। कीजै नाथ हृदय महँ डेरा।।-40
    दोहा
    पवन तनय संकट हरन, मंगल मूरति रूप ।
    राम लषन सीता सहित, ह्रदय बसहु सुर भूप ।।

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