सपने में मिली रहस्यमयी मूर्ति जो आज विश्व प्रसिद्ध है अन्नदा ठाकुर_ Gyanganj_ Siddhashram mystery
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- Опубликовано: 29 янв 2025
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प्रकृति ईश्वर है, प्रकृति ही माँ है I
मित्रों अभी कुछ दिन पहले किसी ने मुझसे कहा कि भाई आज से मैं मंदिरों में भगवान की पूजा नहीं करूँगा, आज से मैं प्रकृति की पूजा करूँगा| मैंने कहा यह तो अच्छी बात है, प्रकृति ईश्वर ही तो है| किन्तु मंदिर में रखी पत्थर की मूरत भी तो प्रकृति है| क्या पत्थर प्रकृति की देन नहीं है? और फिर हम तो मानते हैं कि कण-कण में ईश्वर है, तो यह ईश्वर जब प्रकृति में है तो उस पत्थर में क्यों नहीं हो सकता?
आरम्भ में ही आपको बता देना चाहता हूँ कि आप यहाँ शीर्षक पढ़ कर अनुमान न लगाएं| मै यहाँ किसी धर्म, वर्ण, जाति, सम्प्रदाय आदि की आलोचना नहीं करूँगा| क्योंकि मेरे देश की सभ्यता एवं संस्कारों ने मुझे ऐसा नहीं सिखाया| किन्तु अपनी संस्कृति का गुणगान अवश्य करूँगा जिस पर मुझे गर्व है| झूठ कहते हैं वे लोग जो किसी आस्था के उदय को अपनी आस्था के पतन का कारण मानते हैं| कोई एक सम्प्रदाय यदि आगे है तो हमारा सम्प्रदाय खतरे में है ऐसा कहना गलत है| हमारी आस्था का पतन हो रहा है यह कहना गलत है| तुम्हारी आस्था के पतन का कारण तुम स्वयं हो, हमारी आस्था के पतन का कारण हम स्वयं हैं| आस्था तुम्हारी है, फिर वह डिग कैसे सकती है और यदि तुम्हे अपनी आस्था में ही आस्था नहीं है, विशवास नहीं है तो इसमें हमारा क्या दोष? यदि आज तुम असुरक्षा का अनुभव कर रहे हो तो कारण बाहर नहीं भीतर है और यही पतन का कारण है| यदि तुम्हारी आस्था में कोई सत्य का आधार ही नहीं है तो उसका पतन हो जाना चाहिए| सत्य तक पहुँचने के भिन्न-भिन्न मार्ग हो सकते हैं| हमारे मार्ग पर जो हमारे साथ नहीं उसके मार्ग को गलत कहना अनुचित है| सम्प्रदाय तो केवल मार्ग हैं, लक्ष्य नहीं| साधक और साध्य के मध्य में साधना है| साधना भी एक मार्ग ही है और यह भी भिन्न हो सकती है| अत: साधना व सम्प्रदायों की भिन्नता से हमारी संस्कृति में भेद नहीं हो सकता| और संस्कृति तो जीवन की पद्धति है जिसके हम अनुयायी हैं| जीवन में हमारी आस्था ही हमारी संस्कृति व हमारे संस्कार हैं| हम जियो और जीने दो में विश्वास रखते हैं| भारत भूमि में जन्म लेने वाले समस्त सम्प्रदायों के मार्ग भिन्न हो सकते हैं किन्तु संस्कृति एक ही है, एक ही होनी चाहिए|
भाग्यशाली हैं वे जिन्होंने इस धरा पर जन्म लिया| जहाँ स्वर्ग और मुक्ति का मार्ग है| इन्ही शब्दों में देवता भी भारत भूमि की महिमा का गान करते हैं| पवित्रता त्याग व साहसियों की भूमि| ज्ञान-विज्ञान, कला-व्यापार व औषधियों से परिपूर्ण भूमि| हमारे पूर्वजों की कर्म भूमि| यही है मेरी भारत भूमि| भारत भूमि के इस इतिहास पर हम गर्व करते हैं परन्तु मै जानता हूँ कि कुछ मैकॉले मानस पुत्रों को हीन भावना का अनुभव भी होता है| समस्या उनकी है हमारी नहीं| हम हमारी माँ से प्रेम करते हैं, उस पर व उसके पुत्रों पर गर्व करते हैं| यदि तुम्हे शर्म आती है तो यह समस्या तुम्हारी है हमारी नहीं| चाहो तो इस भूमि का त्याग कर सकते हो| जिस माँ ने अपने वीर पुत्रों को खोया है वह माँ अपने इन नालायक पुत्रों के वियोग को भी सह लेगी|
धन्य है हमारी सनातन पद्धति जिसने हमें जीना सिखाया| फिर से कह देता हूँ कि सनातन केवल कोई धर्म नहीं अपितु जीवन जीने की पद्धति है| और अब तो सभी का ऐसा मानना है कि यही सर्वश्रेष्ठ पद्दति है, जिसने कभी किसी को कष्ट नहीं दिया| जियो और जीने दो का नारा दिया| इसी विश्वास के साथ हम अपनी सनातन पद्धति में जीते रहे और कभी किसी के अधिकारों का हनन नहीं किया| कभी किसी अन्य सम्प्रदाय को नष्ट करने की चे ष्टा नहीं की| कभी किसी देश के संवैधानिक मूल्यों का अतिक्रमण हमने नहीं किया| बस सबसे यही आशा की कि जिस प्रकार हम प्रेम से जी रहे हैं उसी प्रकार सभी जियें| किन्तु दुर्भाग्य ही था इस माँ का जो कुछ सम्प्रदायों ने हमारी सनातन पद्धति को नष्ट करने की चेष्टा की| हज़ार वर्षों से अधिक परतंत्र रहने के बाद भी हमारी सनातन पद्धति सुरक्षित है यही हमारी पद्धति की महानता है, यही हमारी संस्कृति की महानता है| मुझे गर्व है मेरी संस्कृति पर| सनातन पद्धति कहती है कि ईश्वर माँ है| माँ का अर्थ केवल वह स्त्री नहीं जिसने हमें जन्म दिया है| माँ तो वह है जिससे हमारी उत्पत्ति हुई है| जिस स्त्री ने नौ मास मुझे अपनी कोख में रखा व उसके बाद असहनीय पीड़ा सहकर मुझे जन्म दिया वह स्त्री मेरी माँ है, जिस स्त्री ने मुझे पाला मेरी दाई, मेरी दादी, मेरी नानी, मेरी चाची, मेरी ताई, मेरी मासी, मेरी बुआ, मेरी मामी, मेरी बहन, मेरी भाभी ये सब मेरी माँ है, जिस पुरुष ने मुझे जन्म दिया वह पिता मेरी माँ है, मेरे गुरु, मेरे आचार्य, मेरे शिक्षक जिन्होंने मुझे ज्ञान दिया वे सब मेरी माँ हैं, जिस मिट्टी में खेलते हुए मेरा बचपन बीता वह मिट्टी मेरी माँ है, जिन खेतों ने अपनी फसलों से मेरा पेट भरा वह भूमि मेरी माँ है, जिस नदी ने अपने जल से मेरी प्यास बुझाई वह नदी मेरी माँ है, जिस वायु में मै सांस ले रहा हूँ वह वायु मेरी माँ है, जिन औषधियों ने मेरी प्राण रक्षा की वे सब जड़ी बूटियाँ मेरी माँ हैं, जिस गाय का मैंने दूध पिया वह गाय मेरी माँ है, जिन पेड़ों के फल मैंने खाए, जिनकी छाँव में मैंने गर्मी से राहत पायी वे पेड़ मेरी माँ हैं, वे बादल जो मुझ पर जल वर्षा करते हैं वे बादल मेरी माँ है, वह पर्वत जो मेरे देश की सीमाओं की रक्षा कर रहा है वह पर्वत मेरी माँ है, यह आकाश जिसे मैंने ओढ़ रखा है वह भी मेरी माँ है, वह सूर्य जो मुझे शीत से बचाता है, अंधकार मिटाता है वह अग्नि मेरी माँ है, वह चन्द्रमा जो मुझ पर....Continued
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