राग जौनपुरी-तीनताल (मध्य लय)हरि चरनन चित दीजै मनुवा |

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  • Опубликовано: 25 янв 2025
  • जौनपुरी राग को असवारी थाट से उपजा हुआ राग माना गया है। इस राग में ग , ध, नी स्वर कोमल लगते हैं । आरोह में ग (गंधार ) वर्ज्य है अर्थात गाते बजाते समय आरोह में ग स्वर को छोड़ देते हैं। अवरोह में सातों स्वर प्रयोग किये जाते हैं।
    [1]राग जौनपुरी हिंदुस्तानी शास्त्रीय संगीत में असावरी थाट का एक राग है । ओंकारनाथ ठाकुर जैसे कुछ संगीतकार इसे शुद्ध ऋषभ असावरी से अप्रभेद्य मानते हैं ।
    [2] इसके आकर्षक स्वर इसे कर्नाटक मंडल में एक लोकप्रिय राग बनाते हैं और दक्षिण भारत में कई रचनाएँ जौनपुरी में स्वरबद्ध की गई हैं।
    [3]राग का नाम इसे इस नाम के स्थानों से जोड़ सकता है, जैसे कि गुजरात में जावनपुर, सौराष्ट्र क्षेत्र के करीब और उत्तरी उत्तर प्रदेश में जौनपुर । [3]
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