Rishikesh to Neelkanth Mahadev temple by road || Neelkanth Mahadev temple || Har har Mahadev

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  • Опубликовано: 28 авг 2024
  • Neelkanth Mahadev temple Rishikesh
    Neelkanth Mahadev temple
    Har har Mahadev, Om namah siway
    History of Neelkanth Mahadev temple
    गढ़वाल, उत्तरांचल में हिमालय पर्वतों के तल में बसा ऋषिकेश में नीलकंठ महादेव मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थल है। नीलकंठ महादेव मंदिर ऋषिकेश के सबसे पूज्य मंदिरों में से एक है। कहा जाता है कि भगवान शिव ने इसी स्थान पर समुद्र मंथन से निकला विष ग्रहण किया गया था। उसी समय उनकी पत्नी, पार्वती ने उनका गला दबाया जिससे कि विष उनके पेट तक नहीं पहुंचे। इस तरह, विष उनके गले में बना रहा। विषपान के बाद विष के प्रभाव से उनका गला नीला पड़ गया था। गला नीला पड़ने के कारण ही उन्हें नीलकंठ नाम से जाना गया था। अत्यन्त प्रभावशाली यह मंदिर भगवान शिव को समर्पित है। मंदिर परिसर में पानी का एक झरना है जहाँ भक्तगण मंदिर के दर्शन करने से पहले स्नान करते हैं।
    हर साल लाखों कांवड़िए करते हैं जलाभिषेक
    ऋषिकेश में स्थित नीलकंठ महादेव मंदिर भगवान शिव को समर्पित सबसे प्रतिष्ठ मंदिरों में से एक है। इस मंदिर की नक्काशी देखते ही बनती है और इस मंदिर तक पहुंचने के लिए कई तरह के पहाड़ और नदियों से होकर गुजरना पड़ता है। साथ ही यह मंदिर प्रमुख पर्यटन स्थल में से एक है। पौड़ी गढ़वाल जिले के मणिकूट पर्वत पर स्थित मधुमती और पंकजा नदी के संगम पर स्थित इस मंदिर के दर्शन करने के लिए सावन मास में हर साल लाखों शिवभक्त कांवड़ में गंगाजल लेकर जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। मान्यता है कि सावन सोमवार के दिन नीलकंठ महादेव के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
    भगवान शिव ने किया विष का पान
    इस मंदिर को लेकर पौराणिक कथा भी है। कथा के अनुसार, समुद्र मंथन से निकली चीजें देवताओं और असुरों में बंटती गईं लेकिन तभी हलाहल नाम का विष निकला। इसे न तो देवता चाहते थे और ना ही असुर। यह विष इतना खतरनाक था कि संपूर्ण सृष्टि का विनाश कर सकता था। इस विष की अग्नि से दसों दिशाएं जलने लगी थीं, जिससे संसार में हाहाकार मच गया। तभी भगवान शिव ने पूरे ब्रह्मांड को बचाने के लिए विष का पान किया। जब भगवान शिव विष का पान कर रहे थे, तब माता पार्वती उनके पीछे ही थीं और उन्होंने उनका गला पकड़ लिया, जिससे विष न तो गले से बाहर निकला और न ही शरीर के अंदर गया।
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    विष ग्रहण करने के बाद भोलेनाथ ऐसे स्थान की तलाश में थे जहां उन्हें शीतल हवा मिले। घूमते-घूमते वह मणिकूट पर्वत पर पहुंचे और वहां पर उन्हें वह शीतलता मिली। जिसके बाद मान्यता है कि महादेव 60, 000 सालों तक इसी स्थान पर वृक्ष के नीचे समाधी लगाकर बैठे थे। इसलिए इस स्थान को श्री नीलकंठ महादेव के नाम रूप में जाना जाता है।
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    सच्चे मन से मांगी हर मनोकामना होती है पूरी
    बताया जाता है जब माता पार्वती के साथ सभी देवी-देवता भगवान शिव की खोज में जुटे तो उन्हें पता चला कि भोलेनाथ मणिकूट पर्वत पर ध्यानमग्न हैं तो माता पार्वती वहां पहुंची और भगवान शिव के पास ही अपना आसन लगाकर बैठ गई। जिस वृक्ष के नीचे भगवान शिव समाधी में लीन थे आज उसी जगह भगवान शिव का मंदिर है। कहा जाता है कि इस मंदिर में सच्चे मन से मांगी गई हर मनोकामना पूरी होती है।
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    नीलकंठ महादेव मंदिर दर्शन के लिए महादेव के भक्त सावन मास में हर साल लाखों की संख्या में कांवड़ में गंगाजल लेकर भगवान शिव के जलाभिषेक के लिए पहुंचते हैं। मान्यता ये भी हैं कि सावन सोमवार के दिन नीलकंठ के दर्शन करने से मोक्ष की प्राप्ति होती है।
    ऐसे पहुंचे Shri neelkanth mahadev mandir
    Rishikesh to neelkanth mandir distance करीब 35 किलोमीटर है। ये पूरा मार्ग पहाड़ी है। ऋषिकेश से नीलकंठ पहुंचने में डेढ़ से दो घंटे लग जाते हैं। स्वर्गाश्रम से पैदल पहुंचने के लिए सात से आठ किमी की खड़ी चढ़ाई है।
    नीलकंठ महादेव के दर्शन करने वाले श्रद्धालुओं की राह भविष्य में आसान होने वाली है। अगले तीन साल में मंदिर परिसर तक पहुंचने के लिए रोपवे बनकर तैयार हो जाएगा। रोपवे बन जाने के बाद श्रद्धालु महज 17 मिनट में ऋषिकेश से नीलकंठ पहुंच सकते हैं।
    ऐसे पहुंचे neelkanth mahadev mandir तक
    अगर आप हवाई जहाज से आने का सोच रहें हैं तो देहरादून स्थित एयरपोर्ट पहुंच सकते हैं। एयरपोर्ट से ऋषिकेश की दूरी कुल 18 किलोमीटर है। ऋषिकेश से चार किमी की दूरी पर स्थित रामझूला तक आप आटो से जा सकते हैं। जिसका किराया 10 रुपए है। इसके बाद रामझूला पुल को पार करते हुए स्‍वार्गाश्रम होते हुए पैदल दूरी तय कर मंदिर तक पहुंच सकते हैं। आप स्‍वार्गाश्रम से टैक्‍सी से भी मंदिर तक सीधे पहुंच सकते हैं। जिसका किराया 50 रुपए है।

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