हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे🙏🙏 ॐ नमः भगवते वासु देवः नमः 🙏🙏🌹 🍃‼️ॐ गं गणपतये नमो नमः‼️ 🌺‼️जय गजानना‼️🌺🙏 🍃‼️जय श्री सीताराम‼️🍃 ‼️जय श्री राधेगोविंद‼️ 🔱‼️हर हर महादेव‼️🔱
*शनिदेव की पौराणिक कथा 〰️〰️🌼〰️🌼〰️🌼〰️〰️ राजा नल और शनिदेव 〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️ नल निषध देश के राजा थे, विदर्भ देश के राजा भीष्मक की कन्या दमयन्ती उनकी महारानी थी। पुण्यश्लोक महाराज नल सत्य के प्रेमी थे, अतः कलियुग उनसे स्वाभाविक द्वेष करता था। कलिकी कुचाल से राजा नल द्यूतक्रीड़ा में अपना सम्पूर्ण राज्य और ऐश्वर्य हार गये तथा महारानी दमयन्ती के साथ वन-वन भटकने लगे। राजा नल ने अपनी इस दुर्दशा से मुक्ति के लिये शनिदेव से प्रार्थना की। राज्य नष्ट हुए राजा नल को शनिदेव ने स्वप्न में अपने एक प्रार्थना-मन्त्र का उपदेश दिया था। उसी नाम-स्तुतिसे उन्हें पुन: राज्य उपलब्ध हुआ था। सर्वकामप्रद वह स्तुति इस प्रकार है। क्रोडं नीलाञ्जनप्रख्यं नीलवर्णसमस्रजम्। छायामार्तण्डसम्भूतं नमस्यामि शनैश्चरम्॥ नमोऽर्कपुत्राय शनैश्चराय नीहारवर्णाञ्जनमेचकाय। श्रुत्वा रहस्यं भव कामदश्च फलप्रदो मे भव सूर्यपुत्र॥ नमोऽस्तु प्रेतराजाय कृष्णदेहाय वै नमः। शनैश्चराय क्रूराय शुद्धबुद्धिप्रदायिने॥ य एभिर्नामभिः स्तौति तस्य तुष्टो भवाम्यहम्। मदीयं तु भयं तस्य स्वप्नेऽपि न भविष्यति॥ अर्थात्👉 क्रूर, नील अंजन के समान आभावाले, नीलवर्ण की माला धारण करने वाले, छाया और सूर्य से उत्पन्न शनिदेव को मैं नमस्कार करता हूँ। जिनका धूम्र और नील अंजन के समान वर्ण है, ऐसे अर्क (सूर्य)- पुत्र शनैश्चर के लिये नमस्कार है। इस रहस्य (प्रार्थना)- को सुनकर हे सूर्यपुत्र ! मेरी कामना पूर्ण करने वाले और फल प्रदान करने वाले हों। प्रेतराज के लिये नमस्कार है, कृष्ण वर्ण के शरीर वाले के लिये नमस्कार है; क्रूर, शुद्ध बुद्धि प्रदान करने वाले शनैश्चर के लिये नमस्कार हो। [इस स्तुतिको सुनकर शनिदेवने कहा-] जो मेरी इन नामों से स्तुति करता है, मैं उससे सन्तुष्ट होता हूँ। उसको मुझसे स्वप्नमें भी भय नहीं होगा।❤️❤️
गरुड़जी की जिज्ञासा….. एक बार भगवान विष्णु गरुड़जी पर सवार होकर कैलाश पर्वत पर जा रहे थे।रास्ते में गरुड़जी ने देखा कि एक ही दरवाजे पर दो बाराते ठहरी थी मामला उनके समझ में नहीं आया। फिर क्या था, पूछ बैठे प्रभु को।गरुड़जी बोले! प्रभु ये कैसी अनोखी बात है कि विवाह के लिए कन्या एक और दो बारातें आई है।मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ राह है। प्रभु बोले- हां एक ही कन्या से विवाह के लिए दो अलग अलग जगह से बारातें आई है।एक बारात पिता द्वारा पसंद किये गये लड़के की है, और दूसरी माता द्वारा पसंद किये गये लड़के की है। यह सुनकर गरुड़जी बोले- आखिर विवाह किसके साथ होगा? प्रभु बोले- जिसे माता ने पसंद किया और बुलाया है उसी के साथ कन्या का विवाह होगा। भगवान की बाते सुनकर गरुड़जी चुप हो गए और भगवान को कैलाश पर पहुंचाकर कौतुहल वस पुनः वापस उसी जगह आ गए जहां दोनों बारातें ठहरी थी। गरुड़जी ने मन में विचार किया कि यदि मैं माता के बुलाए गए वर को यहां से हटा दूं तो कैसे विवाह संभव होगा। फिर क्या था, उन्होंने भगवद्विधान को देखने की जिज्ञासा के लिए तुरन्त ही उस वर को उठाया और ले जाकर समुद्र के एक टापु पर धर दिए।ऐसा कर गरुड़जी थोड़ी देर के लिए ठहरे भी नहीं थे कि उनके मन में अचानक विचार दौड़ा कि मैं तो इस लड़के को यहां उठा लाया हूँ पर यहां तो खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं है, ऐसे में इस निर्जन टापु पर तो यह भूखा ही मर जाएगा और वहां सारी बारात मजे से छप्पन भोग का आनन्द लेंगी, यह कतई उचित नहीं है।इसका पाप अवश्य ही मुझे लगेगा।मुझे इसके लिए भी खाने का कुछ इंतजाम तो करना ही चाहिए। यदि विधि का विधान देखना है तो थोड़ा परिश्रम तो मुझे करना ही पड़ेगा।और ऐसा विचार कर वे वापस उसी स्थान पर फिर से आ गए।इधर कन्या के घर पर स्थिति यह थी कि वर के लापता हो जाने से कन्या की माता को बड़ी निराशा हो रही थी।परन्तु अब भी वह अपने हठ पर अडिग थी। अतः कन्या को एक भारी टोकरी में बैठाकर ऊपर से फल-फूल, मेवा-मिष्ठान्न आदि सजा कर रख दिया, जिसमें कि भोजन-सामग्री ले जाने के निमित्त वर पक्ष से लोग आए थे।माता द्वारा उसी टोकरी में कन्या को छिपाकर भेजने के पीछे उसकी ये मंशा थी कि वर पक्ष के लोग कन्या को अपने घर ले जाकर वर को खोजकर उन दोनों का ब्याह करा देंगे।माता ने अपना यह भाव किसी तरह होने वाले समधि को सूचित भी कर दिया। अब संयोग की बात देखिये, आंगन में रखी उसी टोकरी को जिसमे कन्या की माता ने विविध फल-मेवा, मिष्ठान्नादि से भर कर कन्या को छिपाया था, गरुड़जी ने उसे भरा देखकर उठाया और ले उड़े।उस टोकरी को ले जाकर गरुड़जी ने उसी निर्जन टापू पर जहां पहले से ही वर को उठा ले जाकर उन्होंने रखा था, वर के सामने रख दिया। इधर भूख के मारे व्याकुल हो रहे वर ने ज्यों ही अपने सामने भोज्य सामग्रियों से भरी टोकरी को देखा तो बाज की तरह उस पर झपटा।उसने टोकरी से जैसे ही खाने के लिए फल आदि निकालना शुरू किया तो देखा कि उसमें सोलहों श्रृंगार किए वह युवती बैठी है जिससे कि उसका विवाह होना था।गरुड़जी यह सब देख कर दंग रह गए।उन्हें निश्चय हो गया कि :-‘हरि इच्छा बलवान। फिर तो शुभ मुहुर्त विचारकर स्वयं गरुड़जी ने ही पुरोहिताई का कर्तव्य निभाया।वेदमंत्रों से विधिपूर्वक विवाह कार्य सम्पन्न कराकर वर-वधु को आशीर्वाद दिया और उन्हें पुनः उनके घर पहुंचाया। तत्पश्चात प्रभु के पास आकर सारा वृत्तांत निवेदन किया और प्रभु पर अधिकार समझ झुंझलाकर बोले- प्रभो! आपने अच्छी लीला करी, सारा ब्याह कार्य हमीं से करवा लिया।भगवान गरुड़जी की बातों को सुनकर मन्द-मन्द मुस्कुरा रहे थे ।*❤️❤️❤️❤️❤️
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन। जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥ भावार्थ:-मैं पवनकुमार श्री हनुमान्जी को प्रणाम करता हूँ, जो दुष्ट रूपी वन को भस्म करने के लिए अग्निरूप हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवन में धनुष-बाण धारण किए श्री रामजी निवास करते हैं॥ मित्रों,आपने कई घरों के बारे में सुना होगा कि यह तो भूत बंगला है, क्यों? कई बड़े-बड़े भवन जिसे बंगला कहते हैं, वे वर्षो हो गयें बंद पड़े है, उस बंगले में एक दीपक तक नही जलता, तुलसीजी का पवित्र पौधा नहीं है, वहाँ प्रभु का कीर्तन नहीं होता, प्रभु की आरती नही होती है, प्रभु के नाम का गुणगान नही होता, तो वहां भूत ही तो रहेगे। उस बंगले में यदि ज्ञान का प्रकाश होता तो वहाँ श्री रामजी के दूत हनुमानजी आ जाते और जहाँ हनुमानजी आ जायें तो वहाँ भूत-पिशाच नही आ सकते, पिशाच का दूसरा अर्थ है कि जो हमने भूतकाल में बूरे कर्म किए हैं, वह पिशाच बनकर हमारे पीछे लग जाते हैं, बुरे कर्मो की जो ग्लानि है, किये गयें बुरे कर्म जो भीतर हमारी यादों में समायें रहते हैं, वह हमारे पीछे पिशाच बनकर चलते हैं। वे बुरे कर्म हमें शान्ति नही लेने देते, वह हमको चैन से नही रहने देते, वह हमको छुपे-छुपे रहने को मजबूर करते हैं, हनुमानजी यदि हमारे साथ हों तो बुरे काम कौन कर पाएगा? और अगर उन पिशाचों को हनुमानजी का नाम सुना दो तो हनुमानजी उनको हमारे पास नहीं आने देते। दूसरा भूत-पिशाच तो भगवान् शिव के गण हैं और इनको तो रामनाम बहुत प्रिय है, इसलिए जो भी इनको राम-नाम सुनाता है शिव उनके पास भूत-पिशाचों को आने ही नही देते, भूत कौन हैं? भूत तो भगवान् शिव-पार्वती का वैभव है लेकिन थोड़ा भयानक है, शिव-पार्वती उनको हमारे पास आने नहीं देते, दुसरे सुख और समृद्धि की जो आसक्ति है, सुख की जो आसक्ति है यही भूत-प्रेत है, और कोई भूत-प्रेत होता ही नहीं है, पिशाच कौन है? कहहिं सुनहिं अस अधम नर। ग्रसे जे मोह पिसाच।। यह जो मोह है न यही पिशाच हैं, यह मेरा-मेरा, इसके बिना मैं जीवित नही रह सकता, यह जो मोह का बन्धन है यही पिशाच है, यह भूत हैं या पिशाच हैं, कौन? "पाखण्डी हरि पद विमुख, जानहिं झूँठ न साँच" पाखण्ड, हरिपद विमुख, जो झूठ और सच का विवेक नहीं जानता, जो कामासक्त है वे भूत-पिशाच हैं, गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी लिखा है। देव दनुज किन्नर नर व्याला। प्रेत भूत पिशाच भूत बेताला।। जैसे प्रकाश के सामने अंधेरा टिक नहीं सकता ऐसे ही हनुमानजी के सामने, ज्ञान के सामने, प्रकाश के सामने यें भूत-प्रेत आ नहीं सकते" नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरन्तर हनुमत बीरा" रोग किसे कहते है? रोग कहते हैं मानसिक बीमारीयों को, शारीरिक बीमारीयों को, मानसिक रोग बड़े विचित्र होते है, शरीर में रोग बाद में आता है मन में रोग पहले आ जाता है, मन के रोग श्रीहनुमानजी की उपासना से ही दूर होते हैं। मन के रोग काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर हैं, ये सभी रोग हनुमानजी की कृपा से दूर होते हैं, जब भी जीव कामासक्त होता है तो अन्धा हो जाता है, नारदजी जैसे मुनि को भी इसने नहीं बक्सा, उन्हें इस रोग से पागल कर दिया, लोभ जब मनुष्य के जीवन में आता है तो व्यक्ति कितना गिर सकता है, और क्रोध जब आता है तो इष्ट का भी अनिष्ट करता है। ईष्या, मद, लोभ, मोह के कारण सारे संसार में आज अशान्ति है, इसका कारण और कुछ नही यह मानसिक रोग ही हैं, वह औषधि प्रयोग के द्वारा ठीक नहीं होते हैं, वैसे भी हनुमानजी वेदों के ज्ञाता हैं, और वेदों में आयुर्वेद भी है, आयुर्वेद का ज्ञान हनुमानजी को है उतना किसी को नही है, क्योंकि संजीवनी बूटी को कोई पहचानने वाला ही नही था, हनुमानजी ही पहचानते थे। लेकिन चूंकि रावण को मालूम चल गया था इसलिये रावण ने पूरे पहाड के शिखर पर आग लगवा दी थी तो हनुमानजी को संजीवनी बूटी को पहचानने में कठिनाई हो रही थाथीं, तब हनुमानजी पूरे पहाड को ही उखाड़ कर ले आयें, अन्यथा आयुर्वेद की समस्त जानकारी हनुमानजी को है। भाई-बहनों! मैं निवेदन करना चाहता हूँ आप सभी से कि यदि मानसिक रोगों से मुक्ति चाहते है, तो हनुमानजी की शरण में आओ, हनुमान चालीसा का पाठ करो, हनुमानजी का सतत् ध्यान, निरन्तर ध्यान करें हनुमानजी का सतत् ध्यान यानी ज्ञान की उपासना, प्रकाश की उपासना, हनुमानजी का ध्यान माने हर समय भगवत नाम का सुमिरन, मानवता की सेवा एवम् धर्म की सेवा और यही हनुमानजी का सतत सुमिरन हैं।❤️❤️❤️❤️
Radhe,radhe❤❤❤❤❤
धन्यवाद जी। ईश्वर आपके जीवन को सुख-शांति एवं अपार खुशियों से भरें। 🌼 Video अपने मित्रों के साथ शेयर करें 🙏❣️🌹
Veri, good 💯💯💯💯💯🎉
धन्यवाद जी। ईश्वर आपके जीवन को सुख-शांति एवं अपार खुशियों से भरें। 🌼 अपने मित्रों के साथ शेयर करें 🙏❣️🌹
Bhaut hi sundar ye sari kahaniyan hai. Thank you sir.
धन्यवाद जी। ईश्वर आपके जीवन को सुख-शांति एवं अपार खुशियों से भरें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹
Jai mata mahalaxmi ji
धन्यवाद जी। ईश्वर आपके जीवन को सुख-शांति एवं अपार खुशियों से भरें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹
हरे कृष्ण हरे कृष्ण कृष्ण कृष्ण हरे हरे
हरे राम हरे राम राम राम हरे हरे🙏🙏
ॐ नमः भगवते वासु देवः नमः 🙏🙏🌹
🍃‼️ॐ गं गणपतये नमो नमः‼️
🌺‼️जय गजानना‼️🌺🙏
🍃‼️जय श्री सीताराम‼️🍃
‼️जय श्री राधेगोविंद‼️
🔱‼️हर हर महादेव‼️🔱
धन्यवाद जी। परमात्मा आपको सारे सुख प्रदान करें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹 शुक्रिया।
Jai shree hanuman ji ki
धन्यवाद जी। ईश्वर आपके जीवन को सुख-शांति एवं अपार खुशियों से भरें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹
Nice
धन्यवाद जी। ईश्वर आपके जीवन को सुख-शांति एवं अपार खुशियों से भरें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹
Nice spiritual story
धन्यवाद जी। ईश्वर आपके जीवन को सुख-शांति एवं अपार खुशियों से भरें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹
Sachhi mmehnat kar raheho thsnkd
धन्यवाद जी। परमात्मा आपको सारे सुख प्रदान करें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹 शुक्रिया
Aalah o Akbar, hai shree ram, jai Jesus, nanak ji ko pranam....Vigyan sabse param
धन्यवाद जी। ईश्वर आपके जीवन को सुख-शांति एवं अपार खुशियों से भरें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें 🙏❣️🌹
Wow ♥️
धन्यवाद जी। ईश्वर आपके जीवन को सुख-शांति एवं अपार खुशियों से भरें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹
@@SpiritualTVstories the 178
... आप ईश्वर के प्रति अपनी निष्ठापूर्ण अभीप्सा से और अपने समर्पण से स्वयं में चैत्य सत्ता को जगा सकते हैं... श्री अरविंद
धन्यवाद जी। परमात्मा आपको सारे सुख प्रदान करें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹 शुक्रिया
0
@@SpiritualTVstories ppppppppppppp
1
Ij
बेहद की परम परम परम महा शांति है . पुरे मल्टीवर्से में बेहद की परम परम परम शांति है .
धन्यवाद जी। ईश्वर आपके जीवन को सुख-शांति एवं अपार खुशियों से भरें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹
Om Namah shivaya
धन्यवाद जी। परमात्मा आपको सारे सुख प्रदान करें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹 शुक्रिया
हेलो इसका पांचवा भाग बताइए जो कहानी अधूरी छोड़ी थी वह फांसी पर चढ़ा था
Pm
धन्यवाद जी। ईश्वर आपके जीवन को सुख-शांति एवं अपार खुशियों से भरें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹
Om Namah Shivay
धन्यवाद जी। परमात्मा आपको सारे सुख प्रदान करें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹 शुक्रिया।
*शनिदेव की पौराणिक कथा
〰️〰️🌼〰️🌼〰️🌼〰️〰️
राजा नल और शनिदेव
〰️〰️〰️〰️〰️〰️〰️
नल निषध देश के राजा थे, विदर्भ देश के राजा भीष्मक की कन्या दमयन्ती उनकी महारानी थी। पुण्यश्लोक महाराज नल सत्य के प्रेमी थे, अतः कलियुग उनसे
स्वाभाविक द्वेष करता था। कलिकी कुचाल से राजा नल द्यूतक्रीड़ा में अपना सम्पूर्ण राज्य और ऐश्वर्य हार गये तथा महारानी दमयन्ती के साथ वन-वन भटकने लगे।
राजा नल ने अपनी इस दुर्दशा से मुक्ति के लिये शनिदेव से प्रार्थना की।
राज्य नष्ट हुए राजा नल को शनिदेव ने स्वप्न में अपने एक प्रार्थना-मन्त्र का उपदेश दिया था। उसी नाम-स्तुतिसे उन्हें पुन: राज्य उपलब्ध हुआ था।
सर्वकामप्रद वह स्तुति इस प्रकार है।
क्रोडं नीलाञ्जनप्रख्यं नीलवर्णसमस्रजम्।
छायामार्तण्डसम्भूतं नमस्यामि शनैश्चरम्॥
नमोऽर्कपुत्राय शनैश्चराय नीहारवर्णाञ्जनमेचकाय।
श्रुत्वा रहस्यं भव कामदश्च फलप्रदो मे भव सूर्यपुत्र॥
नमोऽस्तु प्रेतराजाय कृष्णदेहाय वै नमः।
शनैश्चराय क्रूराय शुद्धबुद्धिप्रदायिने॥
य एभिर्नामभिः स्तौति तस्य तुष्टो भवाम्यहम्।
मदीयं तु भयं तस्य स्वप्नेऽपि न भविष्यति॥
अर्थात्👉 क्रूर, नील अंजन के समान आभावाले, नीलवर्ण की माला धारण करने वाले, छाया और सूर्य से उत्पन्न शनिदेव को मैं नमस्कार करता हूँ। जिनका धूम्र और नील अंजन के समान वर्ण है, ऐसे अर्क (सूर्य)- पुत्र शनैश्चर के लिये नमस्कार है। इस रहस्य (प्रार्थना)- को सुनकर हे सूर्यपुत्र ! मेरी कामना पूर्ण करने वाले और
फल प्रदान करने वाले हों। प्रेतराज के लिये नमस्कार है, कृष्ण वर्ण के शरीर वाले के लिये नमस्कार है; क्रूर, शुद्ध बुद्धि प्रदान करने वाले शनैश्चर के लिये नमस्कार हो।
[इस स्तुतिको सुनकर शनिदेवने कहा-] जो मेरी इन नामों से स्तुति करता है, मैं उससे सन्तुष्ट होता हूँ। उसको मुझसे स्वप्नमें भी भय नहीं होगा।❤️❤️
धन्यवाद जी। परमात्मा आपको सारे सुख प्रदान करें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹 शुक्रिया
गरुड़जी की जिज्ञासा…..
एक बार भगवान विष्णु गरुड़जी पर सवार होकर कैलाश पर्वत पर जा रहे थे।रास्ते में गरुड़जी ने देखा कि एक ही दरवाजे पर दो बाराते ठहरी थी मामला उनके समझ में नहीं आया।
फिर क्या था, पूछ बैठे प्रभु को।गरुड़जी बोले! प्रभु ये कैसी अनोखी बात है कि विवाह के लिए कन्या एक और दो बारातें आई है।मेरी तो समझ में कुछ नहीं आ राह है।
प्रभु बोले- हां एक ही कन्या से विवाह के लिए दो अलग अलग जगह से बारातें आई है।एक बारात पिता द्वारा पसंद किये गये लड़के की है, और दूसरी माता द्वारा पसंद किये गये लड़के की है।
यह सुनकर गरुड़जी बोले-
आखिर विवाह किसके साथ होगा?
प्रभु बोले- जिसे माता ने पसंद किया और बुलाया है उसी के साथ कन्या का विवाह होगा।
भगवान की बाते सुनकर गरुड़जी चुप हो गए और भगवान को कैलाश पर पहुंचाकर कौतुहल वस पुनः वापस उसी जगह आ गए जहां दोनों बारातें ठहरी थी।
गरुड़जी ने मन में विचार किया कि यदि मैं माता के बुलाए गए वर को यहां से हटा दूं तो कैसे विवाह संभव होगा।
फिर क्या था, उन्होंने भगवद्विधान को देखने की जिज्ञासा के लिए तुरन्त ही उस वर को उठाया और ले जाकर समुद्र के एक टापु पर धर दिए।ऐसा कर गरुड़जी थोड़ी देर के लिए ठहरे भी नहीं थे कि उनके मन में अचानक विचार दौड़ा कि मैं तो इस लड़के को यहां उठा लाया हूँ पर यहां तो खाने-पीने की कोई व्यवस्था नहीं है, ऐसे में इस निर्जन टापु पर तो यह भूखा ही मर जाएगा और वहां सारी बारात मजे से छप्पन भोग का आनन्द लेंगी, यह कतई उचित नहीं है।इसका पाप अवश्य ही मुझे लगेगा।मुझे इसके लिए भी खाने का कुछ इंतजाम तो करना ही चाहिए।
यदि विधि का विधान देखना है तो थोड़ा परिश्रम तो मुझे करना ही पड़ेगा।और ऐसा विचार कर वे वापस उसी स्थान पर फिर से आ गए।इधर कन्या के घर पर स्थिति यह थी कि वर के लापता हो जाने से कन्या की माता को बड़ी निराशा हो रही थी।परन्तु अब भी वह अपने हठ पर अडिग थी।
अतः कन्या को एक भारी टोकरी में बैठाकर ऊपर से फल-फूल, मेवा-मिष्ठान्न आदि सजा कर रख दिया, जिसमें कि भोजन-सामग्री ले जाने के निमित्त वर पक्ष से लोग आए थे।माता द्वारा उसी टोकरी में कन्या को छिपाकर भेजने के पीछे उसकी ये मंशा थी कि वर पक्ष के लोग कन्या को अपने घर ले जाकर वर को खोजकर उन दोनों का ब्याह करा देंगे।माता ने अपना यह भाव किसी तरह होने वाले समधि को सूचित भी कर दिया।
अब संयोग की बात देखिये, आंगन में रखी उसी टोकरी को जिसमे कन्या की माता ने विविध फल-मेवा, मिष्ठान्नादि से भर कर कन्या को छिपाया था, गरुड़जी ने उसे भरा देखकर उठाया और ले उड़े।उस टोकरी को ले जाकर गरुड़जी ने उसी निर्जन टापू पर जहां पहले से ही वर को उठा ले जाकर उन्होंने रखा था, वर के सामने रख दिया।
इधर भूख के मारे व्याकुल हो रहे वर ने ज्यों ही अपने सामने भोज्य सामग्रियों से भरी टोकरी को देखा तो बाज की तरह उस पर झपटा।उसने टोकरी से जैसे ही खाने के लिए फल आदि निकालना शुरू किया तो देखा कि उसमें सोलहों श्रृंगार किए वह युवती बैठी है जिससे कि उसका विवाह होना था।गरुड़जी यह सब देख कर दंग रह गए।उन्हें निश्चय हो गया कि :-‘हरि इच्छा बलवान।
फिर तो शुभ मुहुर्त विचारकर स्वयं गरुड़जी ने ही पुरोहिताई का कर्तव्य निभाया।वेदमंत्रों से विधिपूर्वक विवाह कार्य सम्पन्न कराकर वर-वधु को आशीर्वाद दिया और उन्हें पुनः उनके घर पहुंचाया।
तत्पश्चात प्रभु के पास आकर सारा वृत्तांत निवेदन किया और प्रभु पर अधिकार समझ झुंझलाकर बोले- प्रभो! आपने अच्छी लीला करी, सारा ब्याह कार्य हमीं से करवा लिया।भगवान गरुड़जी की बातों को सुनकर मन्द-मन्द मुस्कुरा रहे थे ।*❤️❤️❤️❤️❤️
धन्यवाद जी। परमात्मा आपको सारे सुख प्रदान करें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹 शुक्रिया
T
Nki
प्रनवउँ पवनकुमार खल बन पावक ग्यान घन।
जासु हृदय आगार बसहिं राम सर चाप धर॥
भावार्थ:-मैं पवनकुमार श्री हनुमान्जी को प्रणाम करता हूँ, जो दुष्ट रूपी वन को भस्म करने के लिए अग्निरूप हैं, जो ज्ञान की घनमूर्ति हैं और जिनके हृदय रूपी भवन में धनुष-बाण धारण किए श्री रामजी निवास करते हैं॥
मित्रों,आपने कई घरों के बारे में सुना होगा कि यह तो भूत बंगला है, क्यों? कई बड़े-बड़े भवन जिसे बंगला कहते हैं, वे वर्षो हो गयें बंद पड़े है, उस बंगले में एक दीपक तक नही जलता, तुलसीजी का पवित्र पौधा नहीं है, वहाँ प्रभु का कीर्तन नहीं होता, प्रभु की आरती नही होती है, प्रभु के नाम का गुणगान नही होता, तो वहां भूत ही तो रहेगे।
उस बंगले में यदि ज्ञान का प्रकाश होता तो वहाँ श्री रामजी के दूत हनुमानजी आ जाते और जहाँ हनुमानजी आ जायें तो वहाँ भूत-पिशाच नही आ सकते, पिशाच का दूसरा अर्थ है कि जो हमने भूतकाल में बूरे कर्म किए हैं, वह पिशाच बनकर हमारे पीछे लग जाते हैं, बुरे कर्मो की जो ग्लानि है, किये गयें बुरे कर्म जो भीतर हमारी यादों में समायें रहते हैं, वह हमारे पीछे पिशाच बनकर चलते हैं।
वे बुरे कर्म हमें शान्ति नही लेने देते, वह हमको चैन से नही रहने देते, वह हमको छुपे-छुपे रहने को मजबूर करते हैं, हनुमानजी यदि हमारे साथ हों तो बुरे काम कौन कर पाएगा? और अगर उन पिशाचों को हनुमानजी का नाम सुना दो तो हनुमानजी उनको हमारे पास नहीं आने देते।
दूसरा भूत-पिशाच तो भगवान् शिव के गण हैं और इनको तो रामनाम बहुत प्रिय है, इसलिए जो भी इनको राम-नाम सुनाता है शिव उनके पास भूत-पिशाचों को आने ही नही देते, भूत कौन हैं? भूत तो भगवान् शिव-पार्वती का वैभव है लेकिन थोड़ा भयानक है, शिव-पार्वती उनको हमारे पास आने नहीं देते, दुसरे सुख और समृद्धि की जो आसक्ति है, सुख की जो आसक्ति है यही भूत-प्रेत है, और कोई भूत-प्रेत होता ही नहीं है, पिशाच कौन है?
कहहिं सुनहिं अस अधम नर।
ग्रसे जे मोह पिसाच।।
यह जो मोह है न यही पिशाच हैं, यह मेरा-मेरा, इसके बिना मैं जीवित नही रह सकता, यह जो मोह का बन्धन है यही पिशाच है, यह भूत हैं या पिशाच हैं, कौन? "पाखण्डी हरि पद विमुख, जानहिं झूँठ न साँच" पाखण्ड, हरिपद विमुख, जो झूठ और सच का विवेक नहीं जानता, जो कामासक्त है वे भूत-पिशाच हैं, गोस्वामी तुलसीदासजी ने भी लिखा है।
देव दनुज किन्नर नर व्याला।
प्रेत भूत पिशाच भूत बेताला।।
जैसे प्रकाश के सामने अंधेरा टिक नहीं सकता ऐसे ही हनुमानजी के सामने, ज्ञान के सामने, प्रकाश के सामने यें भूत-प्रेत आ नहीं सकते" नासै रोग हरै सब पीरा, जपत निरन्तर हनुमत बीरा" रोग किसे कहते है? रोग कहते हैं मानसिक बीमारीयों को, शारीरिक बीमारीयों को, मानसिक रोग बड़े विचित्र होते है, शरीर में रोग बाद में आता है मन में रोग पहले आ जाता है, मन के रोग श्रीहनुमानजी की उपासना से ही दूर होते हैं।
मन के रोग काम, क्रोध, लोभ, मोह, मद और मत्सर हैं, ये सभी रोग हनुमानजी की कृपा से दूर होते हैं, जब भी जीव कामासक्त होता है तो अन्धा हो जाता है, नारदजी जैसे मुनि को भी इसने नहीं बक्सा, उन्हें इस रोग से पागल कर दिया, लोभ जब मनुष्य के जीवन में आता है तो व्यक्ति कितना गिर सकता है, और क्रोध जब आता है तो इष्ट का भी अनिष्ट करता है।
ईष्या, मद, लोभ, मोह के कारण सारे संसार में आज अशान्ति है, इसका कारण और कुछ नही यह मानसिक रोग ही हैं, वह औषधि प्रयोग के द्वारा ठीक नहीं होते हैं, वैसे भी हनुमानजी वेदों के ज्ञाता हैं, और वेदों में आयुर्वेद भी है, आयुर्वेद का ज्ञान हनुमानजी को है उतना किसी को नही है, क्योंकि संजीवनी बूटी को कोई पहचानने वाला ही नही था, हनुमानजी ही पहचानते थे।
लेकिन चूंकि रावण को मालूम चल गया था इसलिये रावण ने पूरे पहाड के शिखर पर आग लगवा दी थी तो हनुमानजी को संजीवनी बूटी को पहचानने में कठिनाई हो रही थाथीं, तब हनुमानजी पूरे पहाड को ही उखाड़ कर ले आयें, अन्यथा आयुर्वेद की समस्त जानकारी हनुमानजी को है।
भाई-बहनों! मैं निवेदन करना चाहता हूँ आप सभी से कि यदि मानसिक रोगों से मुक्ति चाहते है, तो हनुमानजी की शरण में आओ, हनुमान चालीसा का पाठ करो, हनुमानजी का सतत् ध्यान, निरन्तर ध्यान करें हनुमानजी का सतत् ध्यान यानी ज्ञान की उपासना, प्रकाश की उपासना, हनुमानजी का ध्यान माने हर समय भगवत नाम का सुमिरन, मानवता की सेवा एवम् धर्म की सेवा और यही हनुमानजी का सतत सुमिरन हैं।❤️❤️❤️❤️
“चैत्य हमेशा विश्वास, आनंद और आत्मविश्वास के साथ ईश्वर की ओर उन्मुख रहता है उसकी जो भी - अभीप्सा होती है वह विश्वास और आशा से भरी होती है।"श्री अरविंद
धन्यवाद जी। परमात्मा आपको सारे सुख प्रदान करें। 🌼 इस वीडियो को अपने मित्रों के साथ शेयर करें जी 🙏❣️🌹 शुक्रिया